Comments - ग़ज़ल - गुरप्रीत सिंह जम्मू - Open Books Online2024-03-28T20:55:36Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1097953&xn_auth=noआपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणी…tag:openbooks.ning.com,2023-02-13:5170231:Comment:10988612023-02-13T09:59:23.520ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooks.ning.com/profile/GurpreetSingh624
<p>आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर जी कि आपने ग़ज़ल की कमियां बताइं और उन्हें दूर करने के लिए बहुत अच्छे सुझाव भी दिए। इस मंच पर रचना डालने का मुख्य मकसद यही होता है कि रचना की खामियां पता चलें और रचना में सुधार हो। जिन दो शेर के बारे में आप ने बात की है, उन्ही पर मैं अटका था। हैरान हूं आपको कैसे पता चला। बाकी शेरों में भी देखता हूं क्या सुधार हो सकता है। रचना पर आने और अपनी कीमती टिप्पणी देने के लिए बहुत धन्यवाद सर जी।</p>
<p>आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर जी कि आपने ग़ज़ल की कमियां बताइं और उन्हें दूर करने के लिए बहुत अच्छे सुझाव भी दिए। इस मंच पर रचना डालने का मुख्य मकसद यही होता है कि रचना की खामियां पता चलें और रचना में सुधार हो। जिन दो शेर के बारे में आप ने बात की है, उन्ही पर मैं अटका था। हैरान हूं आपको कैसे पता चला। बाकी शेरों में भी देखता हूं क्या सुधार हो सकता है। रचना पर आने और अपनी कीमती टिप्पणी देने के लिए बहुत धन्यवाद सर जी।</p> आ. गुरप्रीत जी,बिना लाग लपेट…tag:openbooks.ning.com,2023-02-13:5170231:Comment:10989232023-02-13T09:19:12.777ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. गुरप्रीत जी,<br/><br/>बिना लाग लपेट के कहूँ तो कई मिसरे पूरे पकने से पहले तोड़ लिए गए लगते हैं.. <br/>.<br/><span><strong>हर दिन</strong> बढ़ती जाए हैरत..<br/></span>.<br/><span>मैं कब बिकने वालों में था </span><br/><span>तुमने <strong>भी</strong> कम आंकी कीमत<br/></span>.<br/>ऐसे बहुत से छोटे बदलाव मिसरों को अधिक ज़िन्दा बना देंगे,,<br/>सोचियेगा </p>
<p>आ. गुरप्रीत जी,<br/><br/>बिना लाग लपेट के कहूँ तो कई मिसरे पूरे पकने से पहले तोड़ लिए गए लगते हैं.. <br/>.<br/><span><strong>हर दिन</strong> बढ़ती जाए हैरत..<br/></span>.<br/><span>मैं कब बिकने वालों में था </span><br/><span>तुमने <strong>भी</strong> कम आंकी कीमत<br/></span>.<br/>ऐसे बहुत से छोटे बदलाव मिसरों को अधिक ज़िन्दा बना देंगे,,<br/>सोचियेगा </p> जी, बहुत शुक्रिया आदरणीय समर…tag:openbooks.ning.com,2023-02-09:5170231:Comment:10988272023-02-09T01:19:45.716ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooks.ning.com/profile/GurpreetSingh624
<p>जी, बहुत शुक्रिया आदरणीय समर सर जी</p>
<p>जी, बहुत शुक्रिया आदरणीय समर सर जी</p> जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब, ग़…tag:openbooks.ning.com,2023-02-08:5170231:Comment:10986322023-02-08T13:31:39.739ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>टंकण त्रुटियाँ देख लें ।</p>
<p>जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>टंकण त्रुटियाँ देख लें ।</p> बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष…tag:openbooks.ning.com,2023-02-01:5170231:Comment:10985632023-02-01T09:56:54.134ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooks.ning.com/profile/GurpreetSingh624
<p>बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी</p>
<p>बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी</p> आ. भाई गुरप्रीत जी, सादर अभिव…tag:openbooks.ning.com,2023-01-30:5170231:Comment:10981612023-01-30T01:04:24.818Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई गुरप्रीत जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर गजल हुई है। बहुत बहुत हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई गुरप्रीत जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर गजल हुई है। बहुत बहुत हार्दिक बधाई।</p>