Comments - क्यों प्राण प्रियतम आये ना ?? - Open Books Online2024-03-29T00:56:54Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A268667&xn_auth=noनयन बदरा छा गयेरिम-झिम फुहारो…tag:openbooks.ning.com,2012-09-06:5170231:Comment:2690592012-09-06T21:40:42.143Zsatish mapatpurihttp://openbooks.ning.com/profile/satishmapatpuri
<p>नयन बदरा छा गये<br/>रिम-झिम फुहारों की घटा<br/>मुझमें समाने और अब तक<br/>क्यों प्राण प्रियतम आये ना??</p>
<p>अभिनव ..... एक बेहतरीन रचना ...... वियोग और विरह की दशा को दिशा देती इस रचना के लिए बधाई दीप्ति जी</p>
<p>नयन बदरा छा गये<br/>रिम-झिम फुहारों की घटा<br/>मुझमें समाने और अब तक<br/>क्यों प्राण प्रियतम आये ना??</p>
<p>अभिनव ..... एक बेहतरीन रचना ...... वियोग और विरह की दशा को दिशा देती इस रचना के लिए बधाई दीप्ति जी</p> दीप्ति जी
इस वियोग रस पूर्ण र…tag:openbooks.ning.com,2012-09-06:5170231:Comment:2690212012-09-06T14:10:38.266ZUMASHANKER MISHRAhttp://openbooks.ning.com/profile/UMASHANKERMISHRA
<p>दीप्ति जी</p>
<p>इस वियोग रस पूर्ण रचना ने मन को छू लिया</p>
<p>हार्दिक बधाई</p>
<p>दीप्ति जी</p>
<p>इस वियोग रस पूर्ण रचना ने मन को छू लिया</p>
<p>हार्दिक बधाई</p> निहारिका सा प्रेम रूपछलकत निक…tag:openbooks.ning.com,2012-09-06:5170231:Comment:2688542012-09-06T14:02:05.042ZRekha Joshihttp://openbooks.ning.com/profile/RekhaJoshi
<p><span>निहारिका सा प्रेम रूप</span><br/><span>छलकत निकट पनघट</span><br/><span>निहारने उस प्रेम को</span><br/><span>क्यों प्राण प्रियतम आये ना??,अति सुंदर अभिव्यक्ति दीप्ति जी ,बधाई </span></p>
<p><span>निहारिका सा प्रेम रूप</span><br/><span>छलकत निकट पनघट</span><br/><span>निहारने उस प्रेम को</span><br/><span>क्यों प्राण प्रियतम आये ना??,अति सुंदर अभिव्यक्ति दीप्ति जी ,बधाई </span></p> Sundar Abhivyaktitag:openbooks.ning.com,2012-09-06:5170231:Comment:2689322012-09-06T12:42:47.637ZHarvinder Singh Labanahttp://openbooks.ning.com/profile/HarvinderSinghLabana
<p>Sundar Abhivyakti</p>
<p>Sundar Abhivyakti</p> कुछ बातों को बिम्ब और प्रतीको…tag:openbooks.ning.com,2012-09-06:5170231:Comment:2688492012-09-06T11:02:35.717ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>कुछ बातों को बिम्ब और प्रतीकों में कही जाय तो और आनंद आ जाय, सुन्दर रचना , बधाई हो |</p>
<p>कुछ बातों को बिम्ब और प्रतीकों में कही जाय तो और आनंद आ जाय, सुन्दर रचना , बधाई हो |</p> प्राण प्रियतम के आने की राह द…tag:openbooks.ning.com,2012-09-06:5170231:Comment:2688392012-09-06T05:57:40.472Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttp://openbooks.ning.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<div><font color="#0000FF">प्राण प्रियतम के आने की राह देखती,छलकते भावों को अभिव्यक्त करती सुंदर</font></div>
<div><font color="#0000FF">रचना के लिए बधाई आदरणीय दीप्ति शर्मा जी, आदरणीय सौरभ जी के सलाह </font></div>
<div><font color="#0000FF">पर गौर कर इसे और उचाइयां प्रदान करने का प्रयास करे-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला</font></div>
<div><font color="#0000FF">प्राण प्रियतम के आने की राह देखती,छलकते भावों को अभिव्यक्त करती सुंदर</font></div>
<div><font color="#0000FF">रचना के लिए बधाई आदरणीय दीप्ति शर्मा जी, आदरणीय सौरभ जी के सलाह </font></div>
<div><font color="#0000FF">पर गौर कर इसे और उचाइयां प्रदान करने का प्रयास करे-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला</font></div> चाँदनी ढल जायेगी फिरक्या मिलन…tag:openbooks.ning.com,2012-09-06:5170231:Comment:2689232012-09-06T05:26:44.817ZVISHAAL CHARCHCHIThttp://openbooks.ning.com/profile/VISHAALCHARCHCHIT
<p><span><span>चाँदनी ढल जायेगी फिर</span><br/><span>क्या मिलन बेला आयेगी</span><br/><span>मिलने को व्याकुल नयन ये तो</span><br/><span>क्यों प्राण प्रियतम आये ना??</span><br/><br/>अत्यंत सुन्दर प्रयास दीप्ति........!!!!</span></p>
<p><span><span>चाँदनी ढल जायेगी फिर</span><br/><span>क्या मिलन बेला आयेगी</span><br/><span>मिलने को व्याकुल नयन ये तो</span><br/><span>क्यों प्राण प्रियतम आये ना??</span><br/><br/>अत्यंत सुन्दर प्रयास दीप्ति........!!!!</span></p> विरह की इस वेदना को अनुपम प्र…tag:openbooks.ning.com,2012-09-06:5170231:Comment:2686932012-09-06T04:51:11.920ZYogi Saraswathttp://openbooks.ning.com/profile/YogendraKumarSaraswat
<p>विरह की इस वेदना को<br/> अनुपम प्रेम में ढाल<br/> अमानत बनाने मुझे अपनी<br/> क्यों प्राण प्रियतम आये ना??</p>
<p>बहुत ही खूबसूरत शब्दों में आपने व्यथा की dasha ko vyakt kiya है ! बहुत badhiya , deepti जी !</p>
<p>विरह की इस वेदना को<br/> अनुपम प्रेम में ढाल<br/> अमानत बनाने मुझे अपनी<br/> क्यों प्राण प्रियतम आये ना??</p>
<p>बहुत ही खूबसूरत शब्दों में आपने व्यथा की dasha ko vyakt kiya है ! बहुत badhiya , deepti जी !</p> दीप्ति जी, विरह की अद्भुत दशा…tag:openbooks.ning.com,2012-09-05:5170231:Comment:2685032012-09-05T16:48:46.411ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>दीप्ति जी, विरह की अद्भुत दशा को उभारते इस गीत के लिये बधाई.</p>
<p>कोशिश कर इस रचना और सान्द्र करें. अत्यंत संभावनाओं से भरी है आपकी भाव-दशा. दूसरे, आपकी प्रस्तुतियों में साहस भी है.</p>
<p>शुभेच्छाएँ.</p>
<p>दीप्ति जी, विरह की अद्भुत दशा को उभारते इस गीत के लिये बधाई.</p>
<p>कोशिश कर इस रचना और सान्द्र करें. अत्यंत संभावनाओं से भरी है आपकी भाव-दशा. दूसरे, आपकी प्रस्तुतियों में साहस भी है.</p>
<p>शुभेच्छाएँ.</p>