For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल -वंदना

सभी विद्वजनों से इस्लाह के लिए -

वज्न 2122   /   2122   /   2122   /   212  (2121)

कोई तुझसा होगा भी क्या इस जहाँ में कारसाज

डर कबूतर को सिखाने रच दिए हैं तूने बाज

 

तीरगी के करते सौदे छुपछुपा जो रात - दिन

कर रहे हैं वो दिखावा ढूँढते फिरते सिराज

 

ज्यादती पाले की सह लें तो बिफर जाती है धूप

कर्ज पहले से ही सिर था और गिर पड़ती है गाज

   

जो ज़मीं से जुड़ के रहना मानते हैं फ़र्ज़-ए-जाँ

वो ही काँधे को झुकाए बन के रह जाते मिराज

 

हम भला बढ़ते ही कैसे आड़े आती है ये सोच  

"माँगने वाला गदा है सदका माँगे या खिराज"

 

खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे

मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज

 

पंछियों के खेल या फिर तितलियों का बाँकपन

मौज से गर देख पाऊं सुधरे शायद ये मिज़ाज  

**** 

"माँगने वाला गदा है सदका माँगे या खिराज" तरही मिसरा आदरणीय शायर अल्लामा इक़बाल साहब की ग़ज़ल से  है | 

***** 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 1243

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on February 2, 2014 at 10:22pm

सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on February 2, 2014 at 7:11pm

कवि न होऊं नहिं बचन प्रवीनू..अति मति मंद सकल गुण हीनू...सात के सातों शेरों में..सातों समुद्रों की गंभीरता प्राप्त हुई..विशेषकर छठवां शेर तो प्रशांत महासागर प्रतीत हुआ..बधाई हो..

Comment by coontee mukerji on February 2, 2014 at 3:42pm

खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे

मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज.....बहुत खूब वंदना जी..

Comment by Sarita Bhatia on February 2, 2014 at 11:33am

अरे इस तरह का काफिया कई बार मन में संशय पैदा कर गया आज थोड़ा संशय दूर हुआ ,

इस कामयाब शानदार गजल के लिए बधाई वंदना जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 2, 2014 at 9:48am

खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे

मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज

 बहुत खुबसूरत गजल आदरणीया वंदना जी

Comment by vandana on February 2, 2014 at 8:06am

आदरणीय वीनस सर , इस गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल को  आपका समर्थन मिल जाने से अभिभूत हूँ काफ़िया गलत न हो जाए इस बात की चिंता  थी|

सभी विद्वजनों से एक बात और जानना चाहती हूँ कि अगर इस प्रकार की ग़ज़ल में किसी शेर में उला में ज़ से खत्म होने वाला शब्द रहता तो क्या कोई दोष माना जाएगा जैसे- 

हम भला बढ़ते ही कैसे रहता है ये इम्तियाज़ 

"माँगने वाला गदा है सदका माँगे या खिराज" कृपया बताइयेगा

Comment by वीनस केसरी on February 2, 2014 at 1:11am

खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे

मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज ............ जिंदाबाद जिंदाबाद

बेहद शानदार आला दर्जे की ग़ज़ल कही है ... इकबाल साहब की जमीन को छूना अपने आप में हौसले की बात है

Comment by vandana on February 1, 2014 at 9:27pm

आदरणीय गिरिराज सर बहुत२ आभार उत्साहवर्धन के लिए 

Comment by vandana on February 1, 2014 at 9:26pm

आदरणीया मीना जी आपकी पवित्र भावनाओं से मन प्रसन्न हुआ |

Comment by vandana on February 1, 2014 at 9:24pm

आदरणीया राजेश दी बहुत२ आभार मेरा हौसला बढाने के लिए 

फ़र्ज़-ए-जाँ को 212के रूप में लिया जा सकता है आदरणीय वीनस सर की पोस्ट में दर्दे दिल का उदाहरण है जिसे 212 या 222 गिने जा सकने पर सहमति जाहिर की गयी है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जी ठीक है *इल्तिजा मस'अले को सुलझाना प्यार से ---जो चाहे हो रास्ता निकलने में देर कितनी लगती…"
20 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी सादर प्रणाम । ग़ज़ल तक आने व हौसला बढ़ाने हेतु शुक्रियः । "गिर के फिर सँभलने…"
23 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
34 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
43 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
10 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service