For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैंने जीना चाहा था

सुर्ख इबारत बयाँ करेगी – मैंने जीना चाहा था,
चाक कलेजे के ज़ख्मों को मैंने सीना चाहा था;
जो भी आया उसने ही कुछ दुखते छाले फोड़ दिए,
वहशत की आग बुझाने को मेरे सब सपने तोड़ दिए;
तेरे आँचल के धागों से रिसना ढकना चाहा था,
सुर्ख इबारत बयाँ करेगी- मैंने जीना चाहा था |

अपनी ही रुसवाई पर, हम तो हँसते रहे सदा,
गम को गले लगा के रोये, खुशियाँ करते रहे विदा;
गम बाजारू हों ना जाएँ, आँसू पीना चाहा था,
सुर्ख इबारत बयाँ करेगी – मैंने जीना चाहा था |

तुझको देखा, तुझको चाहा, मैंने तुझको जाना था,
दो पल जी लूँ तेरा बनकर, और तो ना कुछ पाना था;
कुछ सूखे ज़ख्मों का मैंने दर्द भुलाना चाहा था,
सुर्ख इबारत बयाँ करेगी – मैंने जीना चाहा था |

तेरे होठों की जुम्बिश को मैंने माथे पर रखा,
तेरी कही-अनकही बातों को पल-पल पहचाना था;
मैं ना तुझसे दगा करूँगा, यकीं दिलाना चाहा था,
सुर्ख इबारत बयाँ करेगी – मैंने जीना चाहा था |

बस तेरे इक पल की खातिर मैंने दर्द हज़ार जिए,
प्यास बुझाने की खातिर अपने आँसू दिन रात पिए;
ना कोई दरकार और थी, ना कुछ लेना चाहा था,
सुर्ख इबारत बयान करेगी – मैंने जीना चाहा था |

Views: 818

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 13, 2012 at 1:19pm

//सुर्ख इबारत बयाँ करेगी- मैंने जीना चाहा था |//

वाह वाह वाह बहुत खूब. ये "सुर्ख इबादत" बहुत कुछ बयाँ कर गई, मेरी बधाई स्वीकारें.

Comment by Chaatak on March 13, 2012 at 8:41am

Thanks Neeraj ji, I do think so :)

Comment by Chaatak on March 12, 2012 at 10:12pm

राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन, पंक्तियों पर आपकी अच्छी प्रतिक्रिया पाकर बेहद खुशी हुई| हार्दिक धन्यवाद!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 12, 2012 at 10:06pm

बहुत अच्छे भाव सुन्दर शब्द संयोजन बहुत अच्छी लगी आपकी रचना 

Comment by Chaatak on March 12, 2012 at 9:44pm

स्नेही मयंक जी, सादर अभिवादन, आपके मार्गदर्शन से ही इस मंच तक पहुँच पाया हूँ| आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद!

Comment by Chaatak on March 12, 2012 at 9:42pm

स्नेही आशीष जी, सादर अभिवादन, उत्साहवर्धन करने का हार्दिक धन्यवाद !

Comment by Chaatak on March 12, 2012 at 9:41pm

स्नेही आनंद जी, सादर अभिवादन, रचना पर आपकी उत्साहवर्धक टिप्पडी से बेहद खुशी हुई|
हार्दिक धन्यवाद !

Comment by Chaatak on March 12, 2012 at 9:39pm

स्नेही वाहिद जी, पंक्तियों पर आपके विचार जानकर बहुत खुशी हुई| आप बंधुओं का प्रेम ही सबसे बड़ा मार्गदर्शक है|
हार्दिक धन्यवाद!

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 12, 2012 at 7:34pm

सुर्ख इबारत बयां करेगी-सब तेरे दिल की बातें|

कितना खोया,कितना पाया,कितनी घातें,प्रतिघातें?

इस जीवन में एक ही सच है,दुनिया आनी जानी  हैं|

जीवन उसका ही जीवन है जिसकी यादे आती हैं|..बहुत ही सुन्दर काव्य रचना चातक भाई|

Comment by आशीष यादव on March 12, 2012 at 7:30pm
एक सुन्दर रचना। पढ़ते हुए बहुत अच्छा लगा। सुन्दर भाव। बधाई स्वीकारेँ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service