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एक ग़ज़ल रुबाइ की बह्र में

मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़अल

221     1221   1221    12

पाना जो शिखर हो तो मेरे साथ चलो

ये अज़्म अगर हो तो मेरे साथ चलो

दीवार के उस पार भी जो देख सके

वो तेज़ नज़र हो तो मेरे साथ चलो

होती है ग़रीबों की वहाँ दाद रसी

तुम ख़ाक बसर हो तो मेरे साथ चलो

पत्थर पे खिलाना है वहाँ हमको कँवल

आता ये हुनर हो तो मेरे साथ चलो

हर शख़्स वहाँ कड़वा करेला है "समर"

लहजे में शकर हो तो मेरे साथ चलो

"समर कबीर"

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2019 at 4:24pm

आ. भाई समर जी, इस शानदार गजल के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by नाथ सोनांचली on April 28, 2019 at 2:43pm

आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम। 

हर शख़्स वहाँ कड़वा करेला है "समर"

लहजे में शकर हो तो मेरे साथ चलो।।

वाह वाह वाह वाह, क्या कहना

दीवार के उस पार भी जो देख सके

वो तेज़ नज़र हो तो मेरे साथ चलो।।

बेमिशाल शैर वाह वाह

होती है ग़रीबों की वहाँ दाद रसी

तुम ख़ाक बसर हो तो मेरे साथ चलो।।

आपकी सोच को नमन, बहुत खूब!

सचमुच एक बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने को मिली। शैर दर शैर दाद के साथ बधाई कुबुल कीजिये। सादर

Comment by Samar kabeer on April 28, 2019 at 2:12pm

ये रुबाइ की बह्र में नहीं है ।

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on April 28, 2019 at 1:29pm

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला

Comment by Samar kabeer on April 28, 2019 at 10:04am

// जो रुबाइयाँ हरिवंश जी ने मधुशाला में रची हैं वो अलग हैं क्या//

उनकी कोई रुबाइ यहाँ लिखिये, तब कुछ बता सकूँगा ।

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on April 28, 2019 at 12:05am

// क्या रुबाई को 2222 2222 22 के मीटर पर लिया जा सकता है//

रुबाइ को इस मीटर पर नहीं ले सकते,इसका अपना मीटर होता है 

इस जानकारी के लिए शुक्रिया समर साहब।

लेकिन जो रुबाइयाँ हरिवंश जी ने मधुशाला में रची हैं वो अलग हैं क्या!!

Comment by Samar kabeer on April 24, 2019 at 9:16am

 जनाब अजय गुप्ता जी आदाब,ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

// क्या रुबाई को 2222 2222 22 के मीटर पर लिया जा सकता है//

रुबाइ को इस मीटर पर नहीं ले सकते,इसका अपना मीटर होता है ।

Comment by Samar kabeer on April 24, 2019 at 9:10am

जनाब नरेन्द्र सिंह चौहान जी आदाब,ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

Comment by अजय गुप्ता 'अजेय on April 23, 2019 at 11:54pm

इस बेमिसाल ग़ज़ल को पढ़कर मन प्रसन्न हो गया। इस प्रस्तुति के लिए आभार समर साहब।

एक शंका का निवारण कीजिये। क्या रुबाई को 2222 2222 22 के मीटर पर लिया जा सकता है। 

Comment by narendrasinh chauhan on March 29, 2019 at 7:59pm

बहोत सुन्दर रचना सर,  शानदार गज़ल के लिए बधाई,

कृपया ध्यान दे...

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