Comments - गजल -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" - Open Books Online2024-03-28T08:39:16Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1094219&xn_auth=noआ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2022-11-28:5170231:Comment:10945922022-11-28T01:38:17.182Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन के लिए आभार।</p> जनाब लक्ष्मण शामी जी आदाब, ग़ज़…tag:openbooks.ning.com,2022-11-24:5170231:Comment:10940012022-11-24T13:24:07.700ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण शामी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I </p>
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<p><span>'फिर दिखेगा मौत का मन्जर वृहद ही'---इस मिसरे में 'मन्जर' को "मंज़र" कर लें I </span></p>
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<p><span>'आसमाँ को बाँटने की हो न साजिस'--- इस मिसरे में 'साजिस' को "साज़िश" कर लें I </span></p>
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<p><span>'हस्र क्या होगा उन्हें भी ज्ञात होगा'----इस मिसरे में 'हस्र ' को "हश्र" कर लें I </span></p>
<p>जनाब लक्ष्मण शामी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I </p>
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<p><span>'फिर दिखेगा मौत का मन्जर वृहद ही'---इस मिसरे में 'मन्जर' को "मंज़र" कर लें I </span></p>
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<p><span>'आसमाँ को बाँटने की हो न साजिस'--- इस मिसरे में 'साजिस' को "साज़िश" कर लें I </span></p>
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<p><span>'हस्र क्या होगा उन्हें भी ज्ञात होगा'----इस मिसरे में 'हस्र ' को "हश्र" कर लें I </span></p> आ. राखी जी, अभिवादन। गजल पर उ…tag:openbooks.ning.com,2022-11-24:5170231:Comment:10940752022-11-24T10:17:54.760Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. राखी जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। </p>
<p>आ. राखी जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। </p> बहुत सार्थक सृजन आदरणीय
tag:openbooks.ning.com,2022-11-23:5170231:Comment:10939882022-11-23T19:56:21.045ZRakhee jainhttp://openbooks.ning.com/profile/Rakheejain
<p>बहुत सार्थक सृजन आदरणीय</p>
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<p>बहुत सार्थक सृजन आदरणीय</p>
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