Comments - ग़ज़ल-तुम्हारे प्यार के क़ाबिल - Open Books Online2024-03-28T12:55:27Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1073951&xn_auth=noबहुत बहुत शुक्रिया आदणीय अमीर…tag:openbooks.ning.com,2021-12-05:5170231:Comment:10745522021-12-05T16:03:53.438Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>बहुत बहुत शुक्रिया आदणीय अमीरुद्दीन जी...सादर</p>
<p>बहुत बहुत शुक्रिया आदणीय अमीरुद्दीन जी...सादर</p> जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब…tag:openbooks.ning.com,2021-12-04:5170231:Comment:10747142021-12-04T10:24:05.219Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मुद्दआ पर निलेश जी से सहमत हूँ।</p>
<p>//मेरी पिछली ग़ज़ल में मैंने एक शब्द लिया था मियाद ..जो बहुत ही आम फ़हम व प्रचलित शब्द है लेकिन समर सर ने बताया कि उसे मीआद पढ़ा जाता है..</p>
<p>इस पर उन से व्हाट्स एप्प पर काफी बहस के बाद मैंने उस मिसरे को बदल दिया और मुझे लगता है कि मिसरा पहले से बेहतर हो गया.//</p>
<p>निलेश जी अभी तक आपने ओ बी ओ पर पोस्ट उस ग़ज़ल में मिसरा बदला नहीं है, अभी भी 'मियाद' ही है। देखियेेगा। </p>
<p>जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मुद्दआ पर निलेश जी से सहमत हूँ।</p>
<p>//मेरी पिछली ग़ज़ल में मैंने एक शब्द लिया था मियाद ..जो बहुत ही आम फ़हम व प्रचलित शब्द है लेकिन समर सर ने बताया कि उसे मीआद पढ़ा जाता है..</p>
<p>इस पर उन से व्हाट्स एप्प पर काफी बहस के बाद मैंने उस मिसरे को बदल दिया और मुझे लगता है कि मिसरा पहले से बेहतर हो गया.//</p>
<p>निलेश जी अभी तक आपने ओ बी ओ पर पोस्ट उस ग़ज़ल में मिसरा बदला नहीं है, अभी भी 'मियाद' ही है। देखियेेगा। </p> वाह...आपका सुझाव बहुत ही खूबस…tag:openbooks.ning.com,2021-12-01:5170231:Comment:10742492021-12-01T06:27:54.354Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>वाह...आपका सुझाव बहुत ही खूबसूरत है आदरणीय नीलेश जी</p>
<p></p>
<p><span>किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल </span></p>
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<p>वाह...आपका सुझाव बहुत ही खूबसूरत है आदरणीय नीलेश जी</p>
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<p><span>किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल </span></p>
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<p></p> आ. बृजेश जी जरा सा मसअला है…tag:openbooks.ning.com,2021-12-01:5170231:Comment:10741052021-12-01T06:13:43.798ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. बृजेश जी <br/><span>जरा सा मसअला है ये नही तकरार के क़ाबिल... तकरार के क़ाबिल नहीं है तो अच्छा ही हुआ न ..क्यूँ कि तक्रार तो मतान्तर से उपजती है <br/></span>.<br/><span>चलो माना नहीं हूँ मैं तुम्हारे प्यार के क़ाबि</span><br/>किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल </p>
<p>आ. बृजेश जी <br/><span>जरा सा मसअला है ये नही तकरार के क़ाबिल... तकरार के क़ाबिल नहीं है तो अच्छा ही हुआ न ..क्यूँ कि तक्रार तो मतान्तर से उपजती है <br/></span>.<br/><span>चलो माना नहीं हूँ मैं तुम्हारे प्यार के क़ाबि</span><br/>किनारा हो नहीं सकता कभी मझधार के क़ाबिल </p> जी बिल्कुल...आप लोगों की तीखी…tag:openbooks.ning.com,2021-12-01:5170231:Comment:10741692021-12-01T06:09:52.626Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>जी बिल्कुल...आप लोगों की तीखी बहस में भी काफी कुछ सीखने को ही मिलता है।</p>
<p>जी बिल्कुल...आप लोगों की तीखी बहस में भी काफी कुछ सीखने को ही मिलता है।</p> आ. बृजेश जी, आप तो आप .. मैं…tag:openbooks.ning.com,2021-12-01:5170231:Comment:10741042021-12-01T06:07:38.926ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. बृजेश जी, <br></br>आप तो आप .. मैं भी अक्सर समर सर के सानिध्य में सीखता हूँ.. कई बार तीखी बहस भी हो जाती है लेकिन यदि उनका पॉइंट वैलिड है तो माँ लेता हूँ..<br></br>मेरी पिछली ग़ज़ल में मैंने एक शब्द लिया था मियाद ..जो बहुत ही आम फ़हम व प्रचलित शब्द है लेकिन समर सर ने बताया कि उसे मीआद पढ़ा जाता है..<br></br>इस पर उन से व्हाट्स एप्प पर काफी बहस के बाद मैंने उस मिसरे को बदल दिया और मुझे लगता है कि मिसरा पहले से बेहतर हो गया.<br></br>इस मंच का और सुधि जनों की तेज़ नज़रों का लाभ जितना लूटा जा सके लूटा जाना…</p>
<p>आ. बृजेश जी, <br/>आप तो आप .. मैं भी अक्सर समर सर के सानिध्य में सीखता हूँ.. कई बार तीखी बहस भी हो जाती है लेकिन यदि उनका पॉइंट वैलिड है तो माँ लेता हूँ..<br/>मेरी पिछली ग़ज़ल में मैंने एक शब्द लिया था मियाद ..जो बहुत ही आम फ़हम व प्रचलित शब्द है लेकिन समर सर ने बताया कि उसे मीआद पढ़ा जाता है..<br/>इस पर उन से व्हाट्स एप्प पर काफी बहस के बाद मैंने उस मिसरे को बदल दिया और मुझे लगता है कि मिसरा पहले से बेहतर हो गया.<br/>इस मंच का और सुधि जनों की तेज़ नज़रों का लाभ जितना लूटा जा सके लूटा जाना चाहिए.<br/> </p> ऐसे कहता हूँ
जरा सा मसअला है…tag:openbooks.ning.com,2021-12-01:5170231:Comment:10742482021-12-01T06:04:34.006Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>ऐसे कहता हूँ</p>
<p>जरा सा मसअला है ये नही तकरार के क़ाबिल</p>
<p>चलो माना नहीं हूँ मैं तुम्हारे प्यार के क़ाबिल</p>
<p>ऐसे कहता हूँ</p>
<p>जरा सा मसअला है ये नही तकरार के क़ाबिल</p>
<p>चलो माना नहीं हूँ मैं तुम्हारे प्यार के क़ाबिल</p> उचित है आदरणीय नीलेश जी...ये…tag:openbooks.ning.com,2021-12-01:5170231:Comment:10743482021-12-01T06:01:36.283Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p>उचित है आदरणीय नीलेश जी...ये सच है कि साहित्य में मेरी जानकारी बहुत ही अल्प है...बस कुछ कहना चाहता हूँ सो भावों को शब्दों का रूप देने की कोशिश करता हूँ...इसलिए थोड़ी बहुत जानकारी ओ बी ओ जैसे प्लेटफॉर्म से आप लोगों के सानिध्य में प्राप्त हुई है।और उर्दू शब्दों का ज्ञान तो और भी कम है।जो बोलते हैं उसे ही सही मान लेते हैं।सुधार करने के कोशिश करता हुँ... सादर</p>
<p>उचित है आदरणीय नीलेश जी...ये सच है कि साहित्य में मेरी जानकारी बहुत ही अल्प है...बस कुछ कहना चाहता हूँ सो भावों को शब्दों का रूप देने की कोशिश करता हूँ...इसलिए थोड़ी बहुत जानकारी ओ बी ओ जैसे प्लेटफॉर्म से आप लोगों के सानिध्य में प्राप्त हुई है।और उर्दू शब्दों का ज्ञान तो और भी कम है।जो बोलते हैं उसे ही सही मान लेते हैं।सुधार करने के कोशिश करता हुँ... सादर</p> आप मुद्द आ का उर्दू रूप देखें…tag:openbooks.ning.com,2021-12-01:5170231:Comment:10743462021-12-01T03:08:17.946ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आप मुद्द आ का उर्दू रूप देखें ..</p>
<h3><span>مدعا मीम , दाल , ऐन मिलकर मुद्द और बाद का अलिफ़ आ बना रहे हैं <br></br><br></br></span></h3>
<p><span>दिल</span> <span>मुद्दई' </span><span>ओ</span> <span>दीदा </span><span>बना</span> <span>मुद्दा-अलैह २२१ २ १२ १ १ २ <span style="font-size: 14pt;"><strong>२ १ २</strong> </span>१२ बोल्ड २१२ <span style="font-size: 14pt;"><strong>मुद्द आ</strong></span> है </span></p>
<p><span>नज़्ज़ारे</span> <span>का</span> <span>मुक़द्दमा</span> <span>फिर…</span></p>
<p>आप मुद्द आ का उर्दू रूप देखें ..</p>
<h3><span>مدعا मीम , दाल , ऐन मिलकर मुद्द और बाद का अलिफ़ आ बना रहे हैं <br/><br/></span></h3>
<p><span>दिल</span> <span>मुद्दई' </span><span>ओ</span> <span>दीदा </span><span>बना</span> <span>मुद्दा-अलैह २२१ २ १२ १ १ २ <span style="font-size: 14pt;"><strong>२ १ २</strong> </span>१२ बोल्ड २१२ <span style="font-size: 14pt;"><strong>मुद्द आ</strong></span> है </span></p>
<p><span>नज़्ज़ारे</span> <span>का</span> <span>मुक़द्दमा</span> <span>फिर</span> <span>रू-ब-कार</span> <span>है</span></p> आ. बृजेश जी,मुद्दआ को आम बोलच…tag:openbooks.ning.com,2021-12-01:5170231:Comment:10742462021-12-01T02:57:24.919ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. बृजेश जी,<br/><br/>मुद्दआ को आम बोलचाल में मुद्दा ही पढ़ा जाने लगा है लेकिन साहित्य में लिखते समय शुद्ध रूप मुद्दआ लिखना ही श्रेयस्कर होगा.<br/>आप ने फ़ानी साहब का जो शे'र पेश किया है उस की तक्तीअ करें तो पाएँगे कि वहां भी मुद्द आ ए हयात पढ़ा गया है ..<br/>यही हाल शमअ का शमा होने से हुआ है .<br/>ग़ालिब के शे'र को भी पढेंगे तो पाएँगे कि बहर में पढ़ते समय मुद्दआ ही पढ़ा जाता है ..<br/>अत: आश्वस्त रहें कि सहीह शब्द मुद्द आ ही है और उर्दू में ऐसे ही बरता जाता है .<br/>सादर </p>
<p>आ. बृजेश जी,<br/><br/>मुद्दआ को आम बोलचाल में मुद्दा ही पढ़ा जाने लगा है लेकिन साहित्य में लिखते समय शुद्ध रूप मुद्दआ लिखना ही श्रेयस्कर होगा.<br/>आप ने फ़ानी साहब का जो शे'र पेश किया है उस की तक्तीअ करें तो पाएँगे कि वहां भी मुद्द आ ए हयात पढ़ा गया है ..<br/>यही हाल शमअ का शमा होने से हुआ है .<br/>ग़ालिब के शे'र को भी पढेंगे तो पाएँगे कि बहर में पढ़ते समय मुद्दआ ही पढ़ा जाता है ..<br/>अत: आश्वस्त रहें कि सहीह शब्द मुद्द आ ही है और उर्दू में ऐसे ही बरता जाता है .<br/>सादर </p>