Comments - अंतिम इच्छा (लघुकथा) - Open Books Online2024-03-29T10:08:58Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1067981&xn_auth=noनमस्ते आदरणीय समर भाई
अनिल जी…tag:openbooks.ning.com,2021-09-14:5170231:Comment:10683512021-09-14T14:50:12.463ZKALPANA BHATT ('रौनक़')http://openbooks.ning.com/profile/KALPANABHATT832
<p>नमस्ते आदरणीय समर भाई</p>
<p>अनिल जी एवं आपकी टिप्पणियों से सहमत हूँ मैं भी। जी मानती हूँ इस लघुकथा में समय देना होगा। ओबीओ से हमेंशा से मार्गदर्शन मिलता रहा है। इस रचना को पोस्ट करते समय पुराने दीनी की याद आ गयी थी। जी इसमें कार्य अवश्य करूँगी। </p>
<p>नमस्ते आदरणीय समर भाई</p>
<p>अनिल जी एवं आपकी टिप्पणियों से सहमत हूँ मैं भी। जी मानती हूँ इस लघुकथा में समय देना होगा। ओबीओ से हमेंशा से मार्गदर्शन मिलता रहा है। इस रचना को पोस्ट करते समय पुराने दीनी की याद आ गयी थी। जी इसमें कार्य अवश्य करूँगी। </p> बहना कल्पना भट्ट "रौनक़" जी आद…tag:openbooks.ning.com,2021-09-14:5170231:Comment:10685292021-09-14T14:22:39.513ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>बहना कल्पना भट्ट "रौनक़" जी आदाब, लघुकथा का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब अनिल मकारिया जी से सहमत हूँ ।</p>
<p>बहना कल्पना भट्ट "रौनक़" जी आदाब, लघुकथा का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब अनिल मकारिया जी से सहमत हूँ ।</p> बढ़िया! मानवेत्तर लघुकथा।
यह स…tag:openbooks.ning.com,2021-09-13:5170231:Comment:10682302021-09-13T13:08:34.652ZAnil Makariyahttp://openbooks.ning.com/profile/AnilMakariya
बढ़िया! मानवेत्तर लघुकथा।<br />
यह स्पष्ट है कि इस लघुकथा को टाइम देने की जरूरत है।<br />
इस लघुकथा को मौजूदा लंबाई से थोड़ा छोटा किया जाना बेहतर होगा, कुछ अनावश्यक संवाद छोटे किये जा सकते हैं अथवा हटाये जा सकते हैं।<br />
मेरे विचार से,<br />
'फिर हमेशा के लिए आंखे बंद कर ली।' इस वाक्य पर ही अंत हो तो बेहतर।<br />
'पर सच में' को<br />
इसे तरह लिखिये 'लेकिन असल में...'<br />
<br />
दीदी वैसे आप स्वंय तीन-चार बार पढ़कर बेहतर ठीक कर लोगे।<br />
कथ्य एवं कथानक बढ़िया है ।<br />
शीर्षक अच्छा है।
बढ़िया! मानवेत्तर लघुकथा।<br />
यह स्पष्ट है कि इस लघुकथा को टाइम देने की जरूरत है।<br />
इस लघुकथा को मौजूदा लंबाई से थोड़ा छोटा किया जाना बेहतर होगा, कुछ अनावश्यक संवाद छोटे किये जा सकते हैं अथवा हटाये जा सकते हैं।<br />
मेरे विचार से,<br />
'फिर हमेशा के लिए आंखे बंद कर ली।' इस वाक्य पर ही अंत हो तो बेहतर।<br />
'पर सच में' को<br />
इसे तरह लिखिये 'लेकिन असल में...'<br />
<br />
दीदी वैसे आप स्वंय तीन-चार बार पढ़कर बेहतर ठीक कर लोगे।<br />
कथ्य एवं कथानक बढ़िया है ।<br />
शीर्षक अच्छा है।