For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आग जला कर जग-जगती की  
धूनी तज कर
साँसें लेलें ! 
खप्पर का तो सुख नश्वर है 
चलो मसानी, रोटी बेलें !!
 
जगत प्रबल है दायित्वों का 
और सबलतम 
इसकी माया 
अँधियारे का प्रेम उपट कर 
तम से पाटे 
किया-कराया 
 
उलझन में चल
काया जोतें 
माया का भरमाया झेलें ! 
 
जस खाते,
तस जीते हैं सब 
खाते-जीते 
पीते भी हैं 
और भभकते औंधेमुँह के
बखत उपासे बीते भी हैं 
 
इन कंधों पर बरतन-बहँगी 
लेकर आओ 
जग में हेलें ! 
 
इस मिट्टी ने जीव जगाया 
और सजायी
मिलजुल दुनिया 
बहुत अभागे अलग कातते  
खुद की तकली, 
खुद की पुनिया 
 
कहो निभे क्यों आपसदारी ?
अगर दिखा कुछ..  
चाहा लेलें ! 
***
सौरभ
 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 828

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2023 at 3:06pm

आदरंणीय रवि शुक्लजी, 

प्रस्तुति पर आपके अनुमोदन का हार्दिक धन्यवाद.

शुभातिशुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2023 at 3:05pm

आदरणीय विजय निकोर जी, 

आपसे मिला उत्साहवर्द्धन मेरे लिए थाती है. प्रस्तुति पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.

सादर

Comment by Ravi Shukla on August 29, 2018 at 4:34pm

आदरणीय सौरभ भाई जी नमस्कार एक अंतराल बाद आज फिर से मंच पर उपस्थित हैं। आपका नवगीत पढ़ा बहुत अच्छा लगा इसे अनुभव ही कर सकते हैं अपनी भावनाओं को शब्दों में अभिव्यक्त करने की  सामर्थ्य नहीं है। प्रतीक और बिंब आकर्षित करते हैं और इस गीत के मूल में जो एक भाव है वह आकर्षित करने वाला है बहुत-बहुत बधाई इस नवगीत के लिए

Comment by Samar kabeer on August 29, 2018 at 11:28am

//

देखिए मेरी उंगलियाँ कहाँ हैं, आदरणीय ? ..  कान पर ! ..

और ये लीजिए ..  .. ग्यारह.. बारह.. तेरह..  .. .. पच्चीस.. छब्बीस .. सताइस ... ... //

हा हा हा..

बहुत हो गया भाई,अब बस भी करें...गिन्ती आप गिन रहे हैं थकन मुझे हो रही है,हो जाता है ।

//अब न होगी ऐसी ग़लती दुबारा .. //

"दुबारा" शब्द पर एक बात याद आई,पाकिस्तान के मशहूर शइर 'अनवर शुऊर" इस शब्द को "दुबर्रा" लिखते और बोलते हैं,है न मज़े की बात ।

समय मिलते ही पुनः आपकी प्रस्तुति पर आता हूँ ।

 

Comment by vijay nikore on August 29, 2018 at 11:25am

  आपके नवगीत के  मनमोहक भाव और आकर्षक लय से सदैव समान प्रभावित हुआ। आपको हार्दिक बधाई, आदरणीय सौरभ जी।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 29, 2018 at 12:56am

आदरणीय सौरभ सर, आपने मेरा भ्रम दूर किया.....

वास्तव में आपकी ये पंक्तियाँ मुझ पर ही सटीक बैठ गईं......


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2018 at 11:45pm

आदरणीय पंकज जी, आपने नवगीत का संदर्भ ले कर मुझे नाहक ही महिमामण्डित कर दिया. जबकि सच्चाई का हमें भी खूब भान है. आपको प्रस्तुति तथ्यपरक, पठनीय एवं रोचक लगी है तो यह आपकी सुधी दॄष्टि का ही परिचायक है. 

हार्दिक धन्यवाद 

 

 

 

// एक छोटा सा दोष है, रचना में; सम्भवतः यह दोष मेरी क्षुद्र-बुद्धि का भ्रम हो?

उलझन में चल 
काया जोतें 
माया का भरमाया झेलें ! 
चलो मसानी, रोटी बेलें.....
चल और चलो?//

 

भाई, आपके इंगितों का सदैव हृदयतल से स्वागत रहा है. 

वस्तुतः, गीत में इंगित ’मसानी’ कवि के साथ आत्मीय सम्बन्धों को जीता हुआ है. इस कारण ’चलो’ को लेकर कोई दुविधा नहीं है.

आपने चलो के साथ चल को लेकर आपत्ति उठायी है.

 

आपसे निवेदन है कि आप गीत की भाव-अनवरतता तथा उसके कथ्य में अनिवार्य आवृतियों के प्रति भी सचेत और आग्रही हों.

गीत ग़ज़ल विधा नहीं है कि उसके एक शेर के कथ्य में उस शेर की कहन का समापन हो जाय. इसी कारण तो शेर के सम्बोधन अनवरतता को जीते हैं. कोई दूसरा शेर पहले शेर से नितांत अलग ही सम्बोधन को उकेरेगा.

 

जबकि, गीत अपने मुखडे से प्रारम्भ हो कर अंतरा दर अंतरा होता हुआ अपनी अंतिम आधार पंक्ति तक एक ही भाव को जीता है. यानी पारस्परिक व्यवहार में कई बार आप से तुम और तुम से तू का हो जाना अपवाद की बात नहीं हुआ करती है.

यह तो हुई तर्क की बात. किन्तु मेरे नवगीत का चल आदेशात्मक क्रिया न हो कर व्यवहार क्रिया है. चल यानी ’चल कर’. इस हिसाब से पंक्ति होगी -- 

उलझन में चल (कर) 

माया का भरमाया झेलें. 

इसका अर्थ हुआ, माया के कारण मानव मन में जो भ्रम पैदा हो जाता है, जिस कारण साँप को रस्सी और रस्सी को साँप समझने की सांसारिक भूल होने लगती है ,उसे नकारें नहीं. वस्तुतः, कवि ’मसानी’ से इस भ्रम को दृढ़ हो कर झेलने यानी जीतने की बात करता है. न कि भ्रम से भाग कर समाज छोड़ने की बात करता है.  विश्वास है, आप मेरे कहे का आशय समझ पाये होंगे. 

गीत के निहितार्थ को समझ कर इस पर भी चर्चा करें तो हमें और संतोष होगा. मेरा कहना सार्थक हो जाएगा. 

शुभातिशुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2018 at 10:03pm

आदरणीया नीलम जी, आपकी संवेदनशील दृष्टि से मेरा लेखन सार्थक हुआ. आपका सादर धन्यवाद 

नवगीत के कथ्य के मूल बिन्दु अपने घर-जवार की भीत में ही हैं. इस तथ्य के प्रति आपका ध्यान गया भी होगा. 

एक अरसे बाद आपसे प्रस्तुति के बहाने भेंट-मुलाकात हो रही है. विश्वास है, आप सपरिवार स्वस्थ एवं सानन्द होंगीं.

शुभातिशुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2018 at 9:58pm

आदरणीय समर भाई साहब, आपने इस प्रस्तुति को अपना बहुमूल्य समय दिया यह मेरे साथ-साथ इसका भी सम्मान है. आपकी सुधी दृष्टि से यह नवगीत धनी हुआ है. 

//मंच के नियमानुसार आपने मौलिक व अप्रकाशित नहीं लिखा? //

देखिए मेरी उंगलियाँ कहाँ हैं, आदरणीय ? ..  कान पर ! ..

और ये लीजिए ..  .. ग्यारह.. बारह.. तेरह..  .. .. पच्चीस.. छब्बीस .. सताइस ... ... 

 

अब तो बच्चे पर दया दिखाएँ हुज़ूर !..  रहम ..  रहम ...   

अब न होगी ऐसी ग़लती दुबारा .. 

जय-जय 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 28, 2018 at 9:52pm

आदरणीय बसंत जी, आपकी सुधी दृष्टि से यह प्रस्तुति समृद्ध हुई .. आपका हार्दिक आभार 

शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"नमस्कार। विषयांतर्गत संस्मरणात्मक बढ़िया भावपूर्ण रचना हेतु मुबारकबाद आदरणीय मोहन बेगोवाल साहिब।…"
7 minutes ago
DR ARUN KUMAR SHASTRI replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"* जिद्द *मेरी उम्र के अनुसार मेरे अनुभव जो मैंने अपनी वयानुसार देखे समझे व् व्यतीत किये अधिकाधिक १०…"
2 hours ago
Dr. Geeta Chaudhary commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"आभार सर आपका..."
4 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on नाथ सोनांचली's blog post ग़ज़ल (गर आपकी ज़ुबान हो तलवार की तरह)
"क्या ही खूब ग़ज़ल कही है आदरणीय सोनांचली जी..."
6 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on मनोज अहसास's blog post अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास
"वाह वाह आदरणीय मनोज जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही..."
6 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पतझड़ से मत घबराना मन (गीत- २१)- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत ही खूबसूरत गीत है आदरणीय धामी जी...सादर"
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Chetan Prakash's blog post गज़ल ः
"आदरणीय चेतन जी अच्छा प्रयास है...आदरणीय धामी जी से सहमत हूँ..."
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"अच्छी प्रवाहमयी कविता के लिए बधाई आदरणीया..."
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Rachna Bhatia's blog post आलेख - माँ की देखभाल औलाद की नैतिक जिम्मेदारी
"इस भावपूर्ण लेख के लिए अनंत आभार आदरणीया..."
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Rachna Bhatia's blog post ग़ज़ल - मेरे घर आज आ रहा है कोई
"आदरणीया रचना जी अच्छी ग़ज़ल हुई...बधाई"
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बरसों बाद मनायें होली(गीत-२०)-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"वाह आदरणीय धामी जी क्या ही रंग बिरंगा गीत रचा है..."
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Er. Ganesh Jee "Bagi"'s blog post लघुकथा : पीठ का दाग (गणेश बाग़ी)
"बहुत बढ़िया आईना दिखाती घुकथा है आदरणीय..."
7 hours ago

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service