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रामबली गुप्ता's Blog – August 2016 Archive (6)

बाढ़-रामबली गुप्ता

कुण्डलिया छंद



नर-नारी-पशु-खग-विटप, हुए सभी बेहाल।

यू पी और बिहार में, हुई बाढ़ विकराल।।

हुई बाढ़ विकराल, काल सम बढती नदियाँ।

डूबे हर घर-बाग-खेत सब डूबी गलियाँ।।

प्रलय रूप धर आज, प्रकृति ज्यों उतरी भू पर।

ये उसका प्रतिशोध, विचारोगे कब हे! नर?



छप्पय छंद



कहीं बाढ़ विकराल, कहीं नर जल को तरसें।

कहीं सूखते खेत, कहीं घन अतिशय बरसें।।

कैसा है यह रूप, प्रकृति का कहा न जाए।

दोषी नर ही स्वयं, तभी तो दुख अति पाए।

नर नित्य प्रकृति का… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 28, 2016 at 11:00pm — 7 Comments

कविता-बन के शुचि स्नेह-सरोज.... रामबली गुप्ता

मत्त सवैया छंद

बन के शुचि स्नेह-सरोज सदा,
सबके उर-सर में विकसित हो।

मद-लोभ व द्वेष न हो मन में,
सर्वोपरि मानव का हित हो।।

कुछ कर्म करो इस भाँति सखे!
निज राष्ट्र-धर्म सम्मानित हो।

नर होने पर हो गर्व सदा,
नरता न कभी अपमानित हो।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by रामबली गुप्ता on August 19, 2016 at 10:00pm — 9 Comments

स्वाभिमानी पत्थर-रामबली गुप्ता

मानव उवाच(कुकुभ छंद)



सुनो कथा पत्थर की भैया,

पत्थर क्या-क्या सहते हैं?

कथा व्यथा है इनकी सच मे,

डरे-डरे-से रहते हैं।।

जिसका भी जी चाहे इनको,

दीवारों में चुनवा दे ।

और हथौड़े की चोटों से,

टुकड़ों मे भी तुड़वा दे।।



पत्थर उवाच(ताटंक छंद)



चोटों की परवाह नही है,

चोटों पर दिल वारा है।

मानवता के काम आ सकें,

ये सौभाग्य हमारा है।।

महल-अटारी-मंदिर-मस्जिद,

नगर-डगर गुरुद्वारा है।

जग में गिरि से लघु कंकड़… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 18, 2016 at 6:34am — 4 Comments

प्रार्थना(ग़ज़ल) -रामबली गुप्ता

वह्र= 221 1221 1221 122



हे! ईश! हे' जगदीश! दया मान व बल दो।

हो शीश पे' आशीष हमें ज्ञान-विमल दो।



कर दूर सभी द्वेष मलिन-भाव हृदय से।

प्रभु! काट तमस-बंध हृदय-ज्योति धवल दो।।



सुर-साज नया ताल नया राग नया रव।

प्रभु! छंद-नया गान-मृदुल कंठ-नवल दो।।



प्रभु! ध्यान रहो नित्य व अधरों पे' हमारे।

निज भक्ति-भरे भाव के' नव गीत-ग़ज़ल दो।।



हिय-बाग में' नित पुष्प खिलें रंग-बिरंगे।

प्रभु! उर के' सरोवर में' नया नेह-कमल… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 11, 2016 at 9:30am — 13 Comments

आखिर क्यों?(अतुकांत)-रामबली गुप्ता

वो समुद्रतट की

चांदनी रातें

सुहानी बातें

रजनी का रजनीकर के

स्नेहिल ज्योत्स्ना में

नहाना

भीगना।

प्रेम-सिक्त

पुलकित

यामिनी के

निःशब्दता में

चुम्बन

आलिंगन

रति-परिणय, आहा!

हृदय में

उमड़ते

लहराते

गहरे प्रेमधि का

विश्वास

और

गंभीर जलधि की

उपेक्षा

पर आज

वो दृश्य नही

प्रेमधि नही

सिर्फ अश्रुधि

वही रजनी

रजनीकर

निःशब्दता

किन्तु

सर्प की भाँति डंसता… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 4, 2016 at 12:37pm — 8 Comments

सवैये : रामबली गुप्ता

वागीश्वरी सवैया



वशीभूत जो सत्य औ स्नेह के हो, जहाँ में उसे ढूंढना क्या कहीं?

न ढूंढो उसे मन्दिरों-मस्जिदों में,शिवाले-शिलाखण्ड में भी नहीं!

जला प्रेम का दीप देखो दिलों में, मिलेगा तुम्हें वो सदा ही यहीं।

जहाँ नेह-निष्काम निष्ठा भरा हो, सखे! ईश का भी ठिकाना वहीं।।



दुर्मिल सवैया



दुख जीवन में अति देख कभी, मन को नर हे! न निराश करो।

रहता न सदा दुख जीवन में, तुम साहस से मन धीर धरो।।

रजनी उपरांत विहान नया, अँधियार घना मत देख डरो।

लघु-दीप जला…

Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 1, 2016 at 8:30pm — 10 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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