Comments - समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" - Open Books Online2024-03-29T00:22:28Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1061317&xn_auth=noआ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर…tag:openbooks.ning.com,2021-06-18:5170231:Comment:10617292021-06-18T13:00:47.080Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति ,स्नेह व भूरीभूरी प्रशंसा लिए हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति ,स्नेह व भूरीभूरी प्रशंसा लिए हार्दिक धन्यवाद।</p> क्या बात क्या बात क्या बात tag:openbooks.ning.com,2021-06-17:5170231:Comment:10616642021-06-17T15:21:56.897Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'http://openbooks.ning.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>क्या बात क्या बात क्या बात </p>
<p>क्या बात क्या बात क्या बात </p> 'अन्नों की बात लोक में ठहरा क…tag:openbooks.ning.com,2021-06-06:5170231:Comment:10613482021-06-06T13:04:41.711ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p><span>'अन्नों की बात लोक में ठहरा के झूठ अब'</span></p>
<p><span>ठीक है अब ।</span></p>
<p><span>'अन्नों की बात लोक में ठहरा के झूठ अब'</span></p>
<p><span>ठीक है अब ।</span></p> आ. भाई समर जी सादर अभिवादन ।…tag:openbooks.ning.com,2021-06-06:5170231:Comment:10612042021-06-06T13:00:37.842Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए हार्दिक आभार।<br/>इंगित मिसरे को यूँ किया है । देखिएगा...</p>
<p><br/>अन्नों की बात लोक में ठहरा के झूठ अब</p>
<p>आ. भाई समर जी सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए हार्दिक आभार।<br/>इंगित मिसरे को यूँ किया है । देखिएगा...</p>
<p><br/>अन्नों की बात लोक में ठहरा के झूठ अब</p> जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' ज…tag:openbooks.ning.com,2021-06-06:5170231:Comment:10614432021-06-06T10:29:01.782ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'लिक्खा सजा के हम ने उजालों ने जो कहा</span><br></br><span>लाया मगर अमल में अँधेरों ने जो कहा'</span></p>
<p><span>मतले में शुतर गुरबा दोष है है,सानी में 'लाया' शब्द को "लाये" करने से ऐब निकल जाएगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'बैठक में ला के रख दी वो शोभा बढ़ाने को'</span></p>
<p><span>सानी में 'किताबों' शब्द बहुवचन है इसलिये इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-</span></p>
<p><span>'बैठक में…</span></p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'लिक्खा सजा के हम ने उजालों ने जो कहा</span><br/><span>लाया मगर अमल में अँधेरों ने जो कहा'</span></p>
<p><span>मतले में शुतर गुरबा दोष है है,सानी में 'लाया' शब्द को "लाये" करने से ऐब निकल जाएगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'बैठक में ला के रख दी वो शोभा बढ़ाने को'</span></p>
<p><span>सानी में 'किताबों' शब्द बहुवचन है इसलिये इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-</span></p>
<p><span>'बैठक में लाके रख तो दीं शोभा बढ़ाने को'</span></p>
<p></p>
<p><span>'इस दौर कह के झूठ है अन्नों की बात को'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में वाक्य विन्यास ठीक नहीं,बदलने का प्रयास करें ।</span></p> आ. भाई रवि शुक्ला जी, सादर अभ…tag:openbooks.ning.com,2021-06-06:5170231:Comment:10613472021-06-06T07:10:13.362Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p><span>आ. भाई रवि शुक्ला जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।</span></p>
<p><span>आ. भाई रवि शुक्ला जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।</span></p> आदरणीय लक्षमण जी इस उम्दा गजल…tag:openbooks.ning.com,2021-06-05:5170231:Comment:10614292021-06-05T15:54:03.245ZRavi Shuklahttp://openbooks.ning.com/profile/RaviShukla
<p><span>आदरणीय लक्षमण जी इस उम्दा गजल के लिये हार्दिक बधाई पेश है नया जोड़ा गया शेर बहुत अच्छा लगा फिर से मुबारक बाद </span></p>
<p><span>आदरणीय लक्षमण जी इस उम्दा गजल के लिये हार्दिक बधाई पेश है नया जोड़ा गया शेर बहुत अच्छा लगा फिर से मुबारक बाद </span></p> प्रिय बहन सुचि, स्नेहाशीष । ग…tag:openbooks.ning.com,2021-06-04:5170231:Comment:10614212021-06-04T04:26:22.717Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>प्रिय बहन सुचि, स्नेहाशीष । गजल पर उपस्थित व प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद। </p>
<p>एकनया शेर जोड़ा है । इसे भी देखिएगा</p>
<p></p>
<p>किसने गिने विवाह में आशीष कितने हैं<br/>भाया हिसाब सबको लिफाफों ने जो कहा।।</p>
<p></p>
<p>प्रिय बहन सुचि, स्नेहाशीष । गजल पर उपस्थित व प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद। </p>
<p>एकनया शेर जोड़ा है । इसे भी देखिएगा</p>
<p></p>
<p>किसने गिने विवाह में आशीष कितने हैं<br/>भाया हिसाब सबको लिफाफों ने जो कहा।।</p>
<p></p> वाहः हर बात डंके की चोट पर यत…tag:openbooks.ning.com,2021-06-04:5170231:Comment:10614192021-06-04T03:06:49.700Zशुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"http://openbooks.ning.com/profile/suchisandeepagarwaal
<p>वाहः हर बात डंके की चोट पर यतार्थ को बयां करती हुई।</p>
<p>सभी शेर एक से बढ़कर एक नए हैं भाई लक्ष्मण धामी जी।</p>
<p>वाहः हर बात डंके की चोट पर यतार्थ को बयां करती हुई।</p>
<p>सभी शेर एक से बढ़कर एक नए हैं भाई लक्ष्मण धामी जी।</p>