Comments - ग़ज़ल: किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये - Open Books Online2024-03-28T18:57:14Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1070935&xn_auth=noजी आदरणीय ब्रज जी बस कोशिश जा…tag:openbooks.ning.com,2021-10-18:5170231:Comment:10712452021-10-18T07:50:16.592ZAazi Tamaamhttp://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>जी आदरणीय ब्रज जी बस कोशिश जारी है</p>
<p>आपका आभार ग़ज़ल तक आने के लिये</p>
<p>ऐसा लगता है की शायद दोषरहित ग़ज़ल लिखना असंभव है</p>
<p>अभी तक तो बाकी तो सब गुणीजनों की इस्लाह से इतना हुआ है कोशिश रहेगी आगे भी सुधार हो</p>
<p>समर गुरु जी जैसे निस्वार्थ इस्लाहकारों को ख़ुदा लंबी उम्र बख़्शे</p>
<p>सादर</p>
<p>जी आदरणीय ब्रज जी बस कोशिश जारी है</p>
<p>आपका आभार ग़ज़ल तक आने के लिये</p>
<p>ऐसा लगता है की शायद दोषरहित ग़ज़ल लिखना असंभव है</p>
<p>अभी तक तो बाकी तो सब गुणीजनों की इस्लाह से इतना हुआ है कोशिश रहेगी आगे भी सुधार हो</p>
<p>समर गुरु जी जैसे निस्वार्थ इस्लाहकारों को ख़ुदा लंबी उम्र बख़्शे</p>
<p>सादर</p> जी आदरणीय अमीर जी सहृदय शुक्र…tag:openbooks.ning.com,2021-10-18:5170231:Comment:10713292021-10-18T07:44:39.934ZAazi Tamaamhttp://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p>जी आदरणीय अमीर जी सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल तक आने के लिये</p>
<p>आपका दिल से आभार</p>
<p>जी आदरणीय अमीर जी सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल तक आने के लिये</p>
<p>आपका दिल से आभार</p> सहृदय शुक्रिया आ नूर जी
आपकी…tag:openbooks.ning.com,2021-10-18:5170231:Comment:10714172021-10-18T07:43:39.300ZAazi Tamaamhttp://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p> सहृदय शुक्रिया आ नूर जी</p>
<p>आपकी ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद आती है</p>
<p>ग़ज़ल तक आने के लिये शुक्रिया</p>
<p>मैं इस ग़ज़ल को जल्द ही दुरुस्त कर दूंगा कोशिश जारी है</p>
<p> सहृदय शुक्रिया आ नूर जी</p>
<p>आपकी ग़ज़ल मुझे बहुत पसंद आती है</p>
<p>ग़ज़ल तक आने के लिये शुक्रिया</p>
<p>मैं इस ग़ज़ल को जल्द ही दुरुस्त कर दूंगा कोशिश जारी है</p> भाई आजी तमाम जी जिस तरह से आप…tag:openbooks.ning.com,2021-10-17:5170231:Comment:10712342021-10-17T11:14:57.033Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooks.ning.com/profile/brijeshkumar
<p style="text-align: left;">भाई आजी तमाम जी जिस तरह से आप मेहनत कर रहे हैं...निश्चय ही एक दिन दोषरहित ग़ज़ल कहेंगे...ऐसी मेरी शुभकामनाएं हैं।</p>
<p style="text-align: left;">भाई आजी तमाम जी जिस तरह से आप मेहनत कर रहे हैं...निश्चय ही एक दिन दोषरहित ग़ज़ल कहेंगे...ऐसी मेरी शुभकामनाएं हैं।</p> जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़…tag:openbooks.ning.com,2021-10-14:5170231:Comment:10711512021-10-14T11:25:04.087Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल की अच्छी कोशिश हुई है बधाई स्वीकार करें। मुहतरम समर कबीर साहिब ने मुकम्मल इस्लाह कर दी है। सादर। </p>
<p>जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल की अच्छी कोशिश हुई है बधाई स्वीकार करें। मुहतरम समर कबीर साहिब ने मुकम्मल इस्लाह कर दी है। सादर। </p> आ. आज़ी साहबमतला क्या कहना चाह…tag:openbooks.ning.com,2021-10-14:5170231:Comment:10710922021-10-14T03:29:23.326ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. आज़ी साहब<br/>मतला क्या कहना चाहता है यह स्पष्ट नहीं है..बाकी सब समर सर कह ही चुके हैं..<br/>प्रयास के लिए बधाई <br/>सादर </p>
<p>आ. आज़ी साहब<br/>मतला क्या कहना चाहता है यह स्पष्ट नहीं है..बाकी सब समर सर कह ही चुके हैं..<br/>प्रयास के लिए बधाई <br/>सादर </p> सादर प्रणाम गुरु जी
सहृदय शु…tag:openbooks.ning.com,2021-10-11:5170231:Comment:10709592021-10-11T10:19:19.293ZAazi Tamaamhttp://openbooks.ning.com/profile/AaziTamaa
<p> सादर प्रणाम गुरु जी</p>
<p>सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल पर बारीकी से गौर फरमाने के लिये</p>
<p></p>
<p>दिल से आभार</p>
<p>मैं कोशिश करूँगा दुरुस्त करने की</p>
<p> सादर प्रणाम गुरु जी</p>
<p>सहृदय शुक्रिया ग़ज़ल पर बारीकी से गौर फरमाने के लिये</p>
<p></p>
<p>दिल से आभार</p>
<p>मैं कोशिश करूँगा दुरुस्त करने की</p> जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ओबीओ क…tag:openbooks.ning.com,2021-10-11:5170231:Comment:10708702021-10-11T09:40:10.736ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ओबीओ के तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है , बधाई स्वीकार करें I </p>
<p></p>
<p>`किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये</p>
<p>किसी के हुस्न का सैलाब देखने के लिये`</p>
<p>मतला नहीं हुआ , दोनों मिसरे अलग अलग हैं इनमें रब्त पैदा नहीं हो सका , ग़ौर करें I </p>
<p></p>
<p><span>`वो गुलबदन वो आब ओ ताब देखने के लिये`</span></p>
<p><span>ये मिसरा बह्र में नहीं है , देखियेगा I </span></p>
<p></p>
<p>`छुआ तो जाना हर इक ख़ाब था धुंआ यारो`</p>
<p>इस मिसरे में `ख़ाब` को "ख़्वाब"…</p>
<p>जनाब आज़ी तमाम जी आदाब, ओबीओ के तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है , बधाई स्वीकार करें I </p>
<p></p>
<p>`किसी कँवल का हंसीं ख़ाब देखने के लिये</p>
<p>किसी के हुस्न का सैलाब देखने के लिये`</p>
<p>मतला नहीं हुआ , दोनों मिसरे अलग अलग हैं इनमें रब्त पैदा नहीं हो सका , ग़ौर करें I </p>
<p></p>
<p><span>`वो गुलबदन वो आब ओ ताब देखने के लिये`</span></p>
<p><span>ये मिसरा बह्र में नहीं है , देखियेगा I </span></p>
<p></p>
<p>`छुआ तो जाना हर इक ख़ाब था धुंआ यारो`</p>
<p>इस मिसरे में `ख़ाब` को "ख़्वाब" और `धुंआ` को "धुआँ " कर लें I </p>
<p></p>
<p>`करीब जा के हर एक चीज खोयी है हमने</p>
<p>लुटे हैं खुद को ही ईजाब देखने के लिये`</p>
<p>इस शे`र के ऊला मिसरे में `करीब` को "क़रीब" और `एक` को "इक" कर लें , और सानी मिसरे में "ईजाब" शब्द का अर्थ होता है मंज़ूर , क़ुबूल , जो यहाँ काम नहीं दे रहा है , देखियेगा I</p>
<p></p>
<p>`हाँ एक बार किया था भरम निग़ाहों ने</p>
<p>दिली पसंद का आदाब देखने के लिये`</p>
<p>इस शे`र का भाव मेरी समझ में नहीं आया I </p>
<p>गिरह का मिसरा अच्छा है I </p>
<p></p>
<p>`न जाने ख़ाक-बसर हुईं कितनी ज़िंदग़ियाँ</p>
<p>सुकून ओ चैन का पायाब देखने के लिये`</p>
<p>इस शे`र का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है, और सानी में इज़ाफ़त का इस्तेमाल मुनासिब नहीं है क्योंकि `चैन` शब्द हिन्दी भाषा का है और `सुकून`शब्द अरबी भाषा का I </p>
<p></p>
<p>`तरस गये हैं ज़फ़रयाब देखने के लिये`</p>
<p>इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा :-</p>
<p>`यहाँ तो ख़ुद को ज़फ़रयाब देखने के लिये `</p>
<p>बाक़ी शुभ शुभ I </p>
<p> </p>