Comments - ग़ज़ल- रूह के पार ले जाती रही - Open Books Online2024-03-28T16:22:13Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1042469&xn_auth=noआदरणीय अबोध बालक जी, हौसला बढ…tag:openbooks.ning.com,2021-01-27:5170231:Comment:10433432021-01-27T13:05:39.075ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय अबोध बालक जी, हौसला बढ़ाने के लिए आभार। </p>
<p>आदरणीय अबोध बालक जी, हौसला बढ़ाने के लिए आभार। </p> भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' न…tag:openbooks.ning.com,2021-01-27:5170231:Comment:10431602021-01-27T13:04:04.615ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' नमस्कार। भाई बहुत बहुत धन्यवाद। </p>
<p>भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' नमस्कार। भाई बहुत बहुत धन्यवाद। </p> आदरणीय गुरप्रीत सिंह 'जम्मू'…tag:openbooks.ning.com,2021-01-27:5170231:Comment:10433422021-01-27T13:02:15.894ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय गुरप्रीत सिंह 'जम्मू' जी आभारी हूँ। आपने सही कहा ,सर् का मार्गदर्शन मिलना हमारी खुशकिस्मती ही है। </p>
<p>आदरणीय गुरप्रीत सिंह 'जम्मू' जी आभारी हूँ। आपने सही कहा ,सर् का मार्गदर्शन मिलना हमारी खुशकिस्मती ही है। </p> आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार।…tag:openbooks.ning.com,2021-01-27:5170231:Comment:10432342021-01-27T12:35:39.335ZRachna Bhatiahttp://openbooks.ning.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार। बहुत खूबसूरत आपने मतला बना दिया। सच बताऊं सर् मैंने जो सानी बदलने के लिए सोचा वह मुझे पसंद भी नहीं था। आपने मेरे पहले सानी को लेकर ही मतला बहुत अच्छा बना दिया । आपकी तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।सादर। </p>
<p>आदरणीय समर कबीर सर् नमस्कार। बहुत खूबसूरत आपने मतला बना दिया। सच बताऊं सर् मैंने जो सानी बदलने के लिए सोचा वह मुझे पसंद भी नहीं था। आपने मेरे पहले सानी को लेकर ही मतला बहुत अच्छा बना दिया । आपकी तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।सादर। </p> गजल में आपकी सादगी का गुमां म…tag:openbooks.ning.com,2021-01-25:5170231:Comment:10434092021-01-25T16:51:55.634ZDR ARUN KUMAR SHASTRIhttp://openbooks.ning.com/profile/DRARUNKUMARSHASTRI
<p style="text-align: center;"><em>गजल में आपकी सादगी का गुमां मुझको हुआ है //</em><br/><em>लम्हा लम्हा हरफ ब हरफ बानगी से जुडा हुआ है // </em><br/><em>दीद का अचरज उफनता इसके पहले // </em><br/> <em>शिष्टता ने रोक मुझको लिया है // </em><br/><br/><em>एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त </em></p>
<p style="text-align: center;"><em>गजल में आपकी सादगी का गुमां मुझको हुआ है //</em><br/><em>लम्हा लम्हा हरफ ब हरफ बानगी से जुडा हुआ है // </em><br/><em>दीद का अचरज उफनता इसके पहले // </em><br/> <em>शिष्टता ने रोक मुझको लिया है // </em><br/><br/><em>एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त </em></p> बहुत शुक्रिय: प्रिय ।tag:openbooks.ning.com,2021-01-25:5170231:Comment:10433362021-01-25T13:40:04.391ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>बहुत शुक्रिय: प्रिय ।</p>
<p>बहुत शुक्रिय: प्रिय ।</p> रूह के पार मुझको बुलाती रही'…tag:openbooks.ning.com,2021-01-25:5170231:Comment:10431502021-01-25T13:37:25.172Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p><span>रूह के पार मुझको बुलाती रही'</span></p>
<p><span>क्या कहने.. आ. भाई समर जी।</span></p>
<p><span>रूह के पार मुझको बुलाती रही'</span></p>
<p><span>क्या कहने.. आ. भाई समर जी।</span></p> भाई गुरप्रीत सिंह जी आदाब, बह…tag:openbooks.ning.com,2021-01-25:5170231:Comment:10432302021-01-25T13:18:28.132ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>भाई गुरप्रीत सिंह जी आदाब, बहुत अर्से बाद ओबीओ पर आपको देख कर ख़ुशी हुई ।</p>
<p>भाई गुरप्रीत सिंह जी आदाब, बहुत अर्से बाद ओबीओ पर आपको देख कर ख़ुशी हुई ।</p> /रूह*हर दर्द अपना भुलाती रही/…tag:openbooks.ning.com,2021-01-25:5170231:Comment:10433352021-01-25T13:01:30.308ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooks.ning.com/profile/GurpreetSingh624
<p>/<span>रूह*हर दर्द अपना भुलाती रही//</span></p>
<p><span>यूँ कहें तो:-</span></p>
<p><span>'रूह के पार मुझको बुलाती रही</span></p>
<p></p>
<p><span>वाह वाह आदरणीय समर सर जी । क्या ख़ूब इस्लाह की आपने ।। obo से जुड़े सीखने वालों की खुशकिस्मती है की आप इस मंच पर उनकी रहनुमाई कर रहे हैं </span></p>
<p>/<span>रूह*हर दर्द अपना भुलाती रही//</span></p>
<p><span>यूँ कहें तो:-</span></p>
<p><span>'रूह के पार मुझको बुलाती रही</span></p>
<p></p>
<p><span>वाह वाह आदरणीय समर सर जी । क्या ख़ूब इस्लाह की आपने ।। obo से जुड़े सीखने वालों की खुशकिस्मती है की आप इस मंच पर उनकी रहनुमाई कर रहे हैं </span></p> आदरणीया रचना भाटिया जी नमस्का…tag:openbooks.ning.com,2021-01-25:5170231:Comment:10432282021-01-25T12:55:35.227ZGurpreet Singh jammuhttp://openbooks.ning.com/profile/GurpreetSingh624
<p>आदरणीया रचना भाटिया जी नमस्कार। बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल का प्रयास आपकी तरफ से । पहले दोंनों अशआर बहुत पसंद आए । और कमियों के बारे में तो उस्ताद समर सर जी आपको बता ही चुके हैं </p>
<p>आदरणीया रचना भाटिया जी नमस्कार। बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल का प्रयास आपकी तरफ से । पहले दोंनों अशआर बहुत पसंद आए । और कमियों के बारे में तो उस्ताद समर सर जी आपको बता ही चुके हैं </p>