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Vijay nikore's Blog – May 2013 Archive (3)

सपने की झलक

सपने की झलक

 

स्वर्णिम कल्पनाओं में पले, सलोने-से, परितुष्ट सपने मेरे,

लगता है कई संख्यातीत संतप्त युगों पर्यन्त  मैंने तुमको

आज  जीवन-गति की लय पर यूँ ध्वनित देखा, गाते देखा।

वर्तमान के उजले संगृहीत प्रकाश में पुन:  प्रदीप्त थे तुम,

समय की धारा पर मैंने तुमको लहरों-सा लहलहाते देखा।

जाने कितने अवशेष हैं अब सुख-निद्रा के यह प्रसन्न-पल,

गिने-चुने पलों की झोली भर कर रंजित मन में संप्रयुक्त

ऐसे ही उल्लास में अपने तू…

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Added by vijay nikore on May 27, 2013 at 1:00pm — 17 Comments

माँ ... श्रध्दांजलि !

माँ ... श्रध्दांजलि !

(पावन माँ दिवस पर)

मैं प्राण-स्वपन तुम्हारा, तुमने सर्जन किया था मेरा,

कभी मैंने जन्म लिया था तुम्हारे पावन-अंदर,…

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Added by vijay nikore on May 7, 2013 at 3:30pm — 26 Comments

तुम, मेरी पहचान !

                              तुम, मेरी पहचान !

            

                 

             तुम अति-सुगम सरल स्नेह से मेरी

                                            प्रथम पहचान

             मेरे   कालान्तरित   काव्य   की

             अंतिम कड़ी,

             गीतों की गमक…

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Added by vijay nikore on May 1, 2013 at 1:30pm — 26 Comments

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