For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूखा !

मही मधुरी कब से तरस रही ,
बुझी न कभी एक बूँद से तृषा ,
घनघोर घटाएँ लरज लरज कर ,
आयी और बीत चली प्रातृषा .

ईख की जड़ में दादुर बैठे ,
आरोह अवरोह में साँस चले ,
पानी की अहक लिये जलचर ,
ताल हैं शुष्क सबके प्राण जले .

पथिक राह चले बहे स्वेदकण ,
पथतरू* से प्यास बुझाए मजबूरन , * traveller’s tree
दूर कोई आवाज़ बुलाए कल् कल् ,
नदी का पानी जैसे कलल कल्.

दौड़े आगे पीछे मृगमरीचिका ,
दिशाभ्रमित करे औ’ पवन चले ,
पशु पक्षी हैं जंगल से भागे ,
पेड़ पौधे मुरझाए खड़े खड़े .

गाँव की ललनाएँ हरपरौरी * गावें ,
बरसा दो इंद्र देवता , बरसा दो !
खेत सूखा , कुआँ , ताल तलैया ,
बरसा दो मेघा ! बरसा दो ! !

.

.

*हरपरौरी (पानी बरसाने के लिये भोजपुरी लोकगीत) - जब मॉरिशस एक पराधीन देश था , तरक्की की ओर कभी ध्यान नहीं दिया गया . जब देश में सूखा पड़ता तब ईख कोठी के मालिक (जो गोरे हुआ करते थे , अंगरेज़ नहीं बल्कि फ्रेंच और हब्शी के संयोग से उत्पन्न वर्णसंकर जिसका बहुत ही रौब हुआ करता था ) गाँव की सयानी औरतों से इंद्र देव की पूजा करवाते . यह बड़ी अजीब प्रथा थी . जिस रात हरपरौरी के गीत गाने की मुनादी होती उस रात किसी भी मर्द को घर से बाहर आने की अनुमति नहीं थी. जब आधी रात बीत जाती तब सयानी औरतें अपने अपने घर से निर्वस्त्र हो कर निकलती , गाँव के चौराहे पर इंद्र देव की पूजा करती और इसी प्रकार गाँव गाँव घूम कर हरपरौरी गाती हुई जाती . इस दौरान जिन जिन गाँवों से ये महिलाएं गुज़रती वहाँ की औरतें उन पर पानी फेंकती . यह प्रक्रिया सुबह के चार बजे तक चलता . ......और सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि दो दिन के अंतराल ही में मूसलाधार बरसात होने लगती.
( डायरी के पन्नों से – अप्रकाशित यह कथा मैं अपनी स्वर्गीया सुंदरी बूआ से अक्सर सुनती थी )

Views: 898

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 11, 2013 at 8:59am

सुन्दर रचना.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 10, 2013 at 5:10pm

आदरणीया कुंती जी 

सादर 

अतिसुन्दर 

बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 10, 2013 at 9:01am

आ0 कुन्ती जी, काले मेघा पानी दे! बच्चे लोगों का जलक्रीडा़। हरपरौरी- सच में आश्चर्य ! क्या अब भी यह कुप्रथा......? नारी उत्पीड़न की खोज कथा को साझा करने हेतु आपका बहुत बहुत आभार। बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by KAVI DEEPENDRA on May 10, 2013 at 7:40am

खूबसूरत शिल्प....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service