For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल : ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया

212 212 212 212

...

दरमियाँ अब तेरे मेरे क्या रह गया,

फासला तो हुआ पर नशा रह गया ।

उठ चुका तू मुहब्बत में इतना मगर

मैं गिरा इक दफ़ा तो गिरा रह गया ।

ज़ह्र मैं पी गया, बात ये, थी नहीं,

दर्द ये, मौत से क्यों ज़ुदा रह गया ।

मौत से, कह दो अब, झुक न पाऊँगा मैं,

सर झुकाने को बस इक खुदा रह गया ।

टूट कर फिर से बिखरुं, ये हिम्मत न थी,

इस जहाँ को बताता, गिला रह गया ।

खत जो तेरा पढ़ा चश्म-ए-तर हो गए,

बा-वफ़ा था मैं अब बे-वफ़ा रह गया ।

ज़िन्दगी में चलीं आँधियाँ इस कदर,

ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया ।

-- --  ---

मौलिक व अप्रकाशित

हर्ष महाजन

Views: 828

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on March 5, 2018 at 11:47pm

...

दरमियाँ अब तेरे मेरे क्या रह गया,

फासला तो हुआ पर नशा रह गया ।

उठ चुका तू मुहब्बत में इतना मगर

मैं गिरा इक दफ़ा तो गिरा रह गया ।

ज़ह्र मैं पी गया, बात ये, थी नहीं,

दर्द ये, मौत से क्यों ज़ुदा रह गया ।

मौत से, कह दो अब, झुक न पाऊँगा मैं,

सर झुकाने को बस इक खुदा रह गया ।

टूट कर फिर से बिखरुं, ये हिम्मत न थी,

इस जहाँ को बताता, गिला रह गया ।

खत जो तेरा पढ़ा चश्म-ए-तर हो गए,

बा-वफ़ा था मैं अब बे-वफ़ा रह गया ।

ज़िन्दगी में चलीं आँधियाँ इस कदर,

ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया ।

Comment by Harash Mahajan on March 5, 2018 at 11:38pm

आदरणीय समर कबीर जी आदाब । आपके दिए प्रोत्साहन से ऊर्जा मिल जाती है सर । आपके आने भर से कुछ न कुछ सीखने को आवश्य मिलता है । आज एक और शब का इज़ाफ़ा हुआ । ज़ह्र का । 

मेरी बहुत सी ग़ज़लों में ये इस्तेमाल हुआ है सर । उन्हें दुरुस्त करने होगा । आपकी इस प्रोत्साहन भारी टिप्पणी के लिए दिल से मशकूर हूँ ।

सादर

Comment by Samar kabeer on March 5, 2018 at 10:28pm

जनाब हर्ष महाजन साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'बात ये थी नहीं,पी गया में ज़हर'

इस में 'ज़हर' शब्द सही नहीं,सही शब्द है "ज़ह्र"21,इसलिये इस मिसरे को यूँ कर लें :-

'ज़ह्र मैं पी गया बात ये थी नहीं'

Comment by Harash Mahajan on March 5, 2018 at 1:11pm

आदरणीय तेज वीर सिंह जी आपकी इस कृति पर उपस्तिथि और उत्साहवर्धन के लिए मैं तहे दिल से आभारी हूँ । शुक्रिया सर ।

सादर!

Comment by TEJ VEER SINGH on March 5, 2018 at 12:13pm

हार्दिक बधाई आदरणीय हर्ष महाजन साहब जी।बेहतरीन गज़ल।

ज़िन्दगी में चलीं आँधियाँ इस कदर,

ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया ।

Comment by Harash Mahajan on March 4, 2018 at 1:00pm

क्षमा कीजियेगा आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, ऑटो स्पेल में आपके नाम में त्रुटि हुई । 

सादर

Comment by Harash Mahajan on March 4, 2018 at 12:55pm

आदरणीय शरद सिंह  जी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया । उम्मीद है आपकी आमद यूँ ही बरकरार रहेगी ।

Comment by Harash Mahajan on March 4, 2018 at 12:53pm

आदरणीय श्याम नारातां वर्मा जी हौंसला अफ़ज़ाई का दिल से शुक्रिया ।

Comment by SHARAD SINGH "VINOD" on March 4, 2018 at 10:30am

आदरणीय महाजन जी एहसास व अनुभूति परक रचना हेतु बधाई सादर...

Comment by Shyam Narain Verma on March 4, 2018 at 10:21am
ही सुन्दर ग़ज़ल, हार्दिक बधाई l सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service