Comments - गुज़ारिश - Open Books Online2024-03-29T04:40:30Zhttp://openbooks.ning.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1000488&xn_auth=noमेरे प्रिय भाई समर कबीर जी, स…tag:openbooks.ning.com,2020-02-15:5170231:Comment:10007992020-02-15T10:31:36.808Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>मेरे प्रिय भाई समर कबीर जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।<br/>आपने अच्छे सुझाव दिए, उनके लिए तहे दिल से शुक्रिया। वह सारे मैंने अभी सही करके रचना को पुन: पोस्ट किया है।<br/>ऐसे ही मार्ग-दर्शन करते रहें। सच, मन करता है, मैं कई साल पहले आपका शागिर्द रहा होता तो कितना सीख लेता आपसे।<br/>आपके कुशल और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना रहती है।</p>
<p>मेरे प्रिय भाई समर कबीर जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।<br/>आपने अच्छे सुझाव दिए, उनके लिए तहे दिल से शुक्रिया। वह सारे मैंने अभी सही करके रचना को पुन: पोस्ट किया है।<br/>ऐसे ही मार्ग-दर्शन करते रहें। सच, मन करता है, मैं कई साल पहले आपका शागिर्द रहा होता तो कितना सीख लेता आपसे।<br/>आपके कुशल और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना रहती है।</p> मेरे प्रिय मित्र लक्ष्मण जी,…tag:openbooks.ning.com,2020-02-15:5170231:Comment:10007972020-02-15T10:26:24.757Zvijay nikorehttp://openbooks.ning.com/profile/vijaynikore
<p>मेरे प्रिय मित्र लक्ष्मण जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।</p>
<p>मेरे प्रिय मित्र लक्ष्मण जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।</p> प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,…tag:openbooks.ning.com,2020-02-12:5170231:Comment:10007662020-02-12T02:41:17.703ZSamar kabeerhttp://openbooks.ning.com/profile/Samarkabeer
<p>प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, अच्छा पैग़ाम देती एक बहतरीन रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'एक इलतजा होगी'</span></p>
<p><span>इस पंक्ति में 'इलतजा' </span></p>
<p><span>को "इलतिजा" कर लें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'मज़हब की ज़ंग लगी ज़जीरों को तोड़'</span></p>
<p><span>इस पंक्ति में 'ज़जीरों' को "ज़ंजीरों" कर लें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'ग़ालीबन पाक इख़्तियार होगा'</span></p>
<p><span>इस पंक्ति में 'ग़ालीबन' </span></p>
<p><span>को "ग़ालिबन" कर लें…</span></p>
<p>प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, अच्छा पैग़ाम देती एक बहतरीन रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'एक इलतजा होगी'</span></p>
<p><span>इस पंक्ति में 'इलतजा' </span></p>
<p><span>को "इलतिजा" कर लें ।</span></p>
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<p><span>'मज़हब की ज़ंग लगी ज़जीरों को तोड़'</span></p>
<p><span>इस पंक्ति में 'ज़जीरों' को "ज़ंजीरों" कर लें ।</span></p>
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<p><span>'ग़ालीबन पाक इख़्तियार होगा'</span></p>
<p><span>इस पंक्ति में 'ग़ालीबन' </span></p>
<p><span>को "ग़ालिबन" कर लें ।</span></p>
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<p><span>'पूरब से मगरिब तक "एक ही मज़हब" का'</span></p>
<p><span>इस पंक्ति में 'पूरब से मगरिब' को "मशरिक़ से मग़रिब" कर लें ।</span></p> आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभ…tag:openbooks.ning.com,2020-02-11:5170231:Comment:10007602020-02-11T13:02:44.832Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooks.ning.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। समसामयिक उत्तम रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। समसामयिक उत्तम रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>