Comments - जिजीविषा - Open Books Online2024-03-29T12:44:50Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A29339&xn_auth=noसशक्त...सारगर्भित रचना... साध…tag:openbooks.ning.com,2010-10-29:5170231:Comment:297132010-10-29T19:16:07.713Zsanjiv verma 'salil'http://openbooks.ning.com/profile/sanjivvermasalil
सशक्त...सारगर्भित रचना... साधुवाद.
सशक्त...सारगर्भित रचना... साधुवाद. 'काल का हिंस्र वज्र-नख' झेलना…tag:openbooks.ning.com,2010-10-28:5170231:Comment:295532010-10-28T19:13:18.553Zविवेक मिश्रhttp://openbooks.ning.com/profile/VivekMishra
'काल का हिंस्र वज्र-नख' झेलना और 'बचे हुए जूठे सपनों को' अनुभव कर पाना सबके बस की बात नहीं.. कुछ महीने पहले गुलज़ार साहब की 'पुखराज' पढ़ी थी. आपकी कविता पढ़कर लगा कि अगर वे भी हिन्दी में लिखते, कुछ इसी तरह की नज्में बना करतीं. अद्भुत और अभूतपूर्व अभिव्यक्ति. जय हो..!
'काल का हिंस्र वज्र-नख' झेलना और 'बचे हुए जूठे सपनों को' अनुभव कर पाना सबके बस की बात नहीं.. कुछ महीने पहले गुलज़ार साहब की 'पुखराज' पढ़ी थी. आपकी कविता पढ़कर लगा कि अगर वे भी हिन्दी में लिखते, कुछ इसी तरह की नज्में बना करतीं. अद्भुत और अभूतपूर्व अभिव्यक्ति. जय हो..! सौरभ भैया, अब तक चार बार इस क…tag:openbooks.ning.com,2010-10-28:5170231:Comment:293912010-10-28T06:57:40.391ZShashi Ranjan Mishrahttp://openbooks.ning.com/profile/ShashiRanjanMishra
सौरभ भैया, अब तक चार बार इस कविता को पढ़ चुका और हर बार भाव कुछ अलग मिले... पाँचवी बार भी पढ़ुंगा | बहुत कुछ निचोड़ना है इन पंक्तियों से....<br />
मैने अपना मौन स्वप्न देखा है इसमे...
सौरभ भैया, अब तक चार बार इस कविता को पढ़ चुका और हर बार भाव कुछ अलग मिले... पाँचवी बार भी पढ़ुंगा | बहुत कुछ निचोड़ना है इन पंक्तियों से....<br />
मैने अपना मौन स्वप्न देखा है इसमे...