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PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA's Blog – April 2012 Archive (9)

लघु कथा :- गिरगिट

आंदोलित विभिन्न कर्मचारी संगठनों ने अपनी मांगे सरकार से मनवाने हेतु व्यस्ततम  चौराहे को मानव श्रृंखला बना कर घेर दिये थे, मेरे नेर्तित्व में भी एक संगठन नारेबाजी और रास्ता अवरुद्ध करने मे संलग्न था, भीड़ में कुछ मरीजों के परिजन  अपनी गाड़ियों को आगे जाने देने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे, राधे बाबू जोर जोर से सभी को निर्देशित कर रहे थे कि एक व्यक्ति को भी आगे नहीं जाने देना है, चाहे कुछ हों जाए | एकाएक राधे बाबू का स्वर बदला और कहने लगे कि जाने दो भाई मरीजों की गाड़ियों…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 28, 2012 at 4:03pm — 18 Comments

मैं कौन हूँ ?

मैं कौन हूँ ?

अनंत आकाश या अन्तरिक्ष का मौन हूँ 

धरती का श्रृंगार हूँ पाताल का आधार हूँ 

पर्वतों  में   हूँ   शिखर  पाषाण में  भगवान  हूँ

नदियों का पाट हूँ  निर्बाध उसका बहाव हूँ 

झरने सा पतन मेरा   झर झर  आवाज  हूँ…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 27, 2012 at 6:29pm — 11 Comments

भूल नहीं पाया अभी तक

बात कुछ ज्यादा पुरानी नहीं है . आंदोलित कर्मचारी संगठनों द्वारा अपनी मांगों को शासन तक ज्ञापन के माध्यम से पहुँचाने हेतु निर्णय लिया गया कि सर्व प्रथम सभी कर्मचारी अपने - अपने कार्यालय में एकत्रित होंगे. फिर कार्यक्रम स्थल पर अपने -अपने बैनर के साथ जलूस के रूप में पहुचेंगे जहाँ पर मानव श्रखला बनाकर प्रदर्शन किया जायेगा. सवेरे से ही विभिन्न कार्यालयों के कर्मचारी अपने-अपने कार्यालय से एक जलूस के रूप में अपनी मांगों के समर्थन में नारे लगाते हुए पहुँचने लगे और मानव…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 21, 2012 at 2:30pm — 2 Comments

मैं उसे जन्म दूँगी

मनु और राकेश इंजीनियरिंग कोलेज में साथ - साथ पढ़ते थे. न जाने कब एक दूसरे को चाहने लगे पता ही नहीं चला. प्यार बिजली की तरह होता है जो दिखता तो नहीं महसूस होता है. प्यार की परिणिति विवाह के पवित्र सूत्र बंधन में हुई. यद्दपि कि प्रारंभ में परिवार, रिश्तेदारों और समाज के काफी विरोध का सामना इन दोनों को करना पड़ा , और विरोध स्वाभाविक भी था. खुद के परिवार में ऐसा हो जाये तो लोग खामोश रहते हैं अगर अन्य जगह ऐसा प्रकरण सामने आये तो फिर क्या कहने. सात पीढ़ियों तक के गुणगान किये जाते हैं. प्रेम विवाह…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 17, 2012 at 6:00pm — 18 Comments

व्यथा - एक पेड़ की

 तनहा खड़ा एक पेड़ हूँ मैं 

मन ही मन खड़ा  छटपटाता हूँ 

अतीत की धुंद में खो जाता हूँ 

कभी था बाग़ ए बहार यहाँ 

उजड़ा गुलशन बिखरा ये चमन 

लगता अब जैसे शमशान यहाँ 

आज न वो आँगन है 

न ही वे संगी साथी …

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 10, 2012 at 1:17pm — 6 Comments

भारत का भविष्य बनाना है.

जहाँ में फैली भूख गरीबी 
भ्रष्टाचार  एक  महामारी है 
फलता फूलता था धर्म  जहाँ  
वहां आन बसे व्यभिचारी  हैं 
सरे बाजार लुटती अस्मत अब 
लूट  घसीट  के ये बड़े…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 8, 2012 at 2:56pm — 4 Comments

ओ.बी.ओ. गीत

जय जय ओ.बी.ओ.  जय जय ओ.बी.ओ. 

आओ हम सब मिलकर गायें 
ओ.बी.ओ. महान है 
भटकते फिरते जो ज्ञान की खातिर 
उनके लिए वरदान है 
जय जय ओ.बी.ओ.  जय जय ओ.बी.ओ.  ..२ बार 
गजल छन्द कई भाषाओँ के  उपलब्ध  विधान…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 5, 2012 at 11:30am — 10 Comments

जय ओ.बी.ओ.

(ओ.बी.ओ. का अपना बैज है. ये रचना ओ.बी.ओ. गीत हेतु तैयार की है.)

भटकता फिर रहा था न जाने कब से भीड़ में एक आस लिए 

मुट्ठी  भर  पा  जाऊं धरा औ  ज्ञान की एक  बूँद  का विश्वास  लिए 

मिली जानकारी जब  कि ओ.बी.ओ. एक ऐसा आधार है 

गुनी जनों के सानिध्य मिले तो अवश्य तेरा बेडा पार है

गजल  छन्द  और  कई  भाषाओँ   के हैं  विधान  यहाँ  ,

कहानी  और  कविता  का  मिलता  है ऐसा  ज्ञान कहाँ   

नए  पुराने  और  धर्म जाति का  न  कोई  भेद  यहाँ 

वो जगह बताएं…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 4, 2012 at 6:00pm — 10 Comments

मैं एक पेड़ हूँ

तनहा खड़ा 

एक पेड़ हूँ मैं 

बरसों पहले 

नन्हा सा प्यारा बच्चा

पास के जंगल से …

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2012 at 4:00pm — 20 Comments

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