Comments - तत् त्वम् असि - Open Books Online2024-03-29T10:07:23Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A350650&xn_auth=noबिलकुल सही कहा है आपने कि //…tag:openbooks.ning.com,2016-08-21:5170231:Comment:7939432016-08-21T14:57:14.283ZSheikh Shahzad Usmanihttp://openbooks.ning.com/profile/SheikhShahzadUsmani
बिलकुल सही कहा है आपने कि // आवश्यकता स्वयं के भीतर झांकने की । हम अपने मन की गहराइयों में जितना अधिक उतरेंगे उतना ही अधिक इस सत्य के निकट होंगे।// इस आध्यात्मिक ज्ञान सम्प्रेषित करती रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी।
बिलकुल सही कहा है आपने कि // आवश्यकता स्वयं के भीतर झांकने की । हम अपने मन की गहराइयों में जितना अधिक उतरेंगे उतना ही अधिक इस सत्य के निकट होंगे।// इस आध्यात्मिक ज्ञान सम्प्रेषित करती रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी। यथार्थ और सत्य से अवगत करता …tag:openbooks.ning.com,2013-04-23:5170231:Comment:3521552013-04-23T16:00:43.861Zram shiromani pathakhttp://openbooks.ning.com/profile/ramshiromanipathak
<p>यथार्थ और सत्य से अवगत करता आपका <span>यह आलेख/////////////<span>बहुत सुन्दर./////<span>साधुवाद ।</span></span></span></p>
<p>यथार्थ और सत्य से अवगत करता आपका <span>यह आलेख/////////////<span>बहुत सुन्दर./////<span>साधुवाद ।</span></span></span></p> आशीष त्रिवेदी जी आपने आत्मविश…tag:openbooks.ning.com,2013-04-23:5170231:Comment:3520672013-04-23T14:47:51.587Zrajesh kumarihttp://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p><span>आशीष त्रिवेदी जी आपने आत्मविश्वास का मूल मन्त्र देकर इस आलेख को बहुमूल्य बना दिया है बहुत अच्छा लिखा है बहुत- बहुत बधाई आपको |</span></p>
<p><span>आशीष त्रिवेदी जी आपने आत्मविश्वास का मूल मन्त्र देकर इस आलेख को बहुमूल्य बना दिया है बहुत अच्छा लिखा है बहुत- बहुत बधाई आपको |</span></p> आदरणीय आशीष जी सादर, सर्वप्रथ…tag:openbooks.ning.com,2013-04-23:5170231:Comment:3517942013-04-23T12:33:04.510ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय आशीष जी सादर, सर्वप्रथम तो क्षमा चाहूँगा आपने मुझे किसी चर्चा में शामिल करना चाहा था किन्तु मैं व्यस्तता के चलते उसमे शामिल न हो सका.</p>
<p>आपका यह आलेख भी बहुत ही उम्दा है स्व को समझने को प्रेरित करता है. बिलकुल सही है तभी हम कहते भी हैं हम भगवान को मंदिर मंदिर खोजते फिरते हैं किन्तु वह तो हमारे अन्दर ही है. बहुत सुन्दर.</p>
<p>आदरणीय आशीष जी सादर, सर्वप्रथम तो क्षमा चाहूँगा आपने मुझे किसी चर्चा में शामिल करना चाहा था किन्तु मैं व्यस्तता के चलते उसमे शामिल न हो सका.</p>
<p>आपका यह आलेख भी बहुत ही उम्दा है स्व को समझने को प्रेरित करता है. बिलकुल सही है तभी हम कहते भी हैं हम भगवान को मंदिर मंदिर खोजते फिरते हैं किन्तु वह तो हमारे अन्दर ही है. बहुत सुन्दर.</p> आदरणीय त्रिवेदी जी, सादर प्र…tag:openbooks.ning.com,2013-04-23:5170231:Comment:3518282013-04-23T04:14:02.450Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://openbooks.ning.com/profile/kewalprasad
<p>आदरणीय त्रिवेदी जी, सादर प्रणाम! बहुत सुन्दर। महामना विवेकानन्दजी के चित्र ने भावों को और भी गंभीरता दिया है। सादर बधाई स्वीकार करें।</p>
<p>आदरणीय त्रिवेदी जी, सादर प्रणाम! बहुत सुन्दर। महामना विवेकानन्दजी के चित्र ने भावों को और भी गंभीरता दिया है। सादर बधाई स्वीकार करें।</p> आदरणीय त्रिवेदी जी बहुत संबल…tag:openbooks.ning.com,2013-04-22:5170231:Comment:3513552013-04-22T08:34:43.381ZAbhinav Arunhttp://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p><span>आदरणीय त्रिवेदी जी बहुत संबल देते सकारात्मक विचारों का आलेख पढ़ मन आत्मविश्वास से भर गया हार्दिक साधुवाद । ऐसे मार्गदर्शक विचार समय की मांग हैं ! </span></p>
<p><span>आदरणीय त्रिवेदी जी बहुत संबल देते सकारात्मक विचारों का आलेख पढ़ मन आत्मविश्वास से भर गया हार्दिक साधुवाद । ऐसे मार्गदर्शक विचार समय की मांग हैं ! </span></p> आपके विचारों का स्वागत है। चा…tag:openbooks.ning.com,2013-04-22:5170231:Comment:3513312013-04-22T04:45:30.549ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooks.ning.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDI
<p><strong>आपके विचारों का स्वागत है। चाहें भौतिक स्तर पर हो या आध्यात्मिक हम में बहुत समानताएं हैं किन्तु इसे न समझ पाना ही परेशानी का कारण है।</strong></p>
<p><strong>आपके विचारों का स्वागत है। चाहें भौतिक स्तर पर हो या आध्यात्मिक हम में बहुत समानताएं हैं किन्तु इसे न समझ पाना ही परेशानी का कारण है।</strong></p> आदरणीय आशीष कुमार जी, सादर अभ…tag:openbooks.ning.com,2013-04-22:5170231:Comment:3511902013-04-22T00:28:50.382ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>आदरणीय आशीष कुमार जी, सादर अभिवादन!</p>
<p>इन विषयों में मैं बहुत बड़ा अज्ञानी हूँ. सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि अगर सभी जीवों में एक ही आत्मा जो कि परमातम का ही अंश है तो इतना हाहाकार क्यों मचा हुआ है? एक जीव (आत्मा) दूसरे जीव (आत्मा) को समाप्त करने में क्यों लगी है? माया साफ़ दिखलाई देती है आत्मा को किसने देखा है और जिसने देखा है वे आज कहाँ हैं?... बस मेरी यही प्रतिक्रिया है या समझ लें मेरी अज्ञानता ही है... आपक आभार ..इन गंभीर विषयों को प्रस्तुत करने के लिए!</p>
<p>आदरणीय आशीष कुमार जी, सादर अभिवादन!</p>
<p>इन विषयों में मैं बहुत बड़ा अज्ञानी हूँ. सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि अगर सभी जीवों में एक ही आत्मा जो कि परमातम का ही अंश है तो इतना हाहाकार क्यों मचा हुआ है? एक जीव (आत्मा) दूसरे जीव (आत्मा) को समाप्त करने में क्यों लगी है? माया साफ़ दिखलाई देती है आत्मा को किसने देखा है और जिसने देखा है वे आज कहाँ हैं?... बस मेरी यही प्रतिक्रिया है या समझ लें मेरी अज्ञानता ही है... आपक आभार ..इन गंभीर विषयों को प्रस्तुत करने के लिए!</p>