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Sushil Sarna's Blog – February 2016 Archive (7)

नयी क़बा ....

नयी क़बा ....

कितनी अजब होती है

वो प्रथम अभिसार की रात

पुष्पों से सेज सुरभित रहती है

पलकों में उनींदे ख्वाब रहते हैं

एक जिस्म

दो कबाओं में सिमटा

किसी अनजाने पल के इंतज़ार में

ख़ौफ़ज़दा होता है

न चाह कर भी

अपने हाथों से

कुवांरे ख़्वाबों की क़बा का

कत्ल करना पड़ता है

मुहब्बत के

रेशमी  अहसासों का नया पैराहन

खामोश वज़ूद को

एक नया नाम दे देता है

कुवारी क़बा

इक चुटकी भर सिन्दूर में लिपट…

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Added by Sushil Sarna on February 27, 2016 at 8:00pm — No Comments

गूंगी गुड़िया ....



गूंगी गुड़िया ....

कितनी प्रसन्न दिख रही हो

सुनहरे बाल

छोटी सी फ्रॉक

छोटे छोटे पांवों में

लाल रंग की बैली

नटखट आँखें

नृत्य मुद्रा में फ़ैली दोनों बाहें

बिन बोले ही तुम

कितने सुंदर ढंग से

अपने भावों का

सम्प्रेषण कर रही हो

तुम पर

किसी मौसम का

कोई असर नहीं होता

सदैव मुस्कुराती हो

गुड़िया हो न !

शीशे की अलमारी में बंद रह के भी

सदा मुस्कुराती हो//

मैं भी बुल्कुल तुम्हारी तरह…

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Added by Sushil Sarna on February 23, 2016 at 3:38pm — 2 Comments

चुप हो जाते हैं ...

चुप हो जाते हैं.....

मन ही मन

हम कितना बतियाते हैं

जब अक्सर

हम चुप हो जाते हैं//

कभी आँखें बोलती हैं

कभी लब थरथराते हैं

रुके हुए पाँव

मील का पत्थर हो जाते है

जब अचानक

हम चुप हो जाते हैं//

तारीकियों के कैनवास पे

रिश्तों की सिसकती रेखाओं से

अपनी तूलिका में

दर्द का रंग भरकर

उसमें सिमट जाते हैं

अक्सर जब

हम चुप हो जाते हैं//

तपती राहों पर

सूखे होते शज़र से लिपट…

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Added by Sushil Sarna on February 22, 2016 at 9:37pm — 2 Comments

प्यार में ....

प्यार में .......

नहीं नहीं

मैं अभी मृत्यु को

अंगीकार नहीं करना सकता//

अभी तो प्रेम सृजन का

शृंगार अधूरा है//

वृक्ष विहीन प्रेम पंथ पर

तलवों की तपिश का

संहार अधूरा है//

पाषाण बने पलों में

किसी लहर के

तट से मिलन का

इंतज़ार अधूरा है//

अभी तो मृत्यु से पूर्व

मुझे उसके लिए जीना है

जिसने आसमान के टूटे तारे से

बंद आँखों से

संग संग जीने की

दुआ माँगी है…

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Added by Sushil Sarna on February 16, 2016 at 9:02pm — 4 Comments

थाप पे तबले की ....



थाप पे तबले की ....

थाप पे  तबले  की  घुंघरू बजने लगे

किसने  पहचानी  इनकी  परेशानियां

दाम लगने लगे ज़िस्म थिरकने लगे

आई नज़र में नज़र तो बस हैवानियाँ

थाप पे तबले की ......

सब  खरीददार  थे  कोई  अपना न था

सूनी  आँखों  में  कोई भी सपना न था

चीर डाला  हर  एक  हाथ ने जिस्म को

बज़्म में चश्म से दर्द छलकना  न  था

शोर साँसों  की सिसकी का हर ओर था

हर  सिम्त  थी  बस नादान नादानियां

पाँव  घुंघरू  बंधे  महफ़िल में बजते रहे

किसने  …

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Added by Sushil Sarna on February 8, 2016 at 9:58pm — 8 Comments

अपना अधिकार रहने दो ....

अपना अधिकार रहने दो ....

व्यथित हृदय

कुछ तो रहने दो मन में

व्यथा को शब्दों के लिबास मत दो

शब्द सज संवर के आएंगे

जाने क्या क्या कह जाएंगे

अपने मौन को

शब्दों के आश्रित मत करो

सफर में शब्द भाव बदल देते हैं

जो अपनी होती है

वही बात

शब्दों के परिधान पहन

पराई हो जाती है

अपनी बात को

लोचन में पिघलने मत दो

अन्यथा व्यथा का रूप बदल जाएगा

बात का अपनापन

परायेपन की आशंका से

व्यर्थ में गीला हो जाएगा

बात…

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Added by Sushil Sarna on February 5, 2016 at 12:50pm — 6 Comments

उस पार ...

उस पार ...

सच मानिए

नदिया के उस पार तो

कुछ भी नहीं है

जो कुछ भी है

सब इस पार यहीं है

आरम्भ भी यहीं है

अंत भी यहीं है

खुद से मिलने का

खुद में समाया

जीव का अलौकिक

पंत भी यहीं है

उस पार तो

कुछ भी नहीं है //

एक घर से

दूसरे घर की दूरी

एक श्वास भर ही तो है //

एक स्वप्न और

यथार्थ की दूरी

एक श्वास भर ही तो है //

एक मिलन और

विछोह की दूरी

एक श्वास भर ही…

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Added by Sushil Sarna on February 3, 2016 at 8:40pm — 12 Comments

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