Comments - गौ माँ स्तुति (कनक मंजरी छंद ) - Open Books Online2024-03-29T07:21:19Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1080530&xn_auth=noआदरणीया प्राचीजी, आपकी प्रस्…tag:openbooks.ning.com,2022-03-18:5170231:Comment:10807512022-03-18T15:23:09.786ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
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<p>आदरणीया प्राचीजी, आपकी प्रस्तुति से यह पटल धन्य हुआ.</p>
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<p>इस कष्टसाध्य छंद ’कनकमंजरी’ पर अभ्यास किया जाना पटल की गरिमा के अनुकूल तो है ही, प्रस्तुत अभ्यास सुप्रेरक भी है. तिसपर रचना की भाषा आपने संस्कृत का सरल रूप रखा है, जिसमें माता की शुभ-सज्ञाओं का सुरूचिपूर्ण संकलन विमुग्ध कर रहा है. </p>
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<p>मैं अकसर भाव विभोर होकर महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का श्रवण करता हूँ, <b>जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते</b></p>
<p>आपके प्रस्तुत निर्दोष अभ्यास से मन असीम आनन्द…</p>
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<p>आदरणीया प्राचीजी, आपकी प्रस्तुति से यह पटल धन्य हुआ.</p>
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<p>इस कष्टसाध्य छंद ’कनकमंजरी’ पर अभ्यास किया जाना पटल की गरिमा के अनुकूल तो है ही, प्रस्तुत अभ्यास सुप्रेरक भी है. तिसपर रचना की भाषा आपने संस्कृत का सरल रूप रखा है, जिसमें माता की शुभ-सज्ञाओं का सुरूचिपूर्ण संकलन विमुग्ध कर रहा है. </p>
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<p>मैं अकसर भाव विभोर होकर महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र का श्रवण करता हूँ, <b>जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते</b></p>
<p>आपके प्रस्तुत निर्दोष अभ्यास से मन असीम आनन्द से भर गया है. <b> </b></p>
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<p>वस्तुतः, इस छंद का विन्यास भी दे दिया जाना था. ताकि अभ्यासकर्मी सहज रूप से लाभान्वित हो सकें. </p>
<p>मैं आपकी प्रस्तुति के माध्यम से कनकमंजरी छंद का विन्यास दे रहा हूँ - (<strong>लघु X 4) + (भगण X 6) + गुरु</strong></p>
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<p>आपकी रचनाधर्मिता पर माँ शारदा का आशीष बना रहे. </p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p> </p> आ. प्राची बहन, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2022-03-14:5170231:Comment:10808282022-03-14T02:49:40.793Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. प्राची बहन, सादर अभिवादन। अति उत्तम रचना हुई है। बहुत बहुत बधाई ।</p>
<p>आ. प्राची बहन, सादर अभिवादन। अति उत्तम रचना हुई है। बहुत बहुत बधाई ।</p>