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बात गज़ब की करते हो -- डॉo विजय शंकर

हालात बदलने की बात करते हो
आदमी बदल देते हो
हालात बदल नहीं पाते ,
या बदलना नहीं चाहते हो।
खुद को तरक्की पसंद कहते हो
तरक्की की बात करते हो
काम करने के पुराने तरीके
नहीं बदलते हो ,
आदमी बदल देते हो ।
उसने बहुत सहा , अब तुम सहो ,
इसी को सामाजिक न्याय कहते हो ,
गज़ब करते हो बिना हींग फिटकरी के
रंग चोखा करते हो ॥
तरक्की की बात करते हो
खुद को तरक्की पसंद कहते हो ॥
अच्छा करते हो कि बुरा, पता नहीं
पर बात गज़ब की करते हो ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by maharshi tripathi on April 9, 2015 at 5:37pm

आ. Dr. Vijai Shanke जी ,,सुन्दर रचना हार्दिक बधाई |

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 9, 2015 at 5:54am
प्रिय मिथिलेश जी, आपको रचना पसंद आई , आभार , आपकी हार्दिक बधाई के लिए ह्रदय धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 9, 2015 at 5:51am
आपका कहना बिलकुल सही है प्रिय कृष्ण मिश्रा जी , यहां पर मैंने सिर्फ एक ही बिंदु को लिया है , अव्यवस्था को ही बदला जाता है , एक झेल चुका अब दूसरा आये और झेले से अव्यवस्था वहीं रहती है , वह कहीं नहीं जाती , यह प्रगति नहीं है , यह सिर्फ अव्यवस्था को झेलने की सहभागिता है। यह भी कि सिर्फ बातों से भी प्रगति नहीं होती। आपकी बात सौ प्रतिशत सही है पर लिखे भी कोई कहाँ तक , कुछ हरी कथा जैसा हाल है , अंतहीन।
आप की टिप्पणी के लिए आभार , लिखूंगा , आगे , अवश्य , सादर।

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Comment by मिथिलेश वामनकर on April 9, 2015 at 12:19am

आदरणीय विजय शंकर सर बहुत अच्छी भावपूर्ण कविता है 

हार्दिक बधाई 

इन पंक्तियों पर विशेष बधाई ---- 

तरक्की की बात करते हो
खुद को तरक्की पसंद कहते हो ॥
अच्छा करते हो कि बुरा, पता नहीं
पर बात गज़ब की करते हो ॥

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 8, 2015 at 10:02pm

सरकारी मशीनरी पे तंज करती सुन्दर रचना!सुन्दर रचना आदरणीय!!थोड़ा और विस्तार चाहती थी रचना, अंत में मुझे ऐसा लगा!

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 9:50pm
आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी जी , रचना पर आपकी प्रशस्ति के लिए आभार , बधाई हेतु धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 8, 2015 at 9:21pm

आज की  इंसानी फितरत का आईना दिखाती हुई सुन्दर सार्थक रचना बहुत खूब ..हार्दिक बधाई आ० डॉ० विजय शंकर जी. 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 6:46pm
आदरणीय सुश्री मीणा पाठक जी , रचना की प्रशस्ति के लिए आपका आभार। आपकी बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 6:22pm
आदरणीय समर कबीर साहब जी , नमस्कार रचना की प्रशस्ति के लिए आपका बहुत बहुत आभार, सच्चाई होनी चाहिए , कविता में ही सही , आपकी बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 8, 2015 at 6:19pm
आदरणीय. सुश्री निधि अग्रवाल जी , प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत आभार, आपकी बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।

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