Comments - ग़ज़ल-रख क़दम सँभल के - Open Books Online2024-03-29T06:04:57Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1075027&xn_auth=noआदरणीय समर कबीर सर्, ग़ज़ल तक…tag:openbooks.ning.com,2021-12-22:5170231:Comment:10755172021-12-22T07:04:12.332ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय समर कबीर सर्, ग़ज़ल तक आने तथा इस्लाह करने के लिए बेहद शुक्रिय: । सर्,आपकी इस्लाह से ग़ज़ल सँवर गई। हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>आदरणीय समर कबीर सर्, ग़ज़ल तक आने तथा इस्लाह करने के लिए बेहद शुक्रिय: । सर्,आपकी इस्लाह से ग़ज़ल सँवर गई। हार्दिक धन्यवाद।</p> मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब,…tag:openbooks.ning.com,2021-12-21:5170231:Comment:10753372021-12-21T14:58:23.584ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ओबीओ के तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'वो पहन के पा में पायल गए क्या ज़रा सा चल के</span></p>
<p><span>कई जाम अपने हाथों से शराब के थे छलके'</span></p>
<p><span>ये मतला मुझे भर्ती का लगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>उ'से तुम भी देख लेना कभी यार रुख़ बदल के'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, उचित लगे तो यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'उसे यार देख लेना कभी ख़ुद भी रुख़ बदल…</span></p>
<p>मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ओबीओ के तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'वो पहन के पा में पायल गए क्या ज़रा सा चल के</span></p>
<p><span>कई जाम अपने हाथों से शराब के थे छलके'</span></p>
<p><span>ये मतला मुझे भर्ती का लगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>उ'से तुम भी देख लेना कभी यार रुख़ बदल के'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, उचित लगे तो यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'उसे यार देख लेना कभी ख़ुद भी रुख़ बदल के'</span></p>
<p></p>
<p><span>'कहीं वस्ल पर न बरसे आ के अब्र सरकशी का </span></p>
<p><span>ऐ हवा उड़ा ले जा तू ही फ़िराक़ के धुँधलके'</span></p>
<p><span>इस शैर का ऊला कमज़ोर है,और सानी मिसरे में 'ऐ' को 1 पर लेना उचित नहीं,यूँ कह सकती हैं:-</span></p>
<p><span>'शब-ए-वस्ल पर न बरसें कहीं सरकशी के बादल</span></p>
<p><span>तू हवा उड़ा के लेजा ये फ़िराक़ के धुँधलके'</span></p>
<p></p>
<p><span>6</span></p>
<p><span>'न है शम्स का उजाला न ही रात का अँधेरा</span></p>
<p><span>न पता कहाँ को पहुँचेंगे यहाँ से हम निकल के'</span></p>
<p><span>इस शैर को यूँ कहा जा सकता है:-</span></p>
<p><span>'नहीं शम्स का उजाला न क़मर की रौशनी है</span></p>
<p><span>कहाँ जाएँगे बता हम तेरी बज़्म से निकल के'</span></p>
<p></p>
<p><span>'नहीं रोकना क़दम तूँ कभी वहशियों से डर कर</span></p>
<p><span>वो रुकेगा ख़ुद ही "निर्मल" किसी दामिनी से जल के'</span></p>
<p><span>इस शैर में शुतर गुरबा ऐब है,यूँ कह सकती हैं;-</span></p>
<p><span>'नहीं रोकना क़दम तू कभी वहशियों से डर कर</span></p>
<p><span>वो रुकेंगे ख़ुद ही "निर्मल" किसी दामिनी से जल के'</span></p>
<p><span>बाक़ी शुभ शुभ ।</span></p> नमस्ते जी, बहुत ही बढ़िया प्र…tag:openbooks.ning.com,2021-12-13:5170231:Comment:10750372021-12-13T04:35:45.242ZShyam Narain Vermahttp://openbooks.ning.com/profile/ShyamNarainVerma
नमस्ते जी, बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर
नमस्ते जी, बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर //किस किस मिसरअ को ठीक करना ह…tag:openbooks.ning.com,2021-12-12:5170231:Comment:10750292021-12-12T18:06:31.771Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>//किस किस मिसरअ को ठीक करना है यह बता दें सुधारने में आसानी होगी।//</p>
<p>वैसे मैं इस लायक़ तो नहीं हूँ लेकिन आपने आग्रह किया है तो बताने की कोशिश करता हूँ। सादर।</p>
<p>1</p>
<p><strong>है ये</strong> इश्क़ की डगर तू ज़रा रख क़दम सँभल के मतले का शिल्प कमज़ोर है, ऊला में "है ये" को <strong>"ये है"</strong> करना बहतर होगा, </p>
<p>चला जाएगा वगरना <strong>तेरा चैन इस प चल के </strong>सानी मिसरे का शिल्प और भाव स्पष्ट किये जाने की ज़रूरत है। </p>
<p>2</p>
<p>वो पहन के…</p>
<p>//किस किस मिसरअ को ठीक करना है यह बता दें सुधारने में आसानी होगी।//</p>
<p>वैसे मैं इस लायक़ तो नहीं हूँ लेकिन आपने आग्रह किया है तो बताने की कोशिश करता हूँ। सादर।</p>
<p>1</p>
<p><strong>है ये</strong> इश्क़ की डगर तू ज़रा रख क़दम सँभल के मतले का शिल्प कमज़ोर है, ऊला में "है ये" को <strong>"ये है"</strong> करना बहतर होगा, </p>
<p>चला जाएगा वगरना <strong>तेरा चैन इस प चल के </strong>सानी मिसरे का शिल्प और भाव स्पष्ट किये जाने की ज़रूरत है। </p>
<p>2</p>
<p>वो पहन के <strong>पा में</strong> पायल गए क्या ज़रा सा चल के मिसरों में रब्त स्पष्ट नहीं है, <strong>"पा में"</strong> भर्ती के शब्द हैं, इसकी जगह <strong>"आज"</strong> </p>
<p>कई जाम अपने हाथों से शराब के थे छलके कर सकते हैं। सानी मिसरे का शिल्प कसावट चाहता है। </p>
<p>3</p>
<p>न ज़ुबान से मुकरना न क़रार तू भुलाना. इस शे'र के ऊला को यूँ कर सकते हैं- "मेरा साथ देने वाले न क़रार तोड़ देना </p>
<p><strong>कि मैं</strong> ख़्वाब देखती हूँ तेरे साथ अपने कल के सानी में 'कि मैं' की जगह <strong>'बड़े'</strong> करना उचित होगा। </p>
<p>4</p>
<p>किया आइना शराफ़त का जो तुमने सम्त मेरी बहुत ख़ूब। </p>
<p>उसे <strong>तुम</strong> भी देख लेना कभी यार रुख़ बदल के <strong>"ख़ुद" </strong></p>
<p>5</p>
<p style="text-align: left;">कहीं वस्ल पर न बरसे <strong>आ के अब्र सरकशी का</strong> दोनों मिसरों के उत्तरार्द्ध के शिल्प और वाक्य विन्यास</p>
<p>ऐ हवा उड़ा ले जा तू <strong>ही</strong> <strong>फ़िराक़ के धुँधलके </strong> और '<strong>आ के</strong>' व '<strong>ही</strong>' में मात्रा पतन ठीक नहीं हैं। </p>
<p>6</p>
<p>न है शम्स का उजाला न ही रात का अँधेरा. ये शे'र भर्ती का है, शिल्प और कथ्य भी स्पष्ट नहीं है। </p>
<p>न पता कहाँ को पहुँचेंगे यहाँ से हम निकल के</p>
<p>7</p>
<p>नहीं रोकना क़दम <strong>तूँ</strong> कभी <strong>वहशियों</strong> से डर कर. इस शे'र में शुतरगुर्बा ऐब है 'तूँ' को <strong>'तू' </strong>कर लें। </p>
<p><strong>वो रुकेगा</strong> ख़ुद ही "निर्मल" किसी दामिनी से जल के</p> आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज…tag:openbooks.ning.com,2021-12-12:5170231:Comment:10749442021-12-12T14:53:24.720ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल तक आने के लिए बेहद शुक्रिय: । आदरणीय, किस किस मिसरअ को ठीक करना है यह बता दें सुधारने में आसानी होगी।</p>
<p>सादर।</p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल तक आने के लिए बेहद शुक्रिय: । आदरणीय, किस किस मिसरअ को ठीक करना है यह बता दें सुधारने में आसानी होगी।</p>
<p>सादर।</p> मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब,…tag:openbooks.ning.com,2021-12-12:5170231:Comment:10748642021-12-12T09:40:53.317Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, ग़ज़ल अभी मेहनत चाहती है, बहरहाल प्रयास के लिए आपको बधाई। सादर।</p>
<p>मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, ग़ज़ल अभी मेहनत चाहती है, बहरहाल प्रयास के लिए आपको बधाई। सादर।</p>