For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“अब पर्वतों पर पत्थर उगा करतें हैं”

लेकर बेठे हो, सारी नदियाँ

अनंत मूल्यवान, वनस्पतियाँ

भरपूर वन्य-जीव प्रजातियाँ   

दिव्य देवताओं की, सम्पतियाँ

फिर भी करते  रहते हो तुम

हरे भरे हिमालय,  के लिए

आन्दोलन पर  आन्दोलन

दिल्ली दरबार, वातानुकूलित कमरे

निशा में, आचमन पर आचमन

हमसे पूछो, हम कैसे जीते हैं

अपनी आँखों के आंसू पीते हैं

यहाँ सूख चुकी सारी नदियाँ

नष्ट हो गयी वनस्पतियाँ

लुप्तप्राय वन्य जीव प्रजातियाँ

लुट गयी  देवों की सम्पतियाँ             

अब तुम हमको न बहलाओ

थोड़ी कृपा हम पर बरसाओ

हमारे जख्मों पर मरहम लगाओ

खुशनसीब हो तुम्हारे यहाँ

देवी और  देवता रहा करतें हैं

हमारे यहाँ तो अब पर्वतों पर

पत्थर उगा करते हैं !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1107

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 6:39pm

प्रिय सोमेश भाई आपकी प्रतिक्रिया, विश्लेषण उत्साहवर्धन और सराहना हेतु दिल से आभार !

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 6:35pm

उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी साहब सादर! 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 6:33pm

रचना  की सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी सर , आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहती है ,सादर !.

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 6:30pm

आदरणीय सुशील सरना  सर आपने कविता को पढ़ कर सार्थक प्रतिक्रिया दी उसके लिए हार्दिक आभारी हूँ ,सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 6:24pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार सादर!

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 6:21pm

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आदरणीय  laxman dhami  जी .

Comment by somesh kumar on January 8, 2015 at 4:33pm

अंतिम चार पंक्तियों ने जो भाव ,सम्वेदना प्रकट की उसकी समाजिक और नैतिक दृष्टी इतनी गहरी है की क्या कहा जाए ,यह प्रक्रति के बदलते स्वरूप और उससे होने वाली आपदाओं का संकेतक भी है ,रचना पर हार्दिक बधाई 

Comment by khursheed khairadi on January 8, 2015 at 3:06pm

खुशनसीब हो तुम्हारे यहाँ

देवी और  देवता रहा करतें हैं

हमारे यहाँ तो अब पर्वतों पर

पत्थर उगा करते हैं !!

 आदरणीय हरिप्रकाश जी ,सुन्दर रचना है |सादर अभिनन्दन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 8, 2015 at 1:48pm

अच्छी रचना हुई है आदरणीय है प्रकाश भाई , रचना के लिये हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2015 at 12:42pm

अब तुम हमको न बहलाओ
थोड़ी कृपा हम पर बरसाओ
हमारे जख्मों पर मरहम लगाओ
खुशनसीब हो तुम्हारे यहाँ
देवी और देवता रहा करतें हैं
हमारे यहाँ तो अब पर्वतों पर
पत्थर उगा करते हैं !!
…वाह आदरणीय बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति .... अंतिम पंक्ति दूर तक असर करती हैं। इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
2 minutes ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
13 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service