Comments - उम्मीद क्या करना -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'( गजल) - Open Books Online2024-03-28T12:16:18Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1008960&xn_auth=noआ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।…tag:openbooks.ning.com,2020-06-02:5170231:Comment:10090872020-06-02T10:41:12.856Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।</p>
<p>इंगित मिसरे में आपका कथन उचित है । पर जिस प्रकार हिन्दी में सहीह" को सही के रूप में स्वीकार किया गया है उसी प्रकार "विदा'अ" को विदा के रूप मेंं । इसी कारण मैंने इस रूप में लिखा है । इसे अन्यथा नहीं लेंगे । सादर ...</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।</p>
<p>इंगित मिसरे में आपका कथन उचित है । पर जिस प्रकार हिन्दी में सहीह" को सही के रूप में स्वीकार किया गया है उसी प्रकार "विदा'अ" को विदा के रूप मेंं । इसी कारण मैंने इस रूप में लिखा है । इसे अन्यथा नहीं लेंगे । सादर ...</p> जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' ज…tag:openbooks.ning.com,2020-06-02:5170231:Comment:10090812020-06-02T09:43:28.768ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'करेंगे वो गरीबी को विदा उम्मीद क्या करना'</span></p>
<p><span>आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि इस मिसरे में सहीह शब्द "विदा'अ' 121 है ।</span></p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'करेंगे वो गरीबी को विदा उम्मीद क्या करना'</span></p>
<p><span>आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि इस मिसरे में सहीह शब्द "विदा'अ' 121 है ।</span></p> आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभ…tag:openbooks.ning.com,2020-06-01:5170231:Comment:10090672020-06-01T10:52:32.329Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।</p>
<p>आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।</p> भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी,…tag:openbooks.ning.com,2020-06-01:5170231:Comment:10089022020-06-01T09:45:34.733Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooks.ning.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, आदाब । बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने। शेअ'र दर शेअ'र दाद पेश करता हूँ ।</p>
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<p>भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, आदाब । बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने। शेअ'र दर शेअ'र दाद पेश करता हूँ ।</p>
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