Comments - मगर हम स्वेद के गायें - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' - Open Books Online2024-03-28T10:47:17Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1011714&xn_auth=noआद0 लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी स…tag:openbooks.ning.com,2020-07-11:5170231:Comment:10120432020-07-11T07:09:05.223Zनाथ सोनांचलीhttp://openbooks.ning.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी सादर अभिवादन। सच बयानी करती हुई अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। बधाई स्वीकार कीजिये</p>
<p>आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी सादर अभिवादन। सच बयानी करती हुई अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। बधाई स्वीकार कीजिये</p> आ. अनविता जी, सादर अभिवादन ।…tag:openbooks.ning.com,2020-07-07:5170231:Comment:10117682020-07-07T08:16:24.281Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. अनविता जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्ददिक आभार ।</p>
<p>आ. अनविता जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्ददिक आभार ।</p> आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर न…tag:openbooks.ning.com,2020-07-07:5170231:Comment:10117582020-07-07T05:23:31.916ZAnvitahttp://openbooks.ning.com/profile/Anvita
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर नमस्कार बहुत सुंदर रचना है।मेरी बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर नमस्कार बहुत सुंदर रचना है।मेरी बधाई स्वीकार करें । आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवाद…tag:openbooks.ning.com,2020-07-07:5170231:Comment:10118332020-07-07T03:49:04.036Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।</p>
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।</p> हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण ध…tag:openbooks.ning.com,2020-07-07:5170231:Comment:10118252020-07-07T03:05:06.279ZTEJ VEER SINGHhttp://openbooks.ning.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' </span>जी। बेहतरीन गज़ल।</p>
<p><span>कहीं पर भूख पसरी है फटे कपड़े पुराने हैं</span><br/><span>भला मैं कैसे कह दूँ ये सभी के दिन सुहाने हैं।१।</span><br/><span>**</span></p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' </span>जी। बेहतरीन गज़ल।</p>
<p><span>कहीं पर भूख पसरी है फटे कपड़े पुराने हैं</span><br/><span>भला मैं कैसे कह दूँ ये सभी के दिन सुहाने हैं।१।</span><br/><span>**</span></p> आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवाद…tag:openbooks.ning.com,2020-07-06:5170231:Comment:10118082020-07-06T17:02:41.037Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति , स्नेह व प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।</p>
<p>आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति , स्नेह व प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।</p> आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, क्या…tag:openbooks.ning.com,2020-07-06:5170231:Comment:10117272020-07-06T15:50:29.052ZDayaram Methanihttp://openbooks.ning.com/profile/DayaramMethani
<p><span>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, क्या खूबसूरत गज़ल लिखी है आपने। बहुत सुंदरता सं सच्चाई काे बयां किया है। इस बेहतरीन सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।</span></p>
<p><span>आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, क्या खूबसूरत गज़ल लिखी है आपने। बहुत सुंदरता सं सच्चाई काे बयां किया है। इस बेहतरीन सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।</span></p>