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Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह's Blog – November 2010 Archive (7)

दर पे मेरे ::: ©



दर पे मेरे ::: ©

सारी जिंदगी अकेला बैठा हुआ हूँ,
पलकें बिछाए हुए तेरे इंतज़ार में,
न जाने कब इस रात की सुबह हो,
और दर पे नाचीज़ के तू आ जाये..

_____जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh (28 Nov 2010)


.

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 28, 2010 at 10:31pm — 1 Comment

गली का कुत्ता या इंसान ::: ©





गली का कुत्ता या इंसान ::: ©



गली के आवारा कुत्ते को रात में डर-डर कर पीछे को हटते देख कभी ख्याल आता है कि इन्हें कहीं ज़रा भी प्यार से पुचकार दिया जाये तो इनकी प्रतिक्रिया ही बदल जाती है... आँखों में उभरे जहाँ भर की प्रेम में लिथड़ी मासूमियत , कान कुछ पीछे को दबे हुए , लगातार दाँये-बाँये को डोलती पूँछ , गर्दन से लेकर पूँछ तक का शरीर सर्प मुद्रा में अनवरत लहराता हुआ और चारों पाँव जैसे असमंजस में आये हों कि उन्हें करना क्या… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 26, 2010 at 4:36pm — 1 Comment

मूँछों के झोंटे ::: ©





झबरीली मूंछों वाले लोगों को देख कर मेरा भी कटीली मूँछ रखने का मन हो आया.... अब आप देखें तो मेरी बेटी झलक की ओर से किसी मूंछों वाले के लिए कही गयी नयी बात क्या होगी...



मूँछों के झोंटे ::: ©



ताऊ जी ताऊ जी.....

मेले प्याले-प्याले ताऊ जी..

मेले छुई-मुई छे बचपन को..

लटका कल अपनी मूंछों में..

त्लिप्ती दिया कलो झोंटे देकल..

अनुपम छुन्दल हवादाल झूला..

सदृश्य अनुराग मेली… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 19, 2010 at 1:30pm — 4 Comments

मिलना-बिछडना ::: ©







मिलना-बिछडना ::: ©



स्वप्न लोक से तू निकल आ ऐ रूपसी...

माना है जिंदगी चाहत का एक सिलसिला..

मिलना-बिछडना भी है लगा रहता यहाँ...

क्यूँ मांगती है आ सीख ले तू छीन लेना..

बिन मांगे न मिला है न तुझे मिलेगा कभी.. ©



जोगेन्द्र सिंह Jogendra Singh ( 11-11-2010… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 11, 2010 at 5:34pm — 6 Comments

तुम्हारे ये दो आँसू ::: ©



तुम्हारे ये दो आँसू ::: ©



कुछ घाव हरे कर गए है..

तुम्हारे ये दो आँसू मेरी..

संवेदना को गहरा कर गए हैं..

किसी पुराने जख्म का रिसना..

और भर-भर कर उसका..

रिसते चले जाना..

नियति बन गया है अब..



तुम्हारे मन की पीड़ा..

आँसू की पहली बूँद से..

उजागर हो रही है..

एक ह्रदय से दूसरे तक..

क्यों इस पीड़ा का गमन..

हो रहा है निरंतर..



सतत अविरल बहते आँसू..

मेरे… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 8, 2010 at 12:38am — No Comments

खयाल जिंदा रहे तेरा ::: ©

खयाल जिंदा रहे तेरा..

जिंदगी के पिघलने तक..

और मैं रहूँ आगोश में तेरे..

बन महकती साँसें तेरी..



तुझे पिघलाते हुए अब..

पिघल जाना मुकद्दर है..

बह गया देखो तरल बनकर..

अनजान अनदेखे नये..

ख्वाहिशों के सफर पर..



तुझे छोड़कर तुझे ढूँढने..

खामोश पथ का राही बन..

बेसाख्ता ही दूर तक..

निकल आया हूँ मैं..



सुनसान वीराने में तुझे पाना..

तेरी वीणा के तारों को..

नए सिरे से झंकृत..

कर पाना मुमकिन नहीं..

तुझसे दूर,… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 7, 2010 at 12:00am — 3 Comments

हूँ अभी गर्भ में ::: ©



► हूँ अभी गर्भ में ::: ©



हूँ अभी गर्भ में

ले रही आकर

हुआ ही है शुरू

स्पंदन ह्रदय का

कि जान लिया

कौन हूँ मैं

जताने लायक

हैं यंत्र नए

क्या करती



तैयार हूँ कट जाने को

आएगा जोड़ा यंत्रों का

होगी कोख कलंकित

कर रहे हैं पुर्जा-पुर्जा

अलग मुझे माँ से

न सोच न ही समझ है मुझे

करूँ क्रंदन कैसे

पर दर्द समझती हूँ

तडपा रहा कटना अंगों का

बिन… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 1, 2010 at 1:00am — 2 Comments

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