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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – August 2020 Archive (9)

स्वाधीन हो के भी कहाँ स्वाधीन हम हुए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२



फेंका जो होता आप ने पत्थर सधा हुआ

दिखता जरूर भेड़िया घायल गिरा हुआ।१।

**

हर बार अपनी चाल जो होती नहीं सफल

है दुश्मनों से  आज  भी  कोई मिला हुआ।२।

**

स्वाधीन हो के  भी कहाँ स्वाधीन हम हुए

फिरता न यूँ ही हाथ ले फदली कटा हुआ।३।

**

रोटी मिली न मुझको न तुझको खुशी मिली

ऐसी गजल से बोल तो किस का भला हुआ।४।

**

कल तक जो हँसता खेल के चिंगारियों से था

रोता है आज  देख  के  निज  घर जला हुआ।५।

**

मैं जुगनुओं को मुँह…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2020 at 7:17pm — 4 Comments

काँटों से बिँध फूल को आते - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



शीशे को भी  रखने  वाले  पत्थर लोगों नहीं रहे

‌यौवन के अब पहले  जैसे  तेवर  लोगों नहीं रहे।१।

**

ढूँढा करते  हैं  गुलदस्ते  तितली  भौंरे  आज यहाँ

‌काँटों से बिँध फूल को आते मधुकर लोगों नहीं रहे।२।

**

केवल आँच जला देती है सावन में भी देखो अब

ज्लाला से लड़ बचने वाले वो घर लोगों नहीं रहे।३।

**

एक तो पहले से मुश्किल थी ये कोरोना क्या आया

‌रोज कमा खाने के भी अब अवसर लोगों नहीं रहे।४।

**…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 21, 2020 at 9:00am — 10 Comments

किसी की आँख का काँटा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२



किसी की आँख  का  काँटा  न  तू होना गँवारा कर

किसी की आँख का तारा स्वयम् को हाँ बनाया कर।१।

**

ये जननी जन्म भूमि तो सभी को स्वर्ग से भी बढ़

गढ़ी हो नाल जिस भूमी उसे हर पल सँवारा कर।२।

**

उतर जाये तो जीवन ये रहे लायक न जीने के

उतरने दे न पानी निज न औरों का उतारा कर।३।

**

जो अपनी नींद सोता हो जो अपनी नींद जगता हो

उसी सा होने की जिद रख उसी को बस सराहा कर।४।

**

हँसी की बात  लगती  पर  हँसी  में मत उड़ा देना

अगर दाड़ी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2020 at 4:01pm — 3 Comments

दो चार रंग छाँव के हमने बचा लिए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

टूटे जो डाल से वही पत्ते उठा लिए

दीवार घर की सूनी थी उस पर सजा लिए।१।

**

वैसे खिले थे फूल भी किस्मत से तो बहुत

हमने ही अपनी राह में काँटे बिछा लिए।२।

**

नश्तर थे सब के हाथ में आये कुरेदने

आया था कौन घाव की बोलो दवा लिए।३।

**

कहने को धूप राह में तीखी तो थी मगर

दो चार रंग छाँव के हमने बचा लिए।४।

**

जैसे फिरे थे आपकी गलियों में हम कभी

फिरता रहा है कौन यूँ अपना पता लिए।५।

**

ये कर्ज किससे यूँ भला यारो… Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2020 at 11:05am — 14 Comments

आँगन वो चौड़ा खेत के छूटे रहट वहीं - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२१/१२२१/२१२



पूछो न आप गाँव को क्या क्या हैं डर दिये

खेती को मार  खेत  जो  सेजों से भर दिये।१।

**

पाटे गये वो ताल भी पुरखों की देन जो

रख के विकास नाम ये अन्धे नगर दिये।२।

**

आँगन  वो  चौड़ा  खेत  के  छूटे  रहट  वहीं

दड़बों से आगे कुछ नहीं जितने भी घर दिये।३।

**

वो भी धरौंदे तोड़  के  हम  से ही  थे गहे

कहकर सहारा आप ने तिनके अगर दिये।४।

**

कोई चमन  के  फूल  को  पत्थर बना रहा

कोई था जिसने शूल भी फूलों से कर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2020 at 6:30am — 5 Comments

है जो कुछ भी धरती का - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' ( गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२

अपना क्या है इस दुनिया में है जो कुछ भी धरती का

आग, हवा ये, फूल, समन्दर, चिड़िया, पानी धरती का।१।

**

क्या सुन्दरवन क्या आमेजन कोलोराडो क्या गौमुख

ये  हरियाली,  रेत  के  टीले,  सोना, चाँदी  धरती  का।२।

**

हिमशिखरों  की  चमक  चाँदनी  बारामूदा  का जादू

पीली नदिया,  हरा समन्दर  ताजा  बासी  धरती का।३।

**

बाँध न गठरी लूट धरा को अपना माल…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 9, 2020 at 4:20am — 7 Comments

महज चाहत का रिस्ता है - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'( गजल)

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२



जमाने की नजर में यूँ बताओ कौन अच्छा है

भले ही माँ पिता  के  वास्ते हर लाल बच्चा है।१।

**

हदों में झूठ बँध पाता  नहीं  है आज भी लोगों

जुटाली भीड़ जिसने बढ़ लगे वो खूब सच्चा है।२।

**

लगे बासी भरा जो भोर को घर में जिन्हें सन्ध्या

मगर बोतल में जो पानी कहा करते वो ताजा है।३।

**

महज चाहत का रिस्ता है यहाँ हर चीज से मन का

सुना है नेह से  मिलता …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 6, 2020 at 5:11pm — 2 Comments

अछूतों सा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२



अछूतों से भी मत करना कभी व्यवहार अछूतों सा

समय तुम को न इस से दे कहीं दुत्कार अछूतों सा।१।

**

कहोगे भार जब उनको तुम्हें कोसेगा अन्तस नित

कहोगे तब स्वयम् को ही यहाँ पर भार अछूतों सा।२।

**

करोना  वैसा  ही  लाया  करें  व्यवहार  जैसा  हम

उसी का भोगता अब फल लगे सन्सार अछूतों सा।३।

**

पता पाओगे  पीड़ा  का  उन्हें  जो  नित्य  डसती है

कहीं पाओगे…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2020 at 6:30am — 10 Comments

कितना मुश्किल होता है - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



रात से बढ़कर दिन में जलना कितना मुश्किल होता है

सच कहता हूँ निज को छलना कितना मुश्किल होता है।१।

**

जब रिश्तों के बीच में ठण्डक हद से बढ़कर पसरी हो

धूप से बढ़कर छाँव में चलना कितना मुश्किल होता है।२।

**

पेड़ हरे में जो भी मुश्किल सच में हल हो जाती पर

ठूँठ बने तो धार में गलना कितना मुश्किल होता है।३।

**

साथ समय तो लक्ष्य सरल पर समय हठीला होने से

सच में धारा संग भी चलना कितना मुश्किल होता है।४।

**…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 4, 2020 at 5:00pm — 8 Comments

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