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 मत तोड़ फूल को शाख से

झूमते झूलते संग हवा के

हिलोरें ले रही शाखाओं पर 

सज रहें ये खिले खिले पेड़

बहने दो संगीतमय लहर

यही तो गीत है जीवन का 

....................................

 रहने दो फूल को शाख पर 

वहीँ खिलने और झड़ने दो 

बिखरने दो इसे यूं ही यहाँ 

आकुल है भूमि चूमने इसे 

महकने दो आँचल धरा का 

सृजन होगा नवगीत यहाँ 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on April 23, 2013 at 12:38pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ........................

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 23, 2013 at 12:21pm

आदरणीया रेखा जी 

प्रकृति की सुंदरता को संजोये बहुत खूबसूरत भाव सम्प्रेषण...इस हेतु हार्दिक बधाई 

किन्तु, आदरणीया  इस प्रस्तुति को अतुकांत में ही व्यक्त किया जा सकता था, आपने इसे नवगीत का नाम क्यों दिया? क्योंकि इसमें नवगीत का तो  न ही शिल्प है और न ही वैसी निर्बाध गेयता और तुकांतता..

Comment by coontee mukerji on April 22, 2013 at 9:01pm

रहने दो फूल को शाख पर 

वहीँ खिलने और झड़ने दो 

बिखरने दो इसे यूं ही यहाँ 

आकुल है भूमि चूमने इसे 

महकने दो आँचल धरा का 

सृजन होगा नवगीत यहाँ...........बहुत सुंदर रेखा जी , आज दुनिया वोलों की यहीं मंसिकता की जरूरत है .सादर कुंती .

Comment by Vindu Babu on April 22, 2013 at 7:37pm
बहुत सुन्दर आदरणीया,नवगीत है तो नवभाव भी गोचर हो रहे हैं,अन्तिम पंक्ति तो बहुत ही मोहक हैं।
सादर
Comment by जगदानन्द झा 'मनु' on April 22, 2013 at 7:36pm

सुंदर रचना ....

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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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