Comments - सुप्रभात - Open Books Online2024-03-29T04:36:54Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A171319&xn_auth=noश्री अरुण श्री जी,
बहुत सारगर…tag:openbooks.ning.com,2011-12-01:5170231:Comment:1716652011-12-01T09:02:10.248Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>श्री अरुण श्री जी,</p>
<div>बहुत सारगर्भित रचना मिली आपके द्वारा| बहुत सुन्दर शिल्प में भावों को सजाया आपने| आपको बहुत बहुत बधाई|</div>
<p></p>
<p>श्री अरुण श्री जी,</p>
<div>बहुत सारगर्भित रचना मिली आपके द्वारा| बहुत सुन्दर शिल्प में भावों को सजाया आपने| आपको बहुत बहुत बधाई|</div>
<p></p> “जाओ पथिक
तुम्हारे पाँव से री…tag:openbooks.ning.com,2011-11-30:5170231:Comment:1716362011-11-30T12:39:21.550ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>“जाओ पथिक</p>
<p>तुम्हारे पाँव से रीसता खून</p>
<p>चमकता रहेगा युगों तक</p>
<p>मेरे तारों भरी चुनरी पर</p>
<p>दीप बनकर !”</p>
<p> </p>
<p>आहा ! बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति, कवि ने मन के भावों को बाखूबी अभिव्यक्त किया है, कविता में अंत की पांच पक्तियां पंच का काम करती है, जबरदस्त हिट, सब मिलाकर एक खुबसूरत कविता, कवि को कोटिश: बधाई |</p>
<p>लेकिन जनता हूँ मैं.............लग रहा टंकण त्रुटि से ’जानता’ .... ’जनता’ हो गया है, मैं ठीक कर दिया हूँ |</p>
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<p>“जाओ पथिक</p>
<p>तुम्हारे पाँव से रीसता खून</p>
<p>चमकता रहेगा युगों तक</p>
<p>मेरे तारों भरी चुनरी पर</p>
<p>दीप बनकर !”</p>
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<p>आहा ! बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति, कवि ने मन के भावों को बाखूबी अभिव्यक्त किया है, कविता में अंत की पांच पक्तियां पंच का काम करती है, जबरदस्त हिट, सब मिलाकर एक खुबसूरत कविता, कवि को कोटिश: बधाई |</p>
<p>लेकिन जनता हूँ मैं.............लग रहा टंकण त्रुटि से ’जानता’ .... ’जनता’ हो गया है, मैं ठीक कर दिया हूँ |</p>
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<p> </p> आदरणीय सौरभ सर , आपने मेरी रच…tag:openbooks.ning.com,2011-11-30:5170231:Comment:1713052011-11-30T08:03:57.567ZArun Srihttp://openbooks.ning.com/profile/ArunSrivastava
<p>आदरणीय सौरभ सर , आपने मेरी रचना पर इनती विस्तृत चर्चा की उसके लिए धन्यवाद और आभार ! मैं आपको विश्वाश दिलाता हूँ कविता लिखने की तरह ही मेरा पढ़ना और सुनना कभी कम नही होगा ! आपको मेरी रचना अच्छी लगी मेरा सौभाग्य है लेकिन मैं एक नौसिखिया हू और चाहे कितनी भी प्रसंशा क्यों न मिले मुझे मैं हमेशा नौसिखिया ही रहूँगा और सिखने के लिए प्रयाशरत भी ! आपने मेरे लिए जो सुझाव दिया वो शिरोधार्य है ! अब निवेदन है कि हमेशा अपने सानिध्य मे रखे और मेरी रचनाओ पर अपनी पारखी दृष्टी डालें और मार्गदर्शन करते रहे !…</p>
<p>आदरणीय सौरभ सर , आपने मेरी रचना पर इनती विस्तृत चर्चा की उसके लिए धन्यवाद और आभार ! मैं आपको विश्वाश दिलाता हूँ कविता लिखने की तरह ही मेरा पढ़ना और सुनना कभी कम नही होगा ! आपको मेरी रचना अच्छी लगी मेरा सौभाग्य है लेकिन मैं एक नौसिखिया हू और चाहे कितनी भी प्रसंशा क्यों न मिले मुझे मैं हमेशा नौसिखिया ही रहूँगा और सिखने के लिए प्रयाशरत भी ! आपने मेरे लिए जो सुझाव दिया वो शिरोधार्य है ! अब निवेदन है कि हमेशा अपने सानिध्य मे रखे और मेरी रचनाओ पर अपनी पारखी दृष्टी डालें और मार्गदर्शन करते रहे ! सहस्त्र आभार !</p> अरुन/ अरुण, सर्वप्रथम इस जैस…tag:openbooks.ning.com,2011-11-30:5170231:Comment:1710032011-11-30T07:47:06.772ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>अरुन/ अरुण, सर्वप्रथम इस जैसी रचना के लिये बधाई स्वीकारें. मन खुश कर दिया आपने. आपकी प्रस्तुत रचना में काव्यमय भाव के सभी कण विद्यमान हैं. संप्रेषणीयता के स्तर पर रचना वह सबकुछ करती और कहती है जो उद्दात रचनाओं से अपेक्षित है. शिल्प में बतियानापन एक सिरे से प्रभावित करता है.</p>
<p> </p>
<p>दूसरे, ’रात की पनीली आँखों’ का प्रयोग तो एकदम से अचंभित कर देता है. मैं चकित हूँ इस सुकुमारता पर.</p>
<p>इस अपरिहार्य सदृश रचना हेतु अरुन/अरुण आपको मेरी ढेर सारी शुभकामनाएँ.</p>
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<p>लेकिन साथ…</p>
<p>अरुन/ अरुण, सर्वप्रथम इस जैसी रचना के लिये बधाई स्वीकारें. मन खुश कर दिया आपने. आपकी प्रस्तुत रचना में काव्यमय भाव के सभी कण विद्यमान हैं. संप्रेषणीयता के स्तर पर रचना वह सबकुछ करती और कहती है जो उद्दात रचनाओं से अपेक्षित है. शिल्प में बतियानापन एक सिरे से प्रभावित करता है.</p>
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<p>दूसरे, ’रात की पनीली आँखों’ का प्रयोग तो एकदम से अचंभित कर देता है. मैं चकित हूँ इस सुकुमारता पर.</p>
<p>इस अपरिहार्य सदृश रचना हेतु अरुन/अरुण आपको मेरी ढेर सारी शुभकामनाएँ.</p>
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<p>लेकिन साथ ही, मैं आपसे व्यक्तिगत तौर पर लेकिन सार्वजनिक रूप से कुछ साझा करना चाहता हूँ. इस तरह की रचना के बाद आपको एक रचनाकार के लिहाज से अब और सजग या जागरुक रहना होगा. वस्तुतः, मुझे ऐसी किसी रचना के पढ़ लेने के बाद अक्सर डर लगने लगता है. रचयिता से जिस <strong>प्रयास</strong> और <strong>अध्ययन</strong> की अपेक्षा होती है वह पूरी क्या होती है, कुछ दिनों पश्चात् रचनाकार शिल्प और व्याकरण के लिहाज से ही हाशिये पर जाता हुआ दिखायी देने लगता हैं.</p>
<p>उम्मीद है, आप मौज़ूदा दौर के भावुक किशोरों / युवाओं की तरह क्षणिक, सतही ’वाह-वाही’ के आग्रही नहीं होंगे.</p>
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<p>अब इस कविता पर -</p>
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<p>चलते रहोगे मेरे साथ</p>
<p>स्वप्न पथ पर !</p>
<p>अथके</p>
<p>अरुके</p>
<p>अरोके ! ..</p>
<p> </p>
<p>रचनाकार अक्सर अपने तथ्य को बहुआयामी और प्रहारक बनाने के लिये इस तरह की शाब्दिक आवृति का प्रयोग करते हैं इससे कविता की संप्रेषणीयता को अपेक्षित नाटकीयता मिल जाती है जो पाठकों को अपने साथ बहा ले जाती है. बहुत अच्छी तरह से आपने इस आवृति का प्रयोग किया है. लेकिन ’अरोके’ को किस संदर्भ में और कैसे प्रयुक्त किया है ? </p>
<p>मात्र ’रोके’ के स्थान पर ’स्वयं को अ-रोके’ कर देना अधिक उचित होता. इससे तथ्य का कथ्य और प्रभावी हुआ दीखेगा. यह मेरी समझ भर की सलाह है. सोचियेगा इस पर.</p>
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<p>पुनश्च, हार्दिक बधाई.</p>
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