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आसक्ति …….

परिचय  हुआ  जब   दर्पण से
तो  चंचल  दृग   शरमाने  लगे 
अधरों  पे कम्पन्न  होने   लगा 
पलकों  में  बिंब  मुस्काने  लगे ll


काजल मण्डित रक्तिम लोचन
अनुराग  निशा  से  बढ़ाने लगे 
कच क्रीडा में लिप्त समीर  से
मेघ  अम्बर  में  शरमाने  लगे ll


लज्ज़ायुक्त स्वर्णिम कपोल पे 
फिर  जलद नीर बरसाने लगे
कनक कामिनी  की काया पे
मधुप  आसक्ति  दर्शाने  लगे ll

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on July 13, 2017 at 3:48pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब प्रस्तुति को अपने स्नेह से शोभित करने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on July 13, 2017 at 3:48pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on July 13, 2017 at 2:22pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत ही सुंदर रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
एक बात बताना चाहूँगा कि 'कम्पन्न' शब्द पुल्लिंग है, देखियेगा ।
Comment by Mohammed Arif on July 12, 2017 at 10:08pm
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति का तोहफ़ा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on July 12, 2017 at 8:25pm
वाह वाह वाह क्या बात है। गज्जब, बेहद प्रवाहमय। आद0 सुशील सरना जी आपकी यह रचना बेहद उम्दा लगी। बधाई स्वीकारें।सादर

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