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Dr. Vijai Shanker's Blog – August 2015 Archive (3)

हम क्या कर रहे हैं -- डॉo विजय शंकर

देश बड़ा है , महान है ,

कहाँ है ,

हर एक तो अपने परिवेश

से परेशाँ है ,

सब अपनी अपनी पहचान

बता रहे हैं ,

दूसरे का अस्तित्व ही

नकार रहें हैं ,

स्वयं को खुद ढूंढ

नहीं पा रहे हैं ,

न अपने को समझा

पा रहे हैं ,

न दूसरे को समझा

पा रहे हैं ,

भटके हुए दूसरे को

रास्ता दिखा रहे हैं ,

कैसे कैसे टुकड़ों में

बँट रहे हैं ,

टुकड़ा टुकड़ा

लड़ा रहे हैं ,

कह रहे हैं हम

देश बना रहे हैं ॥



मौलिक एवं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 27, 2015 at 9:26am — 8 Comments

कलयुग हैं , कलियुगी होना चाहिए ---डॉo विजय शंकर

आदमी को समय के साथ चलना चाहिए

कलयुग में हैं तो कलियुगी होना चाहिये ॥

चालाकियां होश्यारियां हुनर सब अपने लिए हैं

काम दूसरे का हो तो मासूम बन जाना चाहिए ॥

अपने सब काम क़ानून को ताख पर रख कर कर लें

दूसरे को सारे नियम क़ानून बताना चाहिए ॥

बात किसी की कभी काटनी नहीं चाहिए

काम किसी का भी हो करना नहीं चाहिए ॥

कहना किसी का भी हो मोड़ना नहीं चाहिए

तिनका किसी के लिए भी तोड़ना नही चाहिए ॥

आदमी को समय के साथ साथ चलना चाहिए

कलयुग में हैं तो घोर कलियुगी… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 24, 2015 at 8:30am — 16 Comments

कैसे कैसे बिकता है आदमी -- डॉo विजय शंकर

आदमी की कीमत समझता है आदमी

किस किस भाव देखिये बिकता है आदमी ॥



जमीर कीमती है जानता है आदमी

तभी उसका बड़ा खरीदार है आदमी ॥



जब चाहे जहां चाहे खरीद ले कोई

हर जगह हर वक़्त खूब बिकता है आदमी ॥



रिश्ते - दोस्ती में सब देखता है आदमी

बिकते समय कुछ नहीं देखता है आदमी ॥



खरीदार होना चाहिए देशी हो विदेशी

जानवर से भी सस्ते में बिकता है आदमी ॥



गुलामी कुप्रथा थी इक जो खत्म हो गयी

अब तो खुद बिकने को आज़ाद है आदमी… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 5, 2015 at 10:30am — 16 Comments

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