Comments - मैं ही हूँ - Open Books Online2024-03-29T12:33:12Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A229530&xn_auth=noआदरणीय अशोक रकताले जी, इस अभि…tag:openbooks.ning.com,2012-06-02:5170231:Comment:2327212012-06-02T04:31:46.315ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आदरणीय अशोक रकताले जी, इस अभिव्यक्ति को सराहने के लिए हार्दिक आभार...</p>
<p>आदरणीय अशोक रकताले जी, इस अभिव्यक्ति को सराहने के लिए हार्दिक आभार...</p> डॉ. प्राची जी
…tag:openbooks.ning.com,2012-06-02:5170231:Comment:2323982012-06-02T01:26:37.486ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooks.ning.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>डॉ. प्राची जी</p>
<p> सादर, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, शायद यही सर्वोत्तम योग मुद्रा हो.बधाई.</p>
<p>डॉ. प्राची जी</p>
<p> सादर, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, शायद यही सर्वोत्तम योग मुद्रा हो.बधाई.</p> इस रचना की सराहना हेतु हार्दि…tag:openbooks.ning.com,2012-05-30:5170231:Comment:2312882012-05-30T04:30:21.281ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>इस रचना की सराहना हेतु हार्दिक आभार भावेश राजपाल जी</p>
<p>इस रचना की सराहना हेतु हार्दिक आभार भावेश राजपाल जी</p> बेहद गहन सच का अहसास करा दि…tag:openbooks.ning.com,2012-05-28:5170231:Comment:2306272012-05-28T15:16:10.223ZBhawesh Rajpalhttp://openbooks.ning.com/profile/BhaweshRajpal
<div>बेहद गहन सच का अहसास करा दिया ! स्वयं की अनुभूति ! अति सुन्दर ! शब्द कम पड़ जाते हैं ऐसी रचना की प्रशंसा में !</div>
<div>आदरणीय डॉ. प्राची जी , आपको इतनी उत्तम रचना के लिए बहुत-बहुत-बहुत-बहुत बधाई !-भवेश राजपाल ! </div>
<div>बेहद गहन सच का अहसास करा दिया ! स्वयं की अनुभूति ! अति सुन्दर ! शब्द कम पड़ जाते हैं ऐसी रचना की प्रशंसा में !</div>
<div>आदरणीय डॉ. प्राची जी , आपको इतनी उत्तम रचना के लिए बहुत-बहुत-बहुत-बहुत बधाई !-भवेश राजपाल ! </div> आदरणीय अरुण जी , राजेश कुमारी…tag:openbooks.ning.com,2012-05-28:5170231:Comment:2300912012-05-28T05:13:01.910ZDr.Prachi Singhhttp://openbooks.ning.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आदरणीय अरुण जी , राजेश कुमारी जी, प्रदीप कुशवाहा जी, सुरेन्द्र शुक्ला जी, रेखा जी, आप सब का ह्रदय से आभार...</p>
<p>आदरणीय अरुण जी , राजेश कुमारी जी, प्रदीप कुशवाहा जी, सुरेन्द्र शुक्ला जी, रेखा जी, आप सब का ह्रदय से आभार...</p> Prachi ji ,
सदियों से खुद से…tag:openbooks.ning.com,2012-05-27:5170231:Comment:2302432012-05-27T18:01:10.439ZRekha Joshihttp://openbooks.ning.com/profile/RekhaJoshi
<p>Prachi ji ,</p>
<p><span>सदियों से खुद से बिछुड़ी</span><br/><span>अब स्वयं का ही</span><br/><span>बोध पा</span><br/><span>बिलकुल शांत…svym ka bodh pa kar shanti hi milti hae ,badhai</span></p>
<p>Prachi ji ,</p>
<p><span>सदियों से खुद से बिछुड़ी</span><br/><span>अब स्वयं का ही</span><br/><span>बोध पा</span><br/><span>बिलकुल शांत…svym ka bodh pa kar shanti hi milti hae ,badhai</span></p> और बेसुध मन बावरातय कर लेता ह…tag:openbooks.ning.com,2012-05-26:5170231:Comment:2295772012-05-26T17:48:09.835ZSURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMARhttp://openbooks.ning.com/profile/SURENDRAKUMARSHUKLABHRAMAR
<p><span>और बेसुध मन बावरा</span><br></br><span>तय कर लेता है</span><br></br><span>मीलों के फांसले</span><br></br><span>एक क्षण में...</span><br></br><span>न ये मोहब्बत है, न दोस्ती</span><br></br><span>न कोई पहचान है</span><br></br><span>न ही वो अनजान है</span></p>
<p><span> हाँ डॉ प्राची जी जब खुद का बोध हो जाता है ..एक गहन अभिव्यक्ति में खो जाते हैं हम और फिर सब शांत . शून्य ....सुन्दर रचना ... जय श्री राधे <br></br></span></p>
<div>भ्रमर ५</div>
<div><span>भ्रमर का दर्द और दर्पण…</span></div>
<p><span>और बेसुध मन बावरा</span><br/><span>तय कर लेता है</span><br/><span>मीलों के फांसले</span><br/><span>एक क्षण में...</span><br/><span>न ये मोहब्बत है, न दोस्ती</span><br/><span>न कोई पहचान है</span><br/><span>न ही वो अनजान है</span></p>
<p><span> हाँ डॉ प्राची जी जब खुद का बोध हो जाता है ..एक गहन अभिव्यक्ति में खो जाते हैं हम और फिर सब शांत . शून्य ....सुन्दर रचना ... जय श्री राधे <br/></span></p>
<div>भ्रमर ५</div>
<div><span>भ्रमर का दर्द और दर्पण </span></div>
<p><span><br/></span></p> आदरणीय प्राची जी, सादर
बिलकुल…tag:openbooks.ning.com,2012-05-26:5170231:Comment:2295702012-05-26T16:58:37.445ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttp://openbooks.ning.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p><span>आदरणीय प्राची जी, सादर</span></p>
<div><blockquote><p><b>बिलकुल शांत बिलकुल शांत बिलकुल शांत </b></p>
<p><b>बधाई </b></p>
</blockquote>
</div>
<p><span>आदरणीय प्राची जी, सादर</span></p>
<div><blockquote><p><b>बिलकुल शांत बिलकुल शांत बिलकुल शांत </b></p>
<p><b>बधाई </b></p>
</blockquote>
</div> बहुत सुन्दर प्रस्तुति मैंने इ…tag:openbooks.ning.com,2012-05-26:5170231:Comment:2295572012-05-26T12:00:16.999Zrajesh kumarihttp://openbooks.ning.com/profile/rajeshkumari
<p><span>बहुत सुन्दर प्रस्तुति मैंने इसे पहले भी पढ़ा था इस बार भी पढने में उतना ही मजा आया </span></p>
<p><span>बहुत सुन्दर प्रस्तुति मैंने इसे पहले भी पढ़ा था इस बार भी पढने में उतना ही मजा आया </span></p> स्वयं का बोध एक रचना की उपलब्…tag:openbooks.ning.com,2012-05-26:5170231:Comment:2295492012-05-26T09:17:54.080ZAbhinav Arunhttp://openbooks.ning.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
<p>स्वयं का बोध एक रचना की उपलब्धि है और साहित्यिक संतोष का कारक भी | सारगर्भित और विचारपरक रचना के लिए हार्दिक साधुवाद डॉ प्राची जी !!</p>
<p>स्वयं का बोध एक रचना की उपलब्धि है और साहित्यिक संतोष का कारक भी | सारगर्भित और विचारपरक रचना के लिए हार्दिक साधुवाद डॉ प्राची जी !!</p>