Comments - ग़ज़ल नूर की- जिन की ख़ातिर हम हुए मिस्मार; पागल हो गये - Open Books Online2024-03-28T14:13:05Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1031360&xn_auth=noधन्यवाद आ. सालिक गणवीर साहबtag:openbooks.ning.com,2020-10-31:5170231:Comment:10362232020-10-31T02:14:14.124ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. सालिक गणवीर साहब</p>
<p>धन्यवाद आ. सालिक गणवीर साहब</p> भाई निलेश ' नूर' जी सादर अभिव…tag:openbooks.ning.com,2020-10-30:5170231:Comment:10362122020-10-30T09:07:12.769Zसालिक गणवीरhttp://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p>भाई निलेश ' नूर' जी <br/>सादर अभिवादन <br/>भाई क्या ग़ज़ल कही आपने,वाह। एक एक लफ्ज़ और हर एक अशआर के लिए तह -ए -दिल से दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल करें।</p>
<p>भाई निलेश ' नूर' जी <br/>सादर अभिवादन <br/>भाई क्या ग़ज़ल कही आपने,वाह। एक एक लफ्ज़ और हर एक अशआर के लिए तह -ए -दिल से दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल करें।</p> शुक्रिया आ. सालिक गणवीर जी tag:openbooks.ning.com,2020-10-23:5170231:Comment:10350982020-10-23T01:37:17.964ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया आ. सालिक गणवीर जी </p>
<p>शुक्रिया आ. सालिक गणवीर जी </p> आदरणीय निलेश 'नूर' साहबसादर अ…tag:openbooks.ning.com,2020-10-21:5170231:Comment:10350632020-10-21T10:26:53.893Zसालिक गणवीरhttp://openbooks.ning.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय निलेश 'नूर' साहब<br/>सादर अभिवादन<br/>एक और शानदार ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें. सादर.</p>
<p>आदरणीय निलेश 'नूर' साहब<br/>सादर अभिवादन<br/>एक और शानदार ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें. सादर.</p> शुक्रिया आ. लक्ष्मण धामी जी tag:openbooks.ning.com,2020-10-20:5170231:Comment:10346472020-10-20T13:24:12.505ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शुक्रिया आ. लक्ष्मण धामी जी </p>
<p>शुक्रिया आ. लक्ष्मण धामी जी </p> आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन…tag:openbooks.ning.com,2020-10-20:5170231:Comment:10346112020-10-20T08:14:53.860Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन । अत्यधिक ध्यानाकर्षक व मनभावन गजल हुई है । कई बार पढ़ चुका पर मन भरा नहीं। इस उद्वेलित करती गजल के लिए ढेरों बधाइयाँ ।</p>
<p>आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन । अत्यधिक ध्यानाकर्षक व मनभावन गजल हुई है । कई बार पढ़ चुका पर मन भरा नहीं। इस उद्वेलित करती गजल के लिए ढेरों बधाइयाँ ।</p> धन्यवाद आ. मीत जी,
मिस्मार का…tag:openbooks.ning.com,2020-10-20:5170231:Comment:10342572020-10-20T02:26:32.760ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. मीत जी,</p>
<p>मिस्मार का अर्थ है तहस नहस, छिन्न भिन्न</p>
<p>सादर</p>
<p>धन्यवाद आ. मीत जी,</p>
<p>मिस्मार का अर्थ है तहस नहस, छिन्न भिन्न</p>
<p>सादर</p> धन्यवाद आ. योगराज सर..एक मिरस…tag:openbooks.ning.com,2020-10-16:5170231:Comment:10321132020-10-16T07:15:29.303ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. योगराज सर..<br/>एक मिरसा दिया गया था कभी मंच पर.."ख़ातिर से या लिहाज से मैं मान तो गया"..<br/>आज आप ख़ातिर या लिहाज में ग़ज़ल तक आए तो दिल बाग़ बाग़ हो गया...<br/>आप की टिप्पणी का हमेशा इंतज़ार रहता है.. लेकिन आपकी भी व्यस्तताएँ हैं..<br/>(वैसे मैं भी कम ही समय दे पा रहा हूँ)<br/>बहुत बहुत आभार </p>
<p>धन्यवाद आ. योगराज सर..<br/>एक मिरसा दिया गया था कभी मंच पर.."ख़ातिर से या लिहाज से मैं मान तो गया"..<br/>आज आप ख़ातिर या लिहाज में ग़ज़ल तक आए तो दिल बाग़ बाग़ हो गया...<br/>आप की टिप्पणी का हमेशा इंतज़ार रहता है.. लेकिन आपकी भी व्यस्तताएँ हैं..<br/>(वैसे मैं भी कम ही समय दे पा रहा हूँ)<br/>बहुत बहुत आभार </p> धन्यवाद आ. बसंत कुमार जी tag:openbooks.ning.com,2020-10-16:5170231:Comment:10319772020-10-16T07:13:35.468ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooks.ning.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. बसंत कुमार जी </p>
<p>धन्यवाद आ. बसंत कुमार जी </p> बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है,
//इ…tag:openbooks.ning.com,2020-10-16:5170231:Comment:10319062020-10-16T07:10:46.934Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooks.ning.com/profile/YograjPrabhakar
<p>बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है,</p>
<p><br></br>//इल्तिजा थी सच को केवल सच के जितना ही लिखें<br></br> बात सुन कर शह्र के अख़बार पागल हो गये.// चौथे खम्बे की चूलें हिला देने वाला शेअर है, वाह वाह वाह! <br></br> .<br></br>//एक बच्चे ने कहीं राजा को नंगा कह दिया <br></br> फिर तो क्या दरबारी क्या अय्यार; पागल हो गये.// दो मिसरों में पूरी कहानी कह दी भाई. सानी में 'दरबारी' का हर्फ़ तो गिरा दिया गया है (जोकि जायज़ है), लेकिन शब्द का मानी बदल गया है. उम्मीद है आप नज्र-ए-सानी ज़रूर फरमाएंगे.</p>
<p><br></br>'//ज़िक्र आया ‘नूर’ का जब…</p>
<p>बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है,</p>
<p><br/>//इल्तिजा थी सच को केवल सच के जितना ही लिखें<br/> बात सुन कर शह्र के अख़बार पागल हो गये.// चौथे खम्बे की चूलें हिला देने वाला शेअर है, वाह वाह वाह! <br/> .<br/>//एक बच्चे ने कहीं राजा को नंगा कह दिया <br/> फिर तो क्या दरबारी क्या अय्यार; पागल हो गये.// दो मिसरों में पूरी कहानी कह दी भाई. सानी में 'दरबारी' का हर्फ़ तो गिरा दिया गया है (जोकि जायज़ है), लेकिन शब्द का मानी बदल गया है. उम्मीद है आप नज्र-ए-सानी ज़रूर फरमाएंगे.</p>
<p><br/>'//ज़िक्र आया ‘नूर’ का जब इक कहानी में कहीं <br/> उस कहानी के सभी किरदार पागल हो गये.// यह जलवा हम लोग देहरादून में देख चुके हैं भाई.<br/><br/>बहुत ही तीखे तेवर में कही गई इस ग़ज़ल ने दिल जीत लिया भाई निलेश नूर जी. शेअर-दर-शेअर ढेरों-देर दाद और मुबारकबाद हाज़िर है.</p>