For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221, 2121, 1221, 212


दैरो हरम से दूर वो अंजान ही तो है ।
होंगी ही उससे गल्तियां इंसान ही तो है ।।

हमको तबाह करके तुझे क्या मिलेगा अब ।
आखिर हमारे पास क्या, ईमान ही तो है ।।

खुलकर जम्हूरियत ने ये अखबार से कहा ।
सारा फसाद आपका उन्वान ही तो है ।।

खोने लगा है शह्र का अम्नो सुकून अब ।
इंसां सियासतों से परेशान ही तो है ।।

उसने तुम्हें हिजाब में रक्खा है रात दिन ।
वह भी तुम्हारे हुस्न का दरबान ही तो है ।।

देखा नहीं किसी ने कभी मौत की डगर ।
कहते हैं लोग रास्ता वीरान ही तो है ।।

इक दिन उसे है जाना इसी घर को छोड़ कर ।
ये रुह मेरे जिस्म की मेहमान ही तो है।।

जिंदा खुदा के रहमो करम पर मैं आज तक ।
माना ये रब के प्यार का एहसान ही तो है ।।

क्या बिक गया कलम है तेरा खास दाम पर ।
लिक्खा तेरी किताब में गुणगान ही तो है ।।

बरबाद गांव हो गया ठर्रा खरीद कर ।
कहने को एक छोटी सी दूकान ही तो है ।।

अब हौसलों के साथ मे जलना तुझे चराग ।
यह भी गुज़र ही जाएगा तूफान ही तो है ।।

माना कि मुश्किलात हैं मंजिल के आस पास।
बस टूट के न बिखरे ये अरमान ही तो है ।।

निकलो न बेनकाब जमाने की है नजर ।
हर शख्स तेरे हुस्न से अनजान ही तो है ।।

तुमने कहाँ है देखी अभी दर्दो गम की रात ।
तुमको भी दौरे हिज्र का अनुमान ही तो है ।।

यूँ मुस्कुरा के आप ने नज़रें झुका ली जब ।
मुझको लगा ये इश्क़ का फरमान ही तो है ।।

दिन भर संवारता है कोई ज़ुल्फ़ बारहा ।
ये आशिक़ी के वक्त का ऐलान ही तो है ।।


तुझको अभी नहीं है कोई तज्रिबा ए इश्क़ ।
मेरी नजर में तू अभी नादान ही तो है ।।

डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 306

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 27, 2019 at 12:15am

आ0 कबीर सर सादर नमन 

आपका स्वास्थ्य ठीक न होने के बाद भी अपने इतनी मेहनत की यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है । निः शब्द हूँ ।

Comment by Samar kabeer on March 26, 2019 at 2:26pm

जनाब डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'होंगी ही उससे गल्तियां इंसान ही तो है'

बहुत कम लोग जानते हैं कि "ग़लतियाँ" का वज़्न 1112 होता है,इसलिए इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'होगी ही उससे भूल वो इंसान ही तो है'

'खुलकर जम्हूरियत ने ये अखबार से कहा'

इस मिसरे में 'जम्हूरियत' का वज़्न 2212 है,इसलिए इस मिसरे को यूँ कर लें :-

'जम्हूरियत ने खुल के ये अख़बार से कहा'

'देखा नहीं किसी ने कभी मौत की डगर'

इस मिसरे में 'मौत' और 'डगर' दोनों स्त्रीलिंग हैं,इसलिए 'देखा' को "देखी" कर लें ।

'इक दिन उसे है जाना इसी घर को छोड़ कर'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'इस घर को छोड़कर इसे जाना है एक दिन'

'जिंदा खुदा के रहमो करम पर मैं आज तक'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'ज़िंदा मैं उसके रह्म-ओ-करम पर हूँ आज तक'

'निकलो न बेनकाब जमाने की है नजर ।
हर शख्स तेरे हुस्न से अनजान ही तो है '

इस शैर में शुतरगुरबा है,इसे हटा देना ही उचित है ।

'तुमको भी दौरे हिज्र का अनुमान ही तो है '

ये मिसरा लय में नहीं है ।

'तुझको अभी नहीं है कोई तज्रिबा ए इश्क़'

इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'तुझको नहीं है इश्क़ का कुछ तज्रिबा अभी'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
36 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
15 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service