Comments - मौसम को ....... - Open Books Online2024-03-29T11:23:14Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1065574&xn_auth=no//पुनः, देखें, आदरणीय, यह सुइ…tag:openbooks.ning.com,2021-08-18:5170231:Comment:10668232021-08-18T12:54:43.130ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p><span>//पुनः, देखें, आदरणीय, यह </span><strong>सुइ</strong><span> नहीं, </span><strong>सुई</strong><span> है.//</span></p>
<p><span>टंकण त्रुटि:-)))</span></p>
<p></p>
<p><span>//क्या कह दिया आपने ? अवसर मिलते ही सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा//</span></p>
<p><span>क्या आप मेरे दिये उदाहरण से मुतमइन नहीं हुए? </span></p>
<p><span>आपके उदाहरण के लिये इन्तिज़ार रहेगा ।</span></p>
<p></p>
<p>//बहरहाल, हम इस बिन्दू पर चर्चा समाप्त करें//</p>
<p>बहतर है, बाक़ी बातें फ़ोन पर कर लेंगे ।</p>
<p><span>//पुनः, देखें, आदरणीय, यह </span><strong>सुइ</strong><span> नहीं, </span><strong>सुई</strong><span> है.//</span></p>
<p><span>टंकण त्रुटि:-)))</span></p>
<p></p>
<p><span>//क्या कह दिया आपने ? अवसर मिलते ही सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा//</span></p>
<p><span>क्या आप मेरे दिये उदाहरण से मुतमइन नहीं हुए? </span></p>
<p><span>आपके उदाहरण के लिये इन्तिज़ार रहेगा ।</span></p>
<p></p>
<p>//बहरहाल, हम इस बिन्दू पर चर्चा समाप्त करें//</p>
<p>बहतर है, बाक़ी बातें फ़ोन पर कर लेंगे ।</p> आदरणीय समर साहब,
आपने मेरे…tag:openbooks.ning.com,2021-08-18:5170231:Comment:10666232021-08-18T12:42:05.335ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय समर साहब, </p>
<p></p>
<p>आपने मेरे कहे को स्वीकार किया, धन्यवाद. </p>
<p></p>
<p>//<span>मैं जानता हूँ कि हिन्दी ज़बान में 'सुइ' ही सहीह है// </span></p>
<p></p>
<p><span>पुनः, देखें, आदरणीय, यह <strong>सुइ</strong> नहीं, <strong>सुई</strong> है. </span></p>
<p>और जनाब, यदि आप जानते थे तो हिन्दी भाषा की लिपि में इस शब्द को रहने दिया जाता न ? आपने तो उसे अशुद्ध ही साबित कर दिया.</p>
<p>जानकारी होना एक बात है और उसी परिप्रेक्ष्य में बात किया जाना एकदम से दूसरी बात. लिखने को तो भाई-बहन…</p>
<p>आदरणीय समर साहब, </p>
<p></p>
<p>आपने मेरे कहे को स्वीकार किया, धन्यवाद. </p>
<p></p>
<p>//<span>मैं जानता हूँ कि हिन्दी ज़बान में 'सुइ' ही सहीह है// </span></p>
<p></p>
<p><span>पुनः, देखें, आदरणीय, यह <strong>सुइ</strong> नहीं, <strong>सुई</strong> है. </span></p>
<p>और जनाब, यदि आप जानते थे तो हिन्दी भाषा की लिपि में इस शब्द को रहने दिया जाता न ? आपने तो उसे अशुद्ध ही साबित कर दिया.</p>
<p>जानकारी होना एक बात है और उसी परिप्रेक्ष्य में बात किया जाना एकदम से दूसरी बात. लिखने को तो भाई-बहन लोग <strong>शृंगार</strong> जैसे शब्द की अक्षरी को <strong>श्रृंगार</strong> बताने और लिखने लगे हैं. क्या कीजिएगा ?</p>
<p></p>
<p>//<span>अलबत्ता में ज़रूर ये कह सकता हूँ कि आप उर्दू के शब्दों को उनके सहीह तलफ़्फ़ुज़ के साथ स्वीकार कर लें तो आपकी बहुत सी उलझनें दूर हो सकती हैं//</span></p>
<p></p>
<p><span>मैं उर्दू में लिखने और उसकी लिपि को बरतने का न कभी दावा करता हूँ, न ऐसा मैंने ऐसा कोई प्रयास किया है. मेरे लेखन की ’प्रवृति’ ही यही है, जो मैं लिखता हूँ.</span> सर्वोपरि, देवनागरी ही हिन्दी भाषा की सांवैधानिक लिपि है. </p>
<p></p>
<p>//<span>यहाँ आप ग़लती पर हैं, उर्दू के दानिशवर 'ख़ुश</span><strong>बू</strong><span>एँ, 'जुग</span><strong>नू</strong><span>एँ' जैसे शब्दों को कभी स्वीकार नहीं करते, और न अपनी रचनाओं में स्थान देते हैं//</span></p>
<p></p>
<p><span>क्या कह दिया आपने ? अवसर मिलते ही सोदाहरण प्रस्तुत किया जाएगा, आदरणीय. .. <strong>:-))))</strong></span></p>
<p></p>
<p>बहरहाल, हम इस बिन्दू पर चर्चा समाप्त करें. </p>
<p></p>
<p>सधन्यवाद. </p>
<p></p> जनाब सौरभ साहिब, मैं जानता हू…tag:openbooks.ning.com,2021-08-18:5170231:Comment:10668222021-08-18T10:46:50.756ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p><span>जनाब सौरभ साहिब, मैं जानता हूँ कि हिन्दी ज़बान में 'सुइ' ही सहीह है, लेकिन आपने जिस शब्दकोष का हवाला दिया है उसमें साफ़ लिखा है कि कहीं कहीं इसे "सूई" भी लिखा और बोला जाता है, बात यहीं स्पष्ट हो गई ।</span></p>
<p></p>
<p><span>//आप हिन्दी के शब्दों को स्वीकार करने लगें, तो आपकी उलझन स्वतः समाप्त हो जाएँगी//</span></p>
<p></p>
<p><span>भाई, मेरे किस अमल से आपने जाना कि मैं हिन्दी के शब्द स्वीकार नहीं करता? अलबत्ता में ज़रूर ये कह सकता हूँ कि आप उर्दू के शब्दों को उनके सहीह तलफ़्फ़ुज़ के साथ…</span></p>
<p><span>जनाब सौरभ साहिब, मैं जानता हूँ कि हिन्दी ज़बान में 'सुइ' ही सहीह है, लेकिन आपने जिस शब्दकोष का हवाला दिया है उसमें साफ़ लिखा है कि कहीं कहीं इसे "सूई" भी लिखा और बोला जाता है, बात यहीं स्पष्ट हो गई ।</span></p>
<p></p>
<p><span>//आप हिन्दी के शब्दों को स्वीकार करने लगें, तो आपकी उलझन स्वतः समाप्त हो जाएँगी//</span></p>
<p></p>
<p><span>भाई, मेरे किस अमल से आपने जाना कि मैं हिन्दी के शब्द स्वीकार नहीं करता? अलबत्ता में ज़रूर ये कह सकता हूँ कि आप उर्दू के शब्दों को उनके सहीह तलफ़्फ़ुज़ के साथ स्वीकार कर लें तो आपकी बहुत सी उलझनें दूर हो सकती हैं:-)))</span></p>
<p></p>
<p>//उपर्युक्त नमूने में आप ’<strong>विशेष</strong>’ के अन्तर्गत उद्धृत वाक्य और उसमें निहित ’<strong>भी’</strong><span> </span>को देखिएगा तथा इस पर ध्यान दीजिएगा.</p>
<p>यह ’<strong>भी</strong> हिन्दी भाषा में<span> </span><em>कहीं-कहीं</em> मान लिए गये हिज्जै के तौर पर ’<strong>सूई</strong>’ के ऊपर यथोचित रौशनी डाल रहा है. इसका अर्थ यह हुआ, कि हिन्दी भाषा के लिए मूलताः<span> </span><strong>सुई </strong>ही शुद्ध अक्षरी है//</p>
<p></p>
<p>इससे कौन इंकार कर सकता है,सहमत हूँ ।</p>
<p></p>
<p><span>//उर्दू के दानिश्वर ’खुश्बूएँ’, ’जुगनूएँ’ आदि जैसे शब्दों को कैसे स्वीकार कर लेते हैं और अपनी रचनाओं में साग्रह स्थान भी देते हैं//</span></p>
<p></p>
<p><span>यहाँ आप ग़लती पर हैं, उर्दू के दानिशवर 'ख़ुश<strong>बू</strong>एँ, 'जुग<strong>नू</strong>एँ' जैसे शब्दों को कभी स्वीकार नहीं करते, और न अपनी रचनाओं में स्थान देते हैं, कुछ उदाहरण देखें,और अपनी ग़लत फ़हमी दूर करें:-</span></p>
<p><span>2122 1212 22/112</span></p>
<p><span>'जुगनुओं की ज़बान समझें तो</span></p>
<p><span>सौ कथाओं की इक कथा जंगल</span></p>
<p><span>(शीन काफ़ निज़ाम)</span></p>
<p><span>2122 2122 2122 212</span></p>
<p>'जुगनुओं को साथ लेकर रात रौशन कीजिए</p>
<p>रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जाएगी'</p>
<p>(डॉ. राहत इंदौरी)</p>
<p>1212 1122 1212 22/112</p>
<p>'हमारे ख़ून से भी उसकी <strong>खुशबुएँ </strong>फूटीं</p>
<p>हमें तो क़त्ल भी कर के वो बेवफ़ा न लगा'</p>
<p>1212 1122 1212 22/112</p>
<p>'वो चाँदनी का बदन <strong>खुशबुओं</strong> का साया है</p>
<p>बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है'</p>
<p>(डॉ. बशीर बद्र)</p>
<p>और आप कहें उतने उदाहरण दे सकता हूँ ।</p>
<p></p>
<p>//और तो और, भोपाल के गली-मुहल्लों, बाज़ारों में ’दवाईयाँ’ किसी भी सचेत जन को मुँह चिढ़ाती दिखती हैं. जबकि व्याकरण, जैसा कि आपने भी लिखा है,<span> </span><strong>दवाईयाँ</strong><span> </span>जैसे शब्द को सर्वथा अशुद्ध ही बताएगा//</p>
<p></p>
<p>ये सिर्फ़ भोपाल के गली मोहल्लों की बात नहीं है,हर जगह ऐसा ही देखने में आता है,और इसके ज़िम्मेदार न तो हिन्दी वाले हैं और न उर्दू वाले,ये छोटी सी बात आपको भी समझना चाहिए । </p>
<p></p>
<p>//एक और उदाहरण देता चलूँ. हिन्दी भाषा का <strong>कुआँ</strong><span> </span>मालवा क्षेत्र में<span> </span><strong>कुआ</strong><span> </span>लिखा जाता है. इस क्षेत्र के हिन्दी भाषी कवि भी कई बार अनायास<span> </span><strong>कुआ</strong> लिख देते हैं. लेकिन जैसा कि स्पष्ट है, कि, हिन्दी में मान्य शब्द <strong>कुआँ</strong> ही है.//</p>
<p></p>
<p>आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि उर्दू शब्दकोष में भी 'कुआँ' ही बताया गया है,'कुआ' नहीं, मालवी कवि इसे 'कुआ' बोलते और लिखते हैं तो ये उनकी ग़लती है ।</p>
<p></p> आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प…tag:openbooks.ning.com,2021-08-18:5170231:Comment:10664982021-08-18T08:25:20.602ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम, हुई की विस्तृत व्याख्या का हार्दिक आभार आदरणीय । ऐसे वार्तालाप निश्चित रूप से ज्ञान की वृद्धि करते हैं ।दिल से आभार आदरणीय
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम, हुई की विस्तृत व्याख्या का हार्दिक आभार आदरणीय । ऐसे वार्तालाप निश्चित रूप से ज्ञान की वृद्धि करते हैं ।दिल से आभार आदरणीय आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooks.ning.com,2021-08-18:5170231:Comment:10666212021-08-18T02:31:42.094Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपका कथन उचित है । उर्दू व हिन्दी में अलग अलग स्वीकारोक्ति के कारण उलझनें उत्पन्न हो जाती हैं । संका समाधान होते रहना चाहिए । इससे मुझ जैसों को बहुत कुछ नया भी सीखने को मिलता है । सादर...</p>
<p>आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपका कथन उचित है । उर्दू व हिन्दी में अलग अलग स्वीकारोक्ति के कारण उलझनें उत्पन्न हो जाती हैं । संका समाधान होते रहना चाहिए । इससे मुझ जैसों को बहुत कुछ नया भी सीखने को मिलता है । सादर...</p> आदरणीय समर कबीर साहब,
आप हिन…tag:openbooks.ning.com,2021-08-17:5170231:Comment:10667222021-08-17T18:14:06.619ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय समर कबीर साहब,</p>
<p></p>
<p>आप हिन्दी के शब्दों को स्वीकार करने लगें, तो आपकी उलझन स्वतः समाप्त हो जाएँगीं. .. <strong>:-))))</strong></p>
<p></p>
<p>उर्दू ने जिस शब्द को ’<strong>सूई</strong>’ लिखा और स्वीकारा है, उसे हिन्दी ने ’<strong>सुई</strong>’ लिख-लिखवा कर स्वीकारा है. बाकी, व्याकरण के नियम सही हैं, जो आपने साझा किये हैं.</p>
<p></p>
<p>परन्तु, आदरणीय, उर्दू के दानिश्वर ’खुश्बूएँ’, ’जुगनूएँ’ आदि जैसे शब्दों को कैसे स्वीकार कर लेते हैं और अपनी रचनाओं में साग्रह स्थान भी…</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब,</p>
<p></p>
<p>आप हिन्दी के शब्दों को स्वीकार करने लगें, तो आपकी उलझन स्वतः समाप्त हो जाएँगीं. .. <strong>:-))))</strong></p>
<p></p>
<p>उर्दू ने जिस शब्द को ’<strong>सूई</strong>’ लिखा और स्वीकारा है, उसे हिन्दी ने ’<strong>सुई</strong>’ लिख-लिखवा कर स्वीकारा है. बाकी, व्याकरण के नियम सही हैं, जो आपने साझा किये हैं.</p>
<p></p>
<p>परन्तु, आदरणीय, उर्दू के दानिश्वर ’खुश्बूएँ’, ’जुगनूएँ’ आदि जैसे शब्दों को कैसे स्वीकार कर लेते हैं और अपनी रचनाओं में साग्रह स्थान भी देते हैं ? उदाहरण के तौर पर तो दसियों अश’आर आपके पास ही होंगे. और तो और, भोपाल के गली-मुहल्लों, बाज़ारों में ’दवाईयाँ’ किसी भी सचेत जन को मुँह चिढ़ाती दिखती हैं. जबकि व्याकरण, जैसा कि आपने भी लिखा है, <strong>दवाईयाँ</strong> जैसे शब्द को सर्वथा अशुद्ध ही बताएगा. </p>
<p></p>
<p><strong>बृहत हिन्दी शब्दकोश, भाग-02 (प्रभात प्रकाशन)</strong> का एक उचित पेज साझा करता हूँ.</p>
<p>विश्वास है, आपकी शंका का समाधान हो सकेगा. </p>
<p></p>
<p><a href="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/9438308867?profile=original" target="_blank" rel="noopener"><img src="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/9438308867?profile=RESIZE_710x" width="400" class="align-left"/></a></p>
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<p></p>
<p></p>
<p>उपर्युक्त नमूने में आप ’<strong>विशेष</strong>’ के अन्तर्गत उद्धृत वाक्य और उसमें निहित ’<strong>भी’</strong> को देखिएगा तथा इस पर ध्यान दीजिएगा.</p>
<p>यह ’<strong>भी</strong> हिन्दी भाषा में <em>कहीं-कहीं</em> मान लिए गये हिज्जै के तौर पर ’<strong>सूई</strong>’ के ऊपर यथोचित रौशनी डाल रहा है. इसका अर्थ यह हुआ, कि हिन्दी भाषा के लिए मूलताः <strong>सुई </strong>ही शुद्ध अक्षरी है.</p>
<p></p>
<p>एक और उदाहरण देता चलूँ. हिन्दी भाषा का <strong>कुआँ</strong> मालवा क्षेत्र में <strong>कुआ</strong> लिखा जाता है. इस क्षेत्र के हिन्दी भाषी कवि भी कई बार अनायास <strong>कुआ</strong> लिख देते हैं. लेकिन जैसा कि स्पष्ट है, कि, हिन्दी में मान्य शब्द <strong>कुआँ</strong> ही है. </p>
<p></p>
<p>विश्वास है, मैं स्पष्ट कर पाया. </p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p> </p> //सुइयाँ सही अक्षरी है//
जनाब…tag:openbooks.ning.com,2021-08-16:5170231:Comment:10667072021-08-16T09:14:36.586ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p><span>//सुइयाँ सही अक्षरी है//</span></p>
<p><span>जनाब सौरभ पाण्डेय जी, एक बात समझना चाहता हूँ कि शब्दकोष में "सूई" बताया गया है, तो इसका बहुवचन 'सुइयाँ' कैसे दुरुस्त होगा, मिसाल के तौर पर "पूड़ी" शब्द का जब बहुवचन लिखा जाता है तो 'डी' में लगी बड़ी 'ई' की मात्रा छोटी 'इ' की होकर "पूड़ियाँ" हो जाती है,इसी तरह 'दूरी' शब्द का बहुवचन 'दूरियाँ' होता है, तो 'सूई' शब्द के बहुवचन में 'स' और 'ई' दोनों मात्राएँ छोटी क्यों ली जाती हैं, कृपया इस पर कुछ रौशनी डालें ।</span></p>
<p><span>//सुइयाँ सही अक्षरी है//</span></p>
<p><span>जनाब सौरभ पाण्डेय जी, एक बात समझना चाहता हूँ कि शब्दकोष में "सूई" बताया गया है, तो इसका बहुवचन 'सुइयाँ' कैसे दुरुस्त होगा, मिसाल के तौर पर "पूड़ी" शब्द का जब बहुवचन लिखा जाता है तो 'डी' में लगी बड़ी 'ई' की मात्रा छोटी 'इ' की होकर "पूड़ियाँ" हो जाती है,इसी तरह 'दूरी' शब्द का बहुवचन 'दूरियाँ' होता है, तो 'सूई' शब्द के बहुवचन में 'स' और 'ई' दोनों मात्राएँ छोटी क्यों ली जाती हैं, कृपया इस पर कुछ रौशनी डालें ।</span></p> आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प…tag:openbooks.ning.com,2021-08-15:5170231:Comment:10664702021-08-15T15:58:06.338ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय जी
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय जी आदरणीय सुशील सरना जी
वाह !…tag:openbooks.ning.com,2021-08-13:5170231:Comment:10664552021-08-13T18:24:47.989ZSaurabh Pandeyhttp://openbooks.ning.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय सुशील सरना जी </p>
<p></p>
<p>वाह ! .. बहाव के प्रभाव को हम खूब महसूस कर पा रहे हैं. </p>
<p></p>
<p>जय-जय</p>
<p></p>
<p></p>
<p>सुइयाँ सही अक्षरी है. </p>
<p></p>
<p>आदरणीय सुशील सरना जी </p>
<p></p>
<p>वाह ! .. बहाव के प्रभाव को हम खूब महसूस कर पा रहे हैं. </p>
<p></p>
<p>जय-जय</p>
<p></p>
<p></p>
<p>सुइयाँ सही अक्षरी है. </p>
<p></p> आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन क…tag:openbooks.ning.com,2021-08-12:5170231:Comment:10665442021-08-12T10:00:09.976ZSushil Sarnahttp://openbooks.ning.com/profile/SushilSarna
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय