Comments - ग़ज़ल - उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना - Open Books Online2024-03-28T10:30:30Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A324735&xn_auth=noआदरणीय...वीनस जी, बेहतरीन गजल…tag:openbooks.ning.com,2013-06-03:5170231:Comment:3713042013-06-03T05:39:49.486Zजितेन्द्र पस्टारियाhttp://openbooks.ning.com/profile/JitendraPastariya
आदरणीय...वीनस जी, बेहतरीन गजल ..क्या बात कही है आपने वाह! " अपना अपना हौसला है अपने अपने फैसले,कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आईना " बहुत खूब आदरणीय वीनस जी.......हार्दिक बधाई व शुभकामनायें
आदरणीय...वीनस जी, बेहतरीन गजल ..क्या बात कही है आपने वाह! " अपना अपना हौसला है अपने अपने फैसले,कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आईना " बहुत खूब आदरणीय वीनस जी.......हार्दिक बधाई व शुभकामनायें शाम तक खुद को सलामत पा के अब…tag:openbooks.ning.com,2013-06-03:5170231:Comment:3714422013-06-03T05:17:47.317Zrajesh kumarihttp://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p><span>शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है, </span><br/><span>पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |</span><span>वाह वाह वीनस जी शानदार ग़ज़ल कही है और इस शेर पर तो कुर्बान होने को जी चाहता है ढेरों दाद कबूल फरमाएं </span></p>
<p><span>शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है, </span><br/><span>पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |</span><span>वाह वाह वीनस जी शानदार ग़ज़ल कही है और इस शेर पर तो कुर्बान होने को जी चाहता है ढेरों दाद कबूल फरमाएं </span></p> सुबह सुबह एक खुबसूरत सी ग़ज़ल…tag:openbooks.ning.com,2013-06-03:5170231:Comment:3716072013-06-03T03:53:58.913ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p><span id=".reactRoot[354].:0:1:1:comment466556060085541_3320861.:0.:1.:0.:1.:0.:0.:0:2.:0.:0">सुबह सुबह एक खुबसूरत सी ग़ज़ल राह रोके खड़ी हो गई, आइने को बिम्ब बना कई कई शायरों ने बहुत कुछ कहा है, किन्तु एक अलग ख्यालात को लेकर आई यह ग़ज़ल बरबस ध्यान खींचती है, मतला बेहतरीन, पहला शेर जहाँ यह साफ़ साफ़ बयां कर रहा है की सच आखिर सच ही है जिसे पराजित करना आसान नहीं है वही दूसरा शेर झूठे दिखावे पर तंज करता लग रहा है, उसके बाद का शेर साफ़ है कि दुसरे के घर में झाकने से पहले अपना घर देख लो, कहने का…</span></p>
<p><span id=".reactRoot[354].:0:1:1:comment466556060085541_3320861.:0.:1.:0.:1.:0.:0.:0:2.:0.:0">सुबह सुबह एक खुबसूरत सी ग़ज़ल राह रोके खड़ी हो गई, आइने को बिम्ब बना कई कई शायरों ने बहुत कुछ कहा है, किन्तु एक अलग ख्यालात को लेकर आई यह ग़ज़ल बरबस ध्यान खींचती है, मतला बेहतरीन, पहला शेर जहाँ यह साफ़ साफ़ बयां कर रहा है की सच आखिर सच ही है जिसे पराजित करना आसान नहीं है वही दूसरा शेर झूठे दिखावे पर तंज करता लग रहा है, उसके बाद का शेर साफ़ है कि दुसरे के घर में झाकने से पहले अपना घर देख लो, कहने का अंदाज बेहद प्यारा, आहा !!अंतिम शेर पर क्या कहना, उस्तादों वाली बात, अंतिम तीन अशआर देख लें, कही तकाबुले रदीफ़ दोष तो नहीं !!</span><br id=".reactRoot[354].:0:1:1:comment466556060085541_3320861.:0.:1.:0.:1.:0.:0.:0:2.:0.:1"/><span id=".reactRoot[354].:0:1:1:comment466556060085541_3320861.:0.:1.:0.:1.:0.:0.:0:2.:0.:2">बहरहाल मुझे एक बार और आनंद लेने दीजिये और आप बधाई स्वीकार कीजिये ।</span></p> @संदीप भाई बहुत बहुत शुक्रिया…tag:openbooks.ning.com,2013-03-06:5170231:Comment:3286022013-03-06T21:44:55.767Zवीनस केसरीhttp://openbooks.ning.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>@संदीप भाई बहुत बहुत शुक्रिया <br/><br/>ग़ज़ल पसंद आई और इसे आपसे दाद मिली है तो अशआर और चमक रहे हैं</p>
<p>@संदीप भाई बहुत बहुत शुक्रिया <br/><br/>ग़ज़ल पसंद आई और इसे आपसे दाद मिली है तो अशआर और चमक रहे हैं</p> लाजवाब प्रस्तुति वीनस जी. आपक…tag:openbooks.ning.com,2013-03-05:5170231:Comment:3279052013-03-05T14:02:08.003Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'http://openbooks.ning.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<p>लाजवाब प्रस्तुति वीनस जी. आपकी इस ग़ज़ल में नज़्म के रंग भी छलकते हुए दीख रहे हैं! आख़िरी शे'र सबसे बेहतरीन लगा! दाद क़ुबूल फरमाएं.. :)</p>
<p>लाजवाब प्रस्तुति वीनस जी. आपकी इस ग़ज़ल में नज़्म के रंग भी छलकते हुए दीख रहे हैं! आख़िरी शे'र सबसे बेहतरीन लगा! दाद क़ुबूल फरमाएं.. :)</p> Dr.Prachi Singhआदरणीया, अभी त…tag:openbooks.ning.com,2013-03-01:5170231:Comment:3261052013-03-01T19:42:21.907Zवीनस केसरीhttp://openbooks.ning.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p><a href="http://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376" class="fn url">Dr.Prachi Singh</a><br/>आदरणीया, <br/>अभी तो देने कई इम्तेहान बाकी है ...</p>
<p><a href="http://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376" class="fn url">Dr.Prachi Singh</a><br/>आदरणीया, <br/>अभी तो देने कई इम्तेहान बाकी है ...</p> अरुन शर्मा "अनन्त" जी आपकी न…tag:openbooks.ning.com,2013-03-01:5170231:Comment:3262822013-03-01T19:41:28.754Zवीनस केसरीhttp://openbooks.ning.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p><a href="http://openbooksonline.com/profile/ArunSharma" class="fn url">अरुन शर्मा "अनन्त" जी </a> आपकी नवाजिश है, ग़ज़ल आपको पसंद आई, जान कर बेहद खुशी हुई </p>
<p><a href="http://openbooksonline.com/profile/ArunSharma" class="fn url">अरुन शर्मा "अनन्त" जी </a> आपकी नवाजिश है, ग़ज़ल आपको पसंद आई, जान कर बेहद खुशी हुई </p> आशीष नैथानी 'सलिल' भाई धन्यवा…tag:openbooks.ning.com,2013-03-01:5170231:Comment:3264112013-03-01T19:40:31.901Zवीनस केसरीhttp://openbooks.ning.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p><a href="http://openbooksonline.com/profile/AshishNaithaniSalil" class="fn url">आशीष नैथानी 'सलिल'</a> भाई धन्यवाद, आभार</p>
<p><a href="http://openbooksonline.com/profile/AshishNaithaniSalil" class="fn url">आशीष नैथानी 'सलिल'</a> भाई धन्यवाद, आभार</p> लाजवाब ग़ज़ल है वीनस जी
शाम तक…tag:openbooks.ning.com,2013-03-01:5170231:Comment:3260402013-03-01T11:10:54.265ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>लाजवाब ग़ज़ल है वीनस जी </p>
<p><span>शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है, </span><br/><span>पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |.............आप गज़ब का लिखते हैं आदरणीय वीनस जी. वाह शब्द भी कम है ऐसे शेर के लिए तो ..</span></p>
<p>हार्दिक दाद क़ुबूल करें </p>
<p>सादर.</p>
<p>लाजवाब ग़ज़ल है वीनस जी </p>
<p><span>शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है, </span><br/><span>पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |.............आप गज़ब का लिखते हैं आदरणीय वीनस जी. वाह शब्द भी कम है ऐसे शेर के लिए तो ..</span></p>
<p>हार्दिक दाद क़ुबूल करें </p>
<p>सादर.</p> वीनस भाई हमेशा की तरह फिर से…tag:openbooks.ning.com,2013-03-01:5170231:Comment:3258592013-03-01T06:01:53.600Zअरुन 'अनन्त'http://openbooks.ning.com/profile/ArunSharma
<p>वीनस भाई हमेशा की तरह फिर से आपके खजाने से निकली शानदार ग़ज़ल, सभी के सभी अशआर शानदार हैं. खास कर इन दो शे'रों पर कुछ ज्यादा ही दाद कुबूलें. </p>
<p></p>
<p>गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ, <br/> कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |</p>
<p></p>
<p>अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले, <br/> कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना |</p>
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<p>वीनस भाई हमेशा की तरह फिर से आपके खजाने से निकली शानदार ग़ज़ल, सभी के सभी अशआर शानदार हैं. खास कर इन दो शे'रों पर कुछ ज्यादा ही दाद कुबूलें. </p>
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<p>गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ, <br/> कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |</p>
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<p>अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले, <br/> कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना |</p>
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