Comments - भारतीय सनातन संस्कृति का ह्रास - Open Books Online2024-03-29T07:38:11Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A361471&xn_auth=noआदरणीय श्रीराम जी, आदरणीय शाल…tag:openbooks.ning.com,2013-05-16:5170231:Comment:3634562013-05-16T12:59:32.107Zसतवीर वर्मा 'बिरकाळी'http://openbooks.ning.com/profile/SatveerVermaBirkali
आदरणीय श्रीराम जी, आदरणीय शालिनी कौशिक जी, आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी, आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाहा जी, आदरणीय राम शिरोमणी पाठक जी, आदरणीय केवल प्रसाद जी, आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी,<br />
आप सबने रचना को पसंद किया इसके लिए आभार। रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देकर आपने रचना को सार्थक कर दिया है। आभार आप सभी रचनाकारों का।
आदरणीय श्रीराम जी, आदरणीय शालिनी कौशिक जी, आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी, आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाहा जी, आदरणीय राम शिरोमणी पाठक जी, आदरणीय केवल प्रसाद जी, आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी,<br />
आप सबने रचना को पसंद किया इसके लिए आभार। रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देकर आपने रचना को सार्थक कर दिया है। आभार आप सभी रचनाकारों का। संस्कृति के बार बार दमित होने…tag:openbooks.ning.com,2013-05-15:5170231:Comment:3629952013-05-15T15:16:41.742ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>संस्कृति के बार बार दमित होने की पीड़ा को शब्द देती सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय सतवीर वर्मा जी.</p>
<p>संस्कृति के बार बार दमित होने की पीड़ा को शब्द देती सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय सतवीर वर्मा जी.</p> आ0 विरकाळी जी,..‘माँ बाप को छ…tag:openbooks.ning.com,2013-05-13:5170231:Comment:3625072013-05-13T16:21:39.131Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://openbooks.ning.com/profile/kewalprasad
<p>आ0 विरकाळी जी,..‘माँ बाप को छोङकर<br/>बॉस की सुनने लगा<br/>सनातन संस्कृति छोङकर<br/>पाश्चात्य संस्कृति अपनाने लगा<br/>घर की पूरी रोटी छोङकर<br/>पङोस की आधी चुपङी खाने लगा‘ अतिसुन्दर प्रस्तुति। बधाई स्वीकारें। सादर,</p>
<p>आ0 विरकाळी जी,..‘माँ बाप को छोङकर<br/>बॉस की सुनने लगा<br/>सनातन संस्कृति छोङकर<br/>पाश्चात्य संस्कृति अपनाने लगा<br/>घर की पूरी रोटी छोङकर<br/>पङोस की आधी चुपङी खाने लगा‘ अतिसुन्दर प्रस्तुति। बधाई स्वीकारें। सादर,</p> सुन्दर रचना।बधाई tag:openbooks.ning.com,2013-05-13:5170231:Comment:3624082013-05-13T15:43:56.431Zram shiromani pathakhttp://openbooks.ning.com/profile/ramshiromanipathak
<p><span>सुन्दर <span>रचना।</span><span>बधाई </span></span></p>
<p><span>सुन्दर <span>रचना।</span><span>बधाई </span></span></p> आखिर कब तकह्रास होता रहेगामिट…tag:openbooks.ning.com,2013-05-13:5170231:Comment:3619892013-05-13T10:50:30.237ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttp://openbooks.ning.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p><span>आखिर कब तक</span><br/><span>ह्रास होता रहेगा</span><br/><span>मिटती रहेगी अपनों के हाथों</span><br/><span>रौंदी जाएगी पैरों तले</span><br/><span>अपने ही लोगों द्वारा</span><br/><span>अनदेखा करते रहेंगे</span><br/><span>अपने ही लोग</span><br/><span>भारतीय सनातन संस्कृति का</span><br/><span>आखिर कब तक?</span><br/><span>आखिर कब तक?</span></p>
<p>यक्ष प्रश्न. </p>
<p>बधाई </p>
<p><span>आखिर कब तक</span><br/><span>ह्रास होता रहेगा</span><br/><span>मिटती रहेगी अपनों के हाथों</span><br/><span>रौंदी जाएगी पैरों तले</span><br/><span>अपने ही लोगों द्वारा</span><br/><span>अनदेखा करते रहेंगे</span><br/><span>अपने ही लोग</span><br/><span>भारतीय सनातन संस्कृति का</span><br/><span>आखिर कब तक?</span><br/><span>आखिर कब तक?</span></p>
<p>यक्ष प्रश्न. </p>
<p>बधाई </p> आखिर कब तकह्रास होता रहेगामिट…tag:openbooks.ning.com,2013-05-13:5170231:Comment:3622332013-05-13T02:05:35.490ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p><span>आखिर कब तक</span><br/><span>ह्रास होता रहेगा</span><br/><span>मिटती रहेगी अपनों के हाथों</span><br/><span>रौंदी जाएगी पैरों तले</span><br/><span>अपने ही लोगों द्वारा</span><br/><span>अनदेखा करते रहेंगे</span><br/><span>अपने ही लोग</span><br/><span>भारतीय सनातन संस्कृति का</span><br/><span>आखिर कब तक?</span><br/><span>आखिर कब तक?</span></p>
<p>जब तक हम सभी सोये रहेंगे </p>
<p>विदेशी संस्कृति में खोये रहेंगे!</p>
<p><span>आखिर कब तक</span><br/><span>ह्रास होता रहेगा</span><br/><span>मिटती रहेगी अपनों के हाथों</span><br/><span>रौंदी जाएगी पैरों तले</span><br/><span>अपने ही लोगों द्वारा</span><br/><span>अनदेखा करते रहेंगे</span><br/><span>अपने ही लोग</span><br/><span>भारतीय सनातन संस्कृति का</span><br/><span>आखिर कब तक?</span><br/><span>आखिर कब तक?</span></p>
<p>जब तक हम सभी सोये रहेंगे </p>
<p>विदेशी संस्कृति में खोये रहेंगे!</p> सार्थक रचना। सादर,tag:openbooks.ning.com,2013-05-12:5170231:Comment:3621272013-05-12T18:52:06.748Zshalini kaushikhttp://openbooks.ning.com/profile/shalinikaushik
<p>सार्थक रचना। सादर,</p>
<p>सार्थक रचना। सादर,</p> सुन्दर अभिवक्ति ...tag:openbooks.ning.com,2013-05-12:5170231:Comment:3616792013-05-12T14:16:21.525Zश्रीरामhttp://openbooks.ning.com/profile/sriram
<p>सुन्दर अभिवक्ति ...</p>
<p>सुन्दर अभिवक्ति ...</p>