Comments - आसमान की चाहत - Open Books Online2024-03-29T01:21:32Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A137411&xn_auth=noकैलाश जी , इस रचना के मर्म को…tag:openbooks.ning.com,2011-09-04:5170231:Comment:1412942011-09-04T12:15:34.688ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooks.ning.com/profile/GaneshJee
<p>कैलाश जी , इस रचना के मर्म को महसूस करना सबके बस की बात नहीं, ऐसे भाव भी अकस्मात् नहीं आते, बहुत ही सशक्त रचना बन पड़ी है, बहुत बहुत बधाई आपको |</p>
<p>कैलाश जी , इस रचना के मर्म को महसूस करना सबके बस की बात नहीं, ऐसे भाव भी अकस्मात् नहीं आते, बहुत ही सशक्त रचना बन पड़ी है, बहुत बहुत बधाई आपको |</p> बहुत बहुत शुक्रिया मोनिका जी,…tag:openbooks.ning.com,2011-09-03:5170231:Comment:1396712011-09-03T09:43:59.382ZKailash C Sharmahttp://openbooks.ning.com/profile/KailashCSharma
<p>बहुत बहुत शुक्रिया मोनिका जी, सौरभ जी और आशीष जी ...</p>
<p>बहुत बहुत शुक्रिया मोनिका जी, सौरभ जी और आशीष जी ...</p> आधुनिक जीवन की की यही सच्चाई…tag:openbooks.ning.com,2011-09-03:5170231:Comment:1401282011-09-03T08:07:04.897Zआशीष यादवhttp://openbooks.ning.com/profile/Ashishyadav
<p>आधुनिक जीवन की की यही सच्चाई हो गई है|<br/> इस सच्चाई को आपने बखूबी लिखा है|<br/> लेखनी को नमन है|</p>
<p>आधुनिक जीवन की की यही सच्चाई हो गई है|<br/> इस सच्चाई को आपने बखूबी लिखा है|<br/> लेखनी को नमन है|</p> जिस ढंग, परिपाटी और साधन को आ…tag:openbooks.ning.com,2011-09-01:5170231:Comment:1395162011-09-01T21:33:39.730ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>जिस ढंग, परिपाटी और साधन को आजका मानव सफलता-प्राप्त करने का पर्याय समझ बैठा है उस सफलता की प्राप्ति उस मानव को फिर किस तरह के असहाय एकाकी जीवन जीने को अभिशप्त कर देती है, इस तथ्य को कवि ने उजागर करने का प्रयास किया है. कवि कैलाशजी को शुभकामनाओं सहित बधाइयाँ. </p>
<p>जिस ढंग, परिपाटी और साधन को आजका मानव सफलता-प्राप्त करने का पर्याय समझ बैठा है उस सफलता की प्राप्ति उस मानव को फिर किस तरह के असहाय एकाकी जीवन जीने को अभिशप्त कर देती है, इस तथ्य को कवि ने उजागर करने का प्रयास किया है. कवि कैलाशजी को शुभकामनाओं सहित बधाइयाँ. </p> वाह बहुत खूब जीवन के सच को उज…tag:openbooks.ning.com,2011-09-01:5170231:Comment:1389732011-09-01T20:31:03.068Zmonikahttp://openbooks.ning.com/profile/monika
<p>वाह बहुत खूब जीवन के सच को उजागर करती कविता</p>
<p>वाह बहुत खूब जीवन के सच को उजागर करती कविता</p>