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ग़ज़ल -नूर- कहानी नहीं चली.

ग़ज़ल 
२२१/२१२/११२२/१२१२ 

कश्ती थी बादबानी, हवा ही नहीं चली,
मर्ज़ी नहीं थी रब की सो अपनी नहीं चली.
.
ज़ह’न-ओ-जिगर की, दिल की, अना की नहीं चली
मौला के दर पे क़िस्सा कहानी नहीं चली.  
.
कितने थे शाह कितने क़लन्दर क़तार में,
धमक़ी तो छोड़ दीजिये, अर्ज़ी नहीं चली.
.   
धुलवा दिए थे अश्क-ए-नदामत से सब गुनाह,   
चादर वहाँ ज़रा सी भी मैली नहीं चली.
.
होता रहा हिसाब-ए-अमल, रोज़-ए-हश्र, ‘नूर’  
कोई वहाँ पे बात किताबी नहीं चली. 
.
पुछल्ला 
.
हम मुफ़्लिसी के दौर में मैख़ाने कम गए,
हम को शराब, पर कभी, सस्ती नहीं चली.
.
निलेश "नूर"
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 17, 2016 at 2:12pm

शुक्रिया आ. रवि जी 

Comment by Ravi Shukla on March 15, 2016 at 1:24pm

आदरणीय नीलेश नूर जी बहुत बढि़या गजल कही आपने बधाई

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2016 at 8:08pm

शुक्रिया आ. लक्ष्मण जी

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2016 at 8:07pm

शुक्रिया आ. तस्दीक़ साहब... मिसरे बराबर हैं...

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 14, 2016 at 8:07pm

शुक्रिया आ. राहुल जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 14, 2016 at 11:35am

आ० भाई नीलेश जी बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई .

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 13, 2016 at 10:45pm

जनाब नीलेश नूर साहिब ,  अच्छी गज़लके लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। ..... कश्ती थी बादबानी हवा ही नहीं चली | अगर मैं गलत नहीं तो  मेरे ख्याल से इसकी बह्र है। ..... मफ़ऊल -फ़ाएलात -मफ़ाईल -फाइलुन ( 221 -2121 -1221- 212 ) | शेर नंबर ,4 और 5 का ऊला मिसरा देख लीजियेगा। ...... शुक्रिया

Comment by Rahul Dangi Panchal on March 13, 2016 at 9:43pm
सुन्दर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 13, 2016 at 4:56pm

शुक्रिया आ. समर कबीर सर... पुछल्ले में उस शैर को इसलिए रखा कि वो इस ग़ज़ल के मूड का नहीं था ..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 13, 2016 at 4:55pm

शुक्रिया आ. ब्रिजेश जी 

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