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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – July 2021 Archive (9)

हमने तो देखा बीज न खेतों में डालकर -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



शीशा भी लाया आज वो लोहे में ढालकर

बोलो करोगे आप  क्या पत्थर उछाल कर।१।

*

जिन्दा ही दफ्न सत्य जो कल था किया गया

लानत समय  ने  आज  दी  मुर्दा  निकालकर।२।

*

वो बिक  गयी  है  वस्तु  सी  बेहाल भूख से

अब क्या रखोगे बोलिए उस को सँभालकर।३।

*

केवल किसान  जानता  मौसम की मार को

हम ने तो  देखा  बीज  न  खेतों  में डालकर।४।

*

रोटी का मोल  जानते  बचपन  से ही बहुत

माँ ने …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 31, 2021 at 1:18pm — 15 Comments

आजकल इस देश में-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



ये शिवालों से दुखी है आजकल इस देश में

वो हवाओं से दुखी है आजकल इस देश में।१।
.

भूखे रहने की  सलाहें  दे  रहा  भूखों को वो

जो निवालों से दुखी है आजकल इस देश में।२।

**

जिस को उत्तर सारे  के  सारे  पता हैं दोस्तो

वो सवालों से दुखी  है  आजकल इस देश में।३।

**

जो अँधेरों से बचा लाया था अपने-आप को

वो उजालों से दुखी  है आजकल इस देश…
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2021 at 12:30pm — 12 Comments

हमको समझ नहीं-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



कहते है लोग प्रीत  की  हमको समझ नहीं

दुश्मन के साथ मीत की हमको समझ नहीं।१।

*

नफरत ही नित्य बँट  रही  सरकार इसलिए

आँगन में उठती भीत की हमको समझ नहीं।२।

*

न्योतो  न  आप  मंच  से  महफिल  बिगाड़ने

कविता गजल या गीत की हमको समझ नहीं।३।

*

हम ने सदा  ही  धूप  का  रस्ता  बुहारा  पर

रिश्तों में पसरी शीत की हमको समझ नहीं।४।

*

समझा नहीं है  खेल  मुहब्बत  को इसलिए

इस में ही…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 25, 2021 at 5:17am — 4 Comments

उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२ /२२

जिसका अपना यहाँ दायरा कम है

आसमाँ को भी  वो  मानता कम है।१।

*

मुझसे कहता है क्यों पूजता कम है

देख तुझ  में  भी  तो  देवता कम है।२।

*

जो  ठहरना  नहीं  चाहता  साथी

उसके हिस्से में क्यों रास्ता कम है।३।

*

बात औरों के सिर डालकर देखो

अपने  ईमान  को  तौलता कम है।४।

*

पास  बैठा  है  लेकिन  अबोला  ही

कौन कहता है अब फासला कम है।५।

*

हर बुराई …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 21, 2021 at 9:43am — 12 Comments

रात भर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२१/१२२१/२१२

आँखों में नींद ला के जगाती है रात भर

पाकर अकेला याद जो आती है रात भर।१।

*

कैसे हो चैन देह को मन को सुकून तब

शोलों सी चाँदनी ये जलाती है रात भर।२।

*

होने लगी है जुल्फ जो उसकी सफेद यूँ

आँखों के आँसुओं से नहाती है रात भर।३।

*

बजती हवा से दूर जो मंदिर की घन्टियाँ

आवाज दे के लगता बुलाती है रात भर।४।

*

आता है याद माँ का वो दामन हमें बहुत

जब रात सर्दियों  की सताती है रात…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 12, 2021 at 7:30am — 5 Comments

करके दिखाया देश में किसने कहा हुआ -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



सेवा  के  नाम  खाते  हैं  मेवा  छिपा  हुआ

इनके सिवा बताओ तो किसका भला हुआ।१।

*

मिलती हैं रोटियाँ जो ये कुर्सी के खेल से

है रक्त बेबशों  का  भी  इन में लगा हुआ।२।

*

मुकरे  हैं  नेता  सारे  ही  देकर  वचन हमें

करके दिखाया देश  में  किसने कहा हुआ।३।

*

नेता हुए हैं आज  के  गिरगिट सरीखे सब

खादी को ऐसे कर दिया सबसे गिरा हुआ।४।

*

ये  नीरो  जैसे  देश  में  रहते  हैं …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 11, 2021 at 2:41am — 4 Comments

कहते पुजारी मुझ से हैं तू देवता बदल- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



रस्ता बदल न और कभी काफ़िला बदल

केवल तू अपनी सोच का ये दायरा बदल।१।

*

मिलती है राह कर्म से जन्नत की भी मगर

किस्मत को जीतने के लिए हौसला बदल।२।

*

है जानकार जो  भी  वो  पैसों के पीछे बस

जिसको पता न रोग का कहता दवा बदल।३।

*

चेहरा ही अपना दाग से करता जो गुफ्तगू

क्या होगा हमको लाभ बता आईना बदल।४।

*

पूजा का खुद को तौर तरीका न आता है

कहते पुजारी मुझ से  हैं  तू देवता बदल।५। …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2021 at 7:00am — 4 Comments

भूख का व्यापार मत करवाइए- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

कायराना  काम  कोई  यार  मत करवाइए

हर नदी नाले को हम से पार मत करवाइए।१।

*

शेर पाला है तो शेरों से लड़ाओ खूब पर

गीदड़ों से तो उसे दो-चार मत करवाइए।२।

*

वीरता की धार इससे कुंद सी पड़ जायेगी

रोजमर्रा दुश्मनों   से   प्यार मत करवाइए।३।

*

जाति धर्मों  के  लवादे  में  सियासत हेतु यूँ

नित्य अपनों से तो इतनी रार मत करवाइए।४।

*

चापलूसों को जमाकर रंग रोगन बस…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 9, 2021 at 7:43am — 6 Comments

देवता होना नहीं पर दानवों की बात सुन-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/२१२२/२१२२/२१२



कौन कहता घाव  अपने  सी  रहा है आदमी

आजकल तो खून  अपना  चूसता है आदमी।१।

*

देवता होना  नहीं  पर  दानवों  की बात सुन

आदमी की  पाँत  से  ही  लापता है आदमी।२।

*

जब हुआ उत्पन्न होगा तब भले वरदान हो

आज धरती के लिए बस हादसा है आदमी।३।

*

प्यास होने पर  मरुस्थल  छान लेता नीर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2021 at 6:42pm — 12 Comments

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"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
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"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
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