For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Akhand Gahmari's Blog – June 2014 Archive (5)

गजल सितम देखो

हमें वो वेवफा कह कर बुलाते है सितम देखो

चुरा कर नीद रातो की सताते है सितम देखो



कभी मै देखता भी तो नहीं था जाम के प्‍याले

कसम दे कर मुझे अपनी पिलाते है सितम देखो



बडे अरमान से जिसने  बनाया आशिया मेरा

वही उस आशिये को अब जलाते है सितम देखो



न रूठे वो कभी हमसे हमारे साथ चलते थे

मगर अब साथ गैरो का निभाते है सितम देखो



खुले जो लब कभी जिनके हमारा नाम ही निकले

न जाने क्‍यो वही हमको भुलाते है सितम देखो

मौलिक व…

Continue

Added by Akhand Gahmari on June 30, 2014 at 8:00am — 19 Comments

बनाया था महल मैनें गजल

1222 1222 1222 122

हमारे प्‍यार को वो अब निभाती भी नहीं है

जलाये क्‍यों हमारा दिल बताती भी नहीं है

लिखा जो गीत उसने वेवफाई पे हमारी

कभी वह गीत हमको तो सुनाती भी नहीं है

बनाया था महल मैनें कभी उनके लिये जो

पड़ा है आज भी सूना जलाती भी नहीं है

बड़े अरमान थे उनसे सजाये जिन्‍दगी में

मगर उनको कभी अब वो सजाती भी नहीं है

करें किससे शिकायत जिन्‍दगी की हम बताओ

कभी भी प्‍यार से मुझको बुलाती भी नहीं है

मौलिक व अप्रकाशित अखंड…

Continue

Added by Akhand Gahmari on June 16, 2014 at 2:09pm — 17 Comments

खोने नही़ं देती

1222   1222  1222   1222



किसी की याद रातो मे हमें सोने नहीं देती

कसम उसने दिया था जो हमे रोने नहीं देती



चली थी साथ मेरे जो कभी इक हमसफर बन कर

न जाने पास अपने क्‍यों हमें होने नहीं देती



सिखाया था हमें जिसने जमाने में रहें कैसे

वही अब प्‍यार भी हमको वहाँ बोने नहीं देती



नहीं है प्‍यार मुझसे अब मगर नफरत जरा देखो

किसी को लाश भी मेरी वो अब ढोने नहीं देती



हमारे गीत में छुपकर हमेशा जो चली आती

बने आवाज दिल की वो हमें खोने…

Continue

Added by Akhand Gahmari on June 15, 2014 at 1:30am — 5 Comments

आदमी हूँ सनम कोई तोता नहीं

सोचते ही रहे खेत जोता नहीं

प्‍यार के फूल क्‍यों कोई बोता नहीं



लुट गई देख अबला कि अस्‍मत यहाँ

शर्म से कोई आँखे भिगोता नहीं



तोड़ कर कोई जाता न दिल प्‍यार में

साथ अपनो का अब कोई खोता नहीं



सोच हैरान क्‍यों रोज इज्‍जत लुटे

चैन की नी़ंद क्‍यो़ं कोई सोता नहीं



क्‍या भरोसा करें हम किसी का सनम

आदमी आदमी का ही होता नहीं



बात में बात सबकी मिलाता रहूँ

आदमी हूँ सनम कोई तोता नहीं

मौलिक एवं…

Continue

Added by Akhand Gahmari on June 7, 2014 at 6:30pm — 3 Comments

कुहरा धना है गजल तरही गजल

2122 2122 2122

मत कहो आकाश में कुहरा धना है

जाल धुमते बादलो ने बस बुना है



धूप की चादर अभी फैली फिजा में

चाँदनी को चाँद से मिलना मना है



भूल से भी हम न तड़़पाये तुझे थे

दे गवाही आज वो तेरा अना है



फूल भी रोने लगे तब से चमन में

रौद देगा माली ही जब से सुना है



नींद भी तब से नहीं आती किसी को

आदमी शैतान ही जब से बना है



आज ये सुन  शर्म खुद रोने लगा क्‍यों

औरतो ने राह पर  बच्‍चा जना है



मौलिक एवं…

Continue

Added by Akhand Gahmari on June 1, 2014 at 1:00am — 13 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service