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वो पत्थर था , बहुत थे फेंकने वाले
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले


कब समझा है कोई वक़्त का इशारा
बन गए हैं ख़ुदा , उसे समझने वाले


ख्वाहिशें तो रखते है ज़माने में सब
और ही होते हैं ,उन्हें पूरा करने वाले


ग़ुम है बदगुमानी में ,ये सारी दुनिया
मिलते हैं कहाँ ,अब सच लिखने वाले


तलाश थी सिर्फ , एक फूल की विनय
हज़ार मिले राह में, कांटे रखने वाले !!

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by विनय कुमार on June 17, 2015 at 4:13pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी .

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 17, 2015 at 1:23pm

आदरणीय विनय जी ..भाव सुंदर हैं बस शिल्प की जरूरत है ..आदरणीय गिरिराज भाईसाब के मशविरे पर अमल करियेगा ..सादर 

Comment by विनय कुमार on June 16, 2015 at 12:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , प्रयासरत हूँ ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2015 at 8:35am

आदरणीय विनय भाई , गज़ल कहने का प्रयास बहुत आशा जनक है , हार्दिक बधाइयाँ । बस आपको  '' गज़ल की बातें ''  जो मंच पर उपलब्ध है का पाठ करना चाहिये , ताकि कुछ आधार भूत नियम जान सकें । हार्दिक शुभ कामनायें ।

Comment by विनय कुमार on June 15, 2015 at 10:03pm

आदाब आदरणीय समर कबीर जी , प्रयास करूँगा की सीख सकूँ .

Comment by विनय कुमार on June 15, 2015 at 10:02pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सुशील सरना जी .

Comment by Samar kabeer on June 15, 2015 at 4:15pm
जनाब विनय कुमार सिंह जी,आदाब,मैं बहना राजेश कुमारी जी की बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ,उनकी बातों का ध्यान दीजियेगा,बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Sushil Sarna on June 15, 2015 at 2:16pm

वो पत्थर ही था और पत्थर ही रहा
बन गए हीरे पर , उसे तराशने वाले

वाह … बहुत खूबसूरत अशआर आपने प्रस्तुत किये हैं आपने आदरणीय … खूबसूरत अहसासों से भरी इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।

Comment by विनय कुमार on June 15, 2015 at 12:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब , मैं पुनः प्रयास करता हूँ | आपका धन्यवाद जो आपने इतना समय दिया इस रचना पर..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 15, 2015 at 11:23am

अ० विनय जी

आपने मतला सुधार लिया मगर उसे अन्त में फिर दुहराया यह कदापि स्वीकार्य नहीं है क्योंकि गजल का अंतिम शेर जिसमें शायर का तखल्लुस भी होता है उसे मक्ता कहते है  i यदि  किसी कारण से तखल्लुस न आ पाये तो फिर उसे गजल का आखिरी शेर ही कहेंगे i गजल का बहर में लिखना भी अनिवार्य है बेबहर रचना गजल नहीं होती  I मैं  आपको कुछ आसन बहर बता रहा हूँ -

122  122 ---------------बहर का नाम है मुतकारिब मुरब्बा सालिम

122  122  122 -------------------------मुतकारिब मुसद्दस सालिम

122 122  122  122------------------- मुतकारिब मुसम्मन  सालिम

---- सादर ,.

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