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Khursheed khairadi's Blog (52)

गीतिका .....8 + 8---निगाहें

आँज गगन का नील निगाहें

लगती गहरी झील  निगाहें

 

माँस बदन पर दिख जाये तो

बन जाती है चील निगाहें

 

आन टिकी है मुझ पर सबकी

चुभती पैनी कील निगाहें

 

बंद गली के उस नुक्कड़ पर

करती है क्या डील निगाहें

 

इक पल में तय कर लेती है

यार हज़ारों मील निगाहें

 

बाँध सकेगा मन क्या इनको

देती मन को ढील निगाहें

 

दिखने दे ‘खुरशीद’ नज़ारे

किरणों से मत छील निगाहें 

मौलिक व…

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Added by khursheed khairadi on February 18, 2015 at 3:30pm — 18 Comments

गीतिका --8+8+8 .....फिर आऊँगा

मातृधरा को शीश नवाने फिर आऊँगा

जननी तेरा कर्ज़ चुकाने फिर आऊँगा

 

चंदन जैसी महक रही है जो साँसों में

उस माटी से तिलक लगाने फिर आऊँगा

 

आँसू पीकर खार जमा जिनके सीनों में

उन खेतों में धान उगाने फिर आऊँगा

 

इक दिन तजकर परदेशों का बेगानापन

आखिर अपने ठौर ठिकाने फिर आऊँगा

 

गोपालों के हँसी ठहाके यादों में हैं

चौपालों की शाम सजाने फिर आऊँगा

 

खाट मूँज की छाँव नीम की थका हुआ तन

जेठ दुपहरी…

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Added by khursheed khairadi on February 11, 2015 at 11:29am — 24 Comments

ग़ज़ल --बहारों में

२१२२ — १२१२ — ११२(२२)

खिल रहे हैं सुमन बहारों में

झूमता है पवन बहारों में

 

ओढ़कर फागुनी चुनर देखो

सज गया है चमन बहारों में

 

आइने की तरह चमकता है

निखरा निखरा गगन बहारों में

 

यूँ तो संजीदा हूं बहुत यारों

हो गया शोख़ मन बहारों में

 

देखते हैं खिलाता है क्या गुल

आपका आगमन बहारों में

 

हो धनुष कामदेव का जैसे

तेरे तीखे नयन बहारों में

 

घुल गई है फिज़ा में मदिरा…

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Added by khursheed khairadi on February 7, 2015 at 12:00pm — 18 Comments

ग़ज़ल :फ़क़ीरों को डराओ मत

1222-1222-1222-1222

दिखाकर तुम हथेली की लकीरों को डराओ मत

रियाज़त से बदल देंगे नसीबों को डराओ मत               रियाज़त=परिश्रम

 

तबस्सुम के दिये की लौ गला देगी हर इक ज़ंजीर

शब-ए-गम की तवालत से असीरों को डराओ मत            तवालत=लम्बाई, असीर=कैदी

                                                  

ये जन्नत की हक़ीक़त भी बख़ूबी जानते हैं जी

दिखाकर डर जहन्नुम का ग़रीबों को डराओ मत

 

मज़ा आने लगा है अब सभी को दर्द-ए-उल्फ़त…

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Added by khursheed khairadi on February 5, 2015 at 1:00pm — 13 Comments

ग़ज़ल - छोड़ देते हैं

1222--1222--1222--1222

ख़ला की गोद में लाकर हमेशा छोड़ देते हैं

तसव्वुर के परिंदे साथ मेरा छोड़ देते हैं

 

अँधेरी रात हमने तो ब मुश्किल काट ली यारों

तुम्हारे वास्ते उजला सवेरा छोड़ देते हैं

 

ग़मों का साथ हमने तो निभाया है वहाँ तक भी

जहाँ अच्छे से अच्छे भी कलेजा छोड़ देते हैं

 

हमारा नाम लेकर अब न रुसवाई तेरी होगी

मुसफ़िर हम तो ठहरे शह्र तेरा छोड़ देते हैं

 

लड़कपन में जिन्हेँ चलना सिखाया थामकर…

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Added by khursheed khairadi on February 2, 2015 at 10:30am — 18 Comments

ग़ज़ल--१२२२--१२२२--१२२२........डराओ मत

१२२२—१२२२—१२२२

उमंगों के चरागों को बुझाओ मत

उजाले को अँधेरों से डराओ मत

 

न फेंको तुम इधर कंकर तगाफ़ुल का            तगाफ़ुल= उपेक्षा

परिंदे हसरतों के यूं उड़ाओ मत

 

उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन

तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत

 

चले आओ हर इक धड़कन दुआ देगी

सताओ मत सताओ मत सताओ मत

 

सजाओ आइने दीवार में लेकिन

हक़ीक़त से निगाहें तुम चुराओ मत

 

बजाओ तालियाँ पोशाक पर उनकी

मगर उर्यां…

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Added by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 10:38am — 26 Comments

ग़ज़ल १२२२--१२२ \ १२२२--१२२ ..तो सो गये हम

थकन से चूर होकर , गिरे तो सो गये हम

जो चलते चलते गाफ़िल , हुये तो सो गये हम

 

हमारी भूख का क्या , हमारी प्यास का क्या

ये अहसासात दिल में , जगे तो सो गये हम

 

शनासा भी न कोई , तो अपना भी न कोई

अकेले थे अकेले , रहे तो सो गये हम

 

हमारी नींद सपने , सजाती ही नहीं है

हक़ीक़त से जहाँ की , डरे तो सो गये हम

 

मनाओ शुक्र तुम हो , गमों से दूर साथी

हमें तुम मुस्कुराते , मिले तो सो गये हम

 

हमारा दर्द…

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Added by khursheed khairadi on January 26, 2015 at 2:00pm — 22 Comments

ग़ज़ल -८-८-८ दुनिया

दादीसा के भजनों जैसी मीठी दुनिया 

पहले जैसी कहाँ रही अब अच्छी दुनिया 

प्यार मुहब्बत , भाईचारे  ,मानवता की

नहीं समझती बातें सीधी सादी ,दुनिया

दिन सी उजली रातें भी हो  जाये यारों

अँधियारे में रहे भला क्यूं आधी दुनिया

घर से ऑफिस ऑफिस से घर  फिर कुछ ग़ज़लें  

सिमट गई है इतने में ही मेरी दुनिया 

नटखट बच्चे घर की खटपट मेरी बाँहें 

कितनी छोटी सी है यारों उसकी दुनिया 

शहरों में है झूठे दर्पण…

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Added by khursheed khairadi on January 14, 2015 at 1:26pm — 13 Comments

ग़ज़ल --2122-212-2122-212

आप मेरे पाँव के आबलों को देखिये

फिर मेरी तै की हुई दूरियों को देखिये

 

गोद में वादी लिए हो कोई खरगोश ज्यूं

घाटियों में आप इन बादलों को देखिये

 

रो रहा है फूटकर आसमां किस बात पर

आँसुओं की है झड़ी बारिशों को देखिये

 

दुश्मनों की चाल से बाख़बर हरदम रहे

दोस्तों की भी ज़रा साज़िशों को देखिये

 

रहजनों से रास्ता पूछते हैं बारहा

मंज़िलों से बेख़बर रहबरों को देखिये

 

आपके सर पर चलो एक छत है तो…

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Added by khursheed khairadi on January 13, 2015 at 9:30am — 18 Comments

ग़ज़ल --२१२२--२१२२--२१२ समझा चलो

२१२२--२१२२--२१२

आपके किरदार को समझा चलो

नाग की फुफकार को समझा चलो

 

हार कर संसार से हर दौड़ में

वक़्त की रफ़्तार को समझा चलो

 

मोल कुछ पाया नहीं अख़्लाक़ का

ख़ुद ग़रज़ बाज़ार को समझा चलो

 

कहता है कोई शिफ़ा मेरी नहीं

वो मेरे आज़ार को समझा चलो

 

सर गँवा कर भी बचा ली आबरू

क़ीमती दस्तार को समझा चलो

 

दोस्त था लेकिन अदू से जा मिला

मैं भी इक अय्यार को समझा चलो

 

ख़ामोशी…

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Added by khursheed khairadi on January 11, 2015 at 7:47pm — 15 Comments

ग़ज़ल --१२२२--१२२२--१२२२--१२२२

१२२२-१२२२-१२२२-१२२२

अना के ज़ोर से कमज़ोर रिश्ते टूट जाते हैं

ज़रा सी बाहमी टक्कर से शीशे टूट जाते हैं

 

गले मिलकर बनाते हैं यही मज़बूत इक रस्सी

गर आपस में उलझ जायें तो धागे टूट जाते हैं

 

बहारों में शजर की डालियों पर झूमते हैं जो

ख़ज़ाँ के एक झोंके से वो पत्ते टूट जाते हैं

 

किसी दर पर झुकाना सिर नहीं मंजूर हमको भी

करें क्या पेट की खिदमत में काँधें टूट जाते हैं

 

तू चढ़कर पीठ पर आँधी की इतराता है क्यूं…

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Added by khursheed khairadi on January 9, 2015 at 10:59am — 20 Comments

कुछ नये काफ़िये --- ग़ज़ल धार समय की --३

किस सागर में जान मिलेगी धार समय की

कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की

तेरी यादों की बूबास घुलेगी ज्यूं ज्यूं

बढ़ती जाएगी त्यूं त्यूं महकार समय की

वक़्त कहाँ मिलता है दुनियावी पचड़ों से

मेरी ग़ज़लें सारी है बेकार समय की

वक़्त सिकंदर विश्व-विजेता सदियों से है

सुल्तानी लाफ़ानी है सरदार समय की

चंदा-सूरज गगन-पवन सब मौन खड़े हैं

आयु कौन बतलायेगा सुकुमार समय की

बैर भूलकर मीत बनें  सब  एक…

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Added by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 2:43pm — 18 Comments

ग़ज़ल- भाग २ धार समय की 8 + 8 + 8 (रोला मात्रिक)

किस सागर में  जान मिलेगी  धार  समय की 

कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की 

युगों युगों तक फैला है कुहसार  वसन  का                       कुहसार =पर्वतांचल 

कौन अज़ल से  बाँध रहा  दस्तार  समय की                    दस्तार = पगड़ी 

नोक कलम की  पर रखते हैं  काल तीन हम 

केवल हमने  स्वीकारी  ललकार  समय की 

ख़ार दर्द के  चुनकर गीत  उगायेंगे  हम 

कर जायेंगे  वादी  हम गुलज़ार  समय की 

तू  ऊषा की लाली   मैं संध्या  का…

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Added by khursheed khairadi on January 2, 2015 at 1:28am — 11 Comments

ग़ज़ल- 8 + 8 + 8 (रोला मात्रिक)

ग़ज़ल-  8 + 8 + 8   (रोला मात्रिक)

किस सागर में  जान मिलेगी  धार समय की 

कौन पकड़ पाया जग में रफ़्तार समय की 

मोल समय का  उससे जाकर  पूछो माधो 

नासमझी में  जिसने झेली  मार समय की 

जीवन नैया  पार हुई बस  उस केवट से 

कसकर थामी  जिसने  भी पतवार  समय की 

आलस छोड़ो  साहस धारो  कर्म करो तुम 

उठ जाओ अब सुनकर तुम फटकार समय की 

कद्र तुम्हारी  ये संसार करेगा उस दिन 

कद्र करोगे  जिस दिन बरखुर्दार…

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Added by khursheed khairadi on January 1, 2015 at 3:30pm — 19 Comments

नया सूरज नई आशा चलो इक बार फिर से

1222 1222 1222 122

नया सूरज नई आशा चलो इक बार फिर से 

शब-ए-ग़म में नया  किस्सा चलो इक बार फिर से 

तेरे पिंदार का दामन तसव्वुर थाम  लेगा 

तेरी यादें तेरा चर्चा चलो इक बार फिर से 

किसे हसरत बहारों की किसे चाहत चमन की 

वही जंगल वही सहरा चलो इक बार फिर से 

किसी पर तंज़िया पत्थर उछालेंगे न हरगिज 

यही ख़ुद से करें वादा चलो इक बार फिर से 

बुझेगी तिश्नगी अपनी शरारों से हमेशा 

निगलने आग का दरिया चलो…

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Added by khursheed khairadi on December 31, 2014 at 11:00am — 13 Comments

महबूब ख़ुदा मेरा ,उल्फ़त ही इबादत है

 २२१ १२२२ २२१ १२२२

महबूब ख़ुदा मेरा ,उल्फ़त ही इबादत है 

है दीन बड़ा मुश्किल ,आसान मुहब्बत है 

तेजाब छिड़कते हो कलियों के तबस्सुम पर 

कहते हो इसे मज़हब ,क्या ख़ूब इबारत है 

ये खून खराबा क्यूं ,ये शोर शराबा क्यूं 

मैं किसको झुकाऊँ सिर ,इसमें भी सियासत है 

इक सब्ज़ पैराहन पर , है खून के कुछ छीटें

दहशत में लड़कपन है ,नफ़रत की वज़ाहत है              वज़ाहत=विस्तार \पराकाष्टा 

बारूद की बदबू है ,बच्चों के खिलौनों…

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Added by khursheed khairadi on December 28, 2014 at 11:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल : डर लगता है

अपनी ही परछाई से डर लगता है

मुझको इस तन्हाई से डर लगता है

 

साथ देखकर भाईयों का जग डरता

भाई को अब भाई से डर लगता है

 

मनमोहक है भोलापन उसका इतना

दुनिया की चतुराई से डर लगता है

 

मौन रहूं या झूठ कहूं उलझन में हूं

लोगों को सच्चाई से डर लगता है

 

सारा जीवन सहराओं में भटका हूं

मुझको अब अमराई से डर लगता है

 

कानों में इक सिसकी सीसा घोल गई

मुझको अब शहनाई से डर लगता है

 

ग़म…

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Added by khursheed khairadi on December 24, 2014 at 3:30pm — 10 Comments

एक धरा है एक गगन है

एक धरा है एक गगन है

किंतु विभाजित अपना मन है

 

मीत किसी का ख़ाक बनेगा

उसकी ख़ुद से ही अनबन है

 

याद तुम्हारी महकाये मन

इस सहरा में इक गुलशन है

 

स्वर्ग तिहारे चरणों की रज

मातृधरा तुझको वंदन है

 

चौक बड़ा सा एक चबूतर

यादों में कच्चा आँगन है

 

नहीं बहलता खुशियों से मन

ग़म से अपना अपनापन है

 

आँसू बाती आँखें दीपक

दुख की लौ में सुख रोशन है

 

घाव दिये…

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Added by khursheed khairadi on December 23, 2014 at 12:30pm — 22 Comments

खेतों की हरियाली गुम है

खेतों की हरियाली गुम है

गाँवों की खुशहाली गुम है

 

बंद जहाँ है खुशियाँ सारी

उस ताले की ताली गुम है

 

जाने किस जंगल में गुम हूं

दुनिया देखी भाली गुम है

 

कैसी फ़सलें बोयी माधो

बूटे गायब बाली गुम है

 

शहरों में मजदूरी करते

बागों के सब माली गुम है

 

झूलों वाला सावन गुमसुम

अमुवे वाली डाली गुम है

 

क्यूं पलकें ‘खुरशीद’ हुई नम

वो अलकें घुँघराली गुम है 

मौलिक व…

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Added by khursheed khairadi on November 12, 2014 at 9:30am — 7 Comments

दिल्ली के दावेदारों

दिल्ली के दावेदारों तुम , देहातों में जाकर देखो

तकलीफ़ों की लहरें देखो ,गम का गहरा सागर देखो

 

सूरज अंधा चंदा अंधा , दीप बुझे हैं आशाओं के

रातें काली हैं सदियों से , और दुपहरें धूसर देखो

 

निर्धन की झोली में है दुख ,मौज दलालों के हिस्से में

कुटिया देखो दुखिया की तुम ,वैभव मुखिया के घर देखो

 

मोती निपजाने वाले तन ,धोती को तरसे बेचारे

गोदामों में सड़ता गेंहूं , भूखे बेबस हलधर देखो

 

आँसू गाँवों के भरते हो ,…

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Added by khursheed khairadi on November 11, 2014 at 9:00am — 8 Comments

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