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PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA's Blog – March 2012 Archive (11)

वलवले

लुटा के सब कुछ चुपके से तेरी बज्म में हैं आये 
 बच गया था जो राख में  तेरी अंजुमन में हैं लाये 
महका करते थे जो कहीं और क्यों आज यहाँ हैं आये 
मर चुका जब अहसास गुलजार हो चमन अब  न भाये …
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 30, 2012 at 9:55pm — 6 Comments

वतन के लिए

भुजंग तुम 

वतन  के  लिए 

व्याल हम 

वतन  के  लिए 

कलंक तुम

वतन  के  लिए

तिलक हम 

वतन  के  लिए 

दुश्मन हो  

वतन  के  लिए …

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 22, 2012 at 11:06pm — 20 Comments

प्रेम दिवस -शहीद दिवस

राष्ट्र धर्म राष्ट्र  चेतना

की सुधि किन्हें कब आती है

घर की देहरी पर चुपके से वो

जलते दीपक को आँचल उढ़ाती है

 

कुछ करते नमन शहीदों को

कुछ घर में ही रह जाते हैं…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 22, 2012 at 9:00pm — 21 Comments

ये भारत देश हमार है

शस्य  श्यामला  धरती  अपनी   

भाल    हिमालय  मुकुट  श्रंगार  है 

झर  झर  झरते  झरने  मही  पर

कल  कल  बहती  नदियों  की  बहार  है 

ये   भारत  देश  हमार   है 

 

कई  सम्प्रदायों  से  बसी   ये  धरती…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 20, 2012 at 4:03pm — 19 Comments

सेनानी

बचपन बीता खेलों में 
माँ के सुन्दर सुन्दर गीतों में 
मन मयूर  मचलता फिरता  गलियन में 
भौंरा बन मंडराता छुप जाता  कलियन में 
गावों की नागिन सी  पग डंडियाँ 
बलखाती जा मिली जब हसीं शहरों से 
प्रेम रंग में डूब गया जा टकराया लहरों से 
कुछ मीत यहाँ कुछ मीत वहां 
कुछ साथ रहे  कुछ बिछड  गए 
हमने देखा  उसने पहचाना 
वादा था जीवन साथ निभाना 
वादे करते वो आईने…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 18, 2012 at 10:00pm — 15 Comments

बेबसी

रात्रि का अंतिम प्रहर घूम रहा तनहा कहाँ

थी ये वो जगह आना न चाहे कोई यहाँ

हर तरफ छाया मौत का अजीब सा मंजर हुआ

घनघोर तम देख साँसे थमी हर तरफ था फैला धुआं

नजर पड़ी देखा पड़ा मासूम शिशु शव था

हुआ जो अब पराया वो अपना कब था

कौंधती बिजलियाँ सावन सी थी लगी झड़ी

कौन है किसका लाल है देख लूं दिल की धड़कन बढ़ी

देखा तनहा उसे सर झुकाए समझ गया कि उसकी दुनिया लुटी

जल रही थी चिताएं आस पास ले रही थी वो सिसकियाँ घुटी घुटी

देती कफ़न क्या कैसे…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 17, 2012 at 10:00pm — 26 Comments

तेरी याद



ब्रज मां होली खेले मुरारी अवध मां रघुराई

मेरा संदेसा पिया को दे जो जाने पीर पराई

 

 

कोयल को अमराई मिली कीटों को उपवन

मैं अभागिन ऐसी रही आया न मेरा साजन

 

लाल पहनू , नीली पहनू,  हरी हो  या वसंती

पुष्पों की माला भी तन मन शूल ऐसे  चुभती

 …

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 13, 2012 at 9:03pm — 20 Comments

होली एक रूप

 

गुरु गोविन्द   द्वारे  खड़े सबके  लागों पायं

स्वागत प्रभु आप  का  ई लेओं  भांग  लगाये.

 

 

बूढ़ा तोता बोले राम राम भंग पी अब बौराया है

बीत गया मधुर मास खेलो होली  फागुन आया है.

 

 

भांग नशा नहीं औषधि है प्रयोग बड़ा है  गुणकारी

पहले इसको अन्दर…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 8, 2012 at 9:09pm — 4 Comments

होली आई रे



 नीला   रंग अम्बर पे धरा हरियाली छायी है 

फीकी पड़ी वसंत बयार लगे होली आयी है 
चहके कानन फूला उपवन चली पवन मतवाली है 
पुलकित तन  बहके मन आनन् पे  छायी लाली  है 
फीकी पड़ी वसंत बयार .........
अमराई फूली सरसों फूली डार डार कोयलिया कूकी 
चातक पपीहा विरही प्रियतमा पिया मिलन हिय हूकी 
फीकी पड़ी वसंत बयार…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 7, 2012 at 7:26pm — 1 Comment

भारत और हम









भारत सदैव 
आजाद था
आजाद है 
आजाद रहेगा 
 गुलामी और आजादी
 का कैसे भान हो 
शासक कोई, शासन कोई 
चाहें जो सरकार हो 
जब मानसिकता विकलांग हो 
भारत कभी जकड़ा नहीं 
गुलामी की जंजीर में 
देखने का…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 5, 2012 at 3:50pm — 11 Comments

प्रथम पुष्प

प्रथम पुष्प अर्पित तुमको, मसलो या श्रृंगार करो,

आया तेरे द्वार प्रभु, मेरा बेड़ा पार करो ,



चाहत थी जीवन की मेरी, दुखियों का दर्द उधार लूं

उजड़ चुके है जिनके घर,…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 3, 2012 at 3:00pm — 26 Comments

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