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खामियाजा***(लघुकथा)राहिला

क्या मैं जान सकती हूँ सब कुछ फाइनल होने के बाद विवाह से इंकार करने की वजह क्या है?
"आपसे पिछली मुलाक़ात!"उसने सपाट सा उत्तर दिया।
"पिछली मुलाक़ात?"कहते हुए उसके माथे पर हैरानी से बल पड़ गए।
" जहाँ तक मुझे याद है..., उस दिन तो ऐसी कोई बात नहीं हुई थी, जो आपके इंकार की वजह बने।"
"हुई थी!,उस दिन एक ऐसी बात हुई थी जिसकी वजह से मुझे ये फैसला लेना पड़ा।"
" देखिए..!पहेलियां बुझाने से अच्छा ,आप साफ-साफ बताएं।"वह मुद्दे पर आ गयी।
"ठीक है तो सुने!"उसने दोनों हाथ टेबल पर रखते हुए कहा।
"उस दिन आपके साथ आपकी चचेरी बहिन भी आयीं थीं राइट ,बहुत तारीफ़ कर रहीं थीं आपकी।इतनी की मुझे थोड़ी देर के लिए अपनी क़िस्मत पर रश्क़ हो उठा था।"
"पर ...कब ? मुझे जहां तक याद है मेरी तारीफ़ जैसी तो कोई बात नहीं की थी उसने।"वह आश्चर्य में पड़ गयी।
" की थी।याद करिये उस दिन आपके कपड़ो पर कॉफी गिर गयी थी ,और आप उसे साफ करने के लिये वॉशरूम गयीं थीं ..!"
"ओह्ह ...हाँ याद आया।"
"तब,लेकिन जब वह हम दोनों को अकेले बात करने की गरज से थोड़ी देर के लिए यहाँ वहाँ हो गयी थी तब आपने क्या किया था?"कह कर उसने उसकी तरफ बेहद नागवार अंदाज में देखा।
" क्या किया था मैंने?"उसे यूँ अचानक कुछ भी याद नहीं आया ,परन्तु जरा ठहरकर कुछ याद आते ही "अच्छा-अच्छा ...हाँ याद आया...उस दिन चंद मिनटों की बातचीत में ही वह आपको इतनी अच्छी लगी ,कि मेरे आते ही आप उसकी तारीफों के पुल बांधने लगे थे।"वह आज भी उस पल को याद करके नाराज़गी दिखाते हुए, दोनों हाथों को आपस में गूँथ कर वह कुर्सी से टिक गई ।
"हां सही फरमाया ।फिरआपने कैसा रिएक्ट किया था?"
" तो क्या गलत रिएक्ट किया था ?आप उसे जानते ही कितना थे, जो उसकी तारीफ़ पर तारीफ़ किये जा रहे थे।"वह तमक कर बोली।
" अच्छा...!मेरे मुंह से जरा सी तारीफ़ क्या निकल गयी ,आपने मारे जलन के उसके चरित्र का पोस्टमार्टम ही कर डाला?बहिन थी वह आपकी।"ये कहते हुए उसके चेहरे पर उसके लिए घृणा के भाव उभर आये।
"तो जो कहा था ,सच कहा था।"वह उसके चेहरे और बात का आशय समझे बग़ैर, तमक कर बोली।
" जरूरत क्या थी ?"वह एक -एक शब्द पर जोर देकर बोला।
सच और झूठ से मुझे क्या लेना देना था।अब जो लड़की किसी के भी सामने अपनी बहिन की इज्ज़त की ऐसे धज्जियां उड़ा सकती है ।तो मुझे तो माफ़ ही करिये मैडम!"अब तक उसे गए हुए काफी समय हो चुका था ।लेकिन वह अभी भी वहीं बैठी थी।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on July 17, 2017 at 8:08pm
आदरणीय रवि सर जी ! आपने रचना पर नजर डाली इसके लिए तहे दिल से आभार।सादर
Comment by Rahila on July 17, 2017 at 8:07pm
आदरणीय आरिफ सर जी!,आदरणीय कबीर साहब,आदरणीया कल्पना दीदी!,आदरणीय कुमार सर जी! आदरणीय दुबे सर जी!और आदरणीया बरखा दीदी! आप सब का बहुत आभार रचना को सराहने हेतु और विचार रखने के लिए।सादर
Comment by Hari Prakash Dubey on July 16, 2017 at 6:57pm

सच है ,कुछ बातों का खामियाजा भुगतना ही पड़ता है ,बधाई  आपको इस प्रस्तुति पर आ. Rahila जी ! 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 4:07pm

अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय राहिला जी | हार्दिक बधाई 

Comment by Ravi Prabhakar on July 13, 2017 at 9:27pm

बढ़ीया प्रयास है आदरणीय राहिला जी । पर आपकी ये लघुकथा मैं 4 जुलाई को नया लेखन पर पढ़ चुका हूं। सादर

Comment by Barkha Shukla on July 13, 2017 at 10:46am
आदरणीय राहिला जी जी बहुत अच्छी लघु कथा
Comment by Mahendra Kumar on July 12, 2017 at 8:09pm

अच्छी लघुकथा है आ. राहिला जी. थोड़ा संपादन कर देंगी तो और कसावट आ जाएगी. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Samar kabeer on July 11, 2017 at 10:44pm
मोहतरमा राहिला जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
एक निवेदन ये है कि कृपया मंच पर अपनी सक्रियता बनाये रखें,ये हमारी ज़िम्मेदारी है ।
Comment by Mohammed Arif on July 11, 2017 at 8:03am
आदरणीया राहिला जी आदाब,औसत दर्जे की अच्छी कथा कहने का प्रयास । बधाई स्वीकार करें ।

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