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आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर ' साहब आदाब आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने 'मुआहिदा ' से संबंधित
जमकारी दी ! 'था सलामत मुआहिदा कोई ' सहीह है लेकिन उला मिसरे में 'दिल का है टूटने का ग़म नाहक '
एक तरफ जहाँ तखल्लुस भी है वहीं नाहक के अर्थ में भी है यह कहने की कोशिश है कि
दिल के टूटने का ग़म बेकार है क्योंकि कोई भी क़रार सलामत नहीं था हाँ काल कि दृष्टि से
'दिल का था टूटने का ग़म नाहक ' किया जा सकता है लेकिन 'दिल जो टूटा तो ग़म नहीं नाहक'
में सिर्फ तखल्लुस का गुमान हो रहा है जबकि उसे दोनों अर्थों में लिया जाना ज़ियादा उचित होगा ऐसा मुझे लगता है
अगर आपकी इज़ाज़त हो तो इस शैर को इस तरह कहना चाहूंगा
'दिल का था टूटने का ग़म नाहक
था सलामत मुआहिदा कोई ' कृपया अपना मार्गदर्शन दें सादर
जनाब दण्डपाणि 'नाहक़' जी महायदा आम बोलचाल में इस्तेमाल होता है लेकिन सहीह उच्चारण वही है जो आपने लिखा है - मुआहिदा। सादर।
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहब आदाब बहुत बहुत शुक्रिया आपका अपने क़ीमती वक़्त और
सलाह से नवाज़ने के लिए ! 'दिल जो टूटा तो ग़म नहीं नाहक, था सलामत महायदा कोई ' वाह आपने
संवार दिया लेकिन जनाब क्या मैंने जिसे मुआहिदा लिखा है जिसके मानी करार ( contract ) है महायदा है
यानी क्या महायदा सहीह है कृपया मार्गदर्शन करें सादर
//दिल का है टूटने का ग़म 'नाहक'
था सलामत मुआहिदा कोई// इस शे'र को हटाने के बजाय यूँ कर सकते हैं :
दिल जो टूटा तो ग़म नहीं नाहक़
था सलामत महायदा कोई यहांँ नाहक़ आपका तख़ल्लुस से ज़्यादा बहुत अहम मानी रखता है। सादर।
आदरणीय दण्डपाणि नाहक़ जी आदाब, देरी से प्रतिक्रिया देने की कुछ वजूहात रही होंगी मैं समझ सकता हूँ it's OK.
//तीसरे शैर में जो राब्ता ज़िन्दगी मौत का आपस में है क्या वही राब्ता मरहले और फ़लसफ़ा में है//
जनाब आपके तीसरे शे'र में जो राब्ता जद्दोजहद और फ़लसफ़ा में है वही राब्ता मरहले और फ़लसफ़ा में है दरअस्ल मैं नहीं चाहता था कि आपके शे'र का भाव बदल जाए।
"मरहले ज़िन्दगी में रहते हैं
मौत का है न फ़लसफ़ा कोई" इस शे'र का मफ़हूम वही है जो आपके शे'र का है।
मरहला जिसका बहुवचन मरहले होता है का अर्थ है : विभिन्न परिस्थितियां, पड़ाव, मुश्किलात वग़ैरह। जबकि
फ़लसफ़ा का अर्थ है : नज़रिया, तदबीर, अक़्लमंदी, हिकमत वग़ैरह।
" ढूंढने से यहाँ खुदा मिलता ढूंढने से ख़ुदा भी मिलता है
मिल ही जाएगा रास्ता कोई" बहतर है, चाहें तो ऊला यूँ कर सकते हैं : मिल ही जाएगा रास्ता कोई
सादर।
आदरणीय नीलेश जी मैं बहुत शर्मिंदा हूँ और मुआफ़ी चाहता हूँ इस देरी के लिए
आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने अपना कीमती समय निकाला आपकी सलाह सर माथे पर
कृपा हमेशा बनाए रखें सादर
आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर ' जी नमस्ते मुआफ़ी चाहता हूँ देरी से आने के लिए
आपकी सलाह दुरुस्त है किन्तु मुझे बह्र बदलने से ज़ियादा आसान शैर बदलना लगा !कृपा बनाये रखें !
आदरणीय रूपम kumar 'मीत ' जी नमस्ते मैं देरी से हाजिर होने के लिए मुआफ़ी चाहता हूँ
आपने सहीह फ़रमाया 'न' ही उचित होगा ! बहुत बहुत धन्यवाद जनाब आपके सलाह की मुझे hamesha
आवश्यकता होगी !कृपा कीजिएगा !
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर ' साहब आदाब बहुत मुआफ़ी चाहता हूँ इस देरी के लिए ! आदरणीय आपकी सलाह
बहुत उम्दा है और इससे मेरी ग़ज़ल सही मायनो में अब ग़ज़ल हुई है आदरणीय तीसरे शैर में जो राब्ता ज़िन्दगी मौत का
आपस में है क्या वही राब्ता मरहले और फ़लसफ़ा में है आपका मार्गदर्शन चाहूंगा जिस शैर का शिल्प कमज़ोर है उसे हटा देता हूँ
उसके बदले एक नया शैर मुलाहिज़ा फरमाएं और अपना क़ीमती सलाह देने की कृपा करें
ढूंढने से यहाँ खुदा मिलता
मिल ही जाएगा रास्ता कोई
देरी के लिए एक बार फिर मुआफ़ी चाहता हूँ आदरणीय
जनाब रूपम कुमार जी आदाब, मैंने दण्डपाणि नाहक़ जी की ग़ज़ल पर टिप्पणी मात्र की है और अपने सुझाव पेश किए हैं, कोई किसी का एक मिसरा भी दुरुुस्त नहीं कर सकता जबतक कि स्वयं रचयिता किसी सुझाव को स्वीकार कर गृहण न कर ले। किसी की रचनाओं पर की गई टिप्पणी और सुझावों पर प्रतिक्रिया देने का पहला अधिकार उस रचयिता का ही होता है, इसलिए थोड़ा धैर्य रखिए, धीरे-धीरे सब सीख जाएंगे, अभी तो पहले सण्डे वाला टास्क पूरा कीजिए। सादर।
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