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Ashok Kumar Raktale's Blog (67)

दुर्मिल सवैया

दुर्मिल सवैया.

 

 

बदली - बदली मुख फेर लिया जब सूरज लालमलाल हुआ,

वन शुष्क हुआ हर एक हरा सच शुष्क भरा हर ताल हुआ,

तन शुष्क हुआ मन शुष्क हुआ हर ओर भयंकर हाल हुआ,

जब घाम बढ़ा तब सत्य कहूँ यह हाल बड़ा विकराल हुआ ||

 

 

तन ताप लिए तन आग लिए सब व्याकुल हैं तन प्यास लिए,  

दिन मानव के खग के वन के पशु के कटते बस आस लिए,

सब सोच रहे अब ग्रीष्म टले बरसे बदली मृदु भास लिए,  

निकले फिरसे बरसात लिए दिन सावन भादव मास लिए…

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Added by Ashok Kumar Raktale on May 22, 2016 at 3:40pm — 6 Comments

किस तरह का ये कहो नाता है.

वज्न - 2122---1122---22 / 112

किस तरह का ये कहो नाता है

उनके बिन पल न रहा जाता है

 

लूट ले जाता है खुशियाँ सारी

उसका जाना न हमें भाता है

 

रात लाती है उम्मीदें लेकिन

दिन का सूरज हमें तड़पाता है

 

धूल हो जाते हैं अरमां सारे,

चैन इस दिल को नहीं आता है

 

रात आती है सितारे लेकर

चाँद रातों की नमी लाता है

 

मौलिक/अप्रकाशित.

Added by Ashok Kumar Raktale on April 24, 2016 at 4:30pm — 12 Comments

गीत

इस गीत के सभी अंतरे “हीर छंद” (६,६,११. आदि गुरु अंत रगण) पर आधारित हैं.

 

 

मानव है, मानव बन, मानव का प्यार ले,

बैर भूल, द्वेष मिटा, जिंदगी सँवार ले ||

  

लोक लाज, भूल गया, कैसा मनु कर्म…

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Added by Ashok Kumar Raktale on November 8, 2015 at 10:00am — 4 Comments

कुछ दोहे !

झुमका झांझर चूड़ियाँ, करधन नथ गलहार |

बिंदी देकर मांग भर,.....कर साजन सिंगार ||

 

सूनी सेज न भाय रे, छलकें छल-छल नैन |

पी-पी कर रतिया कटे,....दिन करते बेचैन ||

 

उस आँगन की धूल भी, करती है तकरार |

अपनेपन से लीपकर , जहां बिछाया प्यार ||

 

हरियाली घटने लगी, कृषक हुए सब दीन |

राजनीति जब देश की, खाने लगी जमीन ||

 

टहनी के हों पात या, हों फुनगी के फूल |

दोनों तरु की शान हैं, तरु दोनों का मूल ||…

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Added by Ashok Kumar Raktale on October 8, 2015 at 7:00pm — 8 Comments

दोहा गीत (एक प्रयास)

मनुज रूप मैं पा गया,

हुआ स्वप्न साकार

 

 

कोमल किरणे भोर की,

बिखराती जब नेह है,

दिखती उल्लासित धरा

आन्दंदित हर देह है.

 

सचमुच एक सराय सा

लगा मुझे संसार

 

प्यार भरे व्यवहार से

मिलती देखी जीत है,

बना एक अनजान जब,

मेरे मन का मीत है

 

सच्ची निष्ठा ने किया,

हरदम बेडा पार

 

लोभ मोह माया कपट,

सारे लगते काल हैं,

सत्य यहाँ है मौत ही,

बाकी सब…

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Added by Ashok Kumar Raktale on July 9, 2015 at 9:07am — 14 Comments

चुनावी चौसर ! (चौपई छंद)

छिड़ी हुई शब्दों की जंग | दिखा रहे नेता जी रंग ||

वैचारिकता नंगधडंग | सुनकर हैरत जन-जन दंग ||

जाति धर्म के पुते सियार | इनपर कहना है बेकार ||

बात-बात पर दिल पर वार | जन मानस पर अत्याचार ||

 

पांच वर्ष में एक चुनाव | छोड़े मन पर कई प्रभाव ||

महँगाई भी देती घाव | डुबो रही है सबकी नाव ||

नारी दोहन अत्याचार | मिला नहीं अबतक उपचार ||

सरकारें करती उपकार | निर्धन फिरभी हैं बीमार ||

 

तीर तराजू औ तलवार | किसे कहें अब जिम्मेदार…

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Added by Ashok Kumar Raktale on April 23, 2014 at 2:00pm — 27 Comments

दोहे-मोहें.

नेकनीयती वृन्द के, मुरझाये..….हैं फूल |

कहकर पुष्प गुलाब का, दिए सैकड़ों शूल ||

 

बही नाव……..पतवार भी, तूफानों की धार |

बढ़ा प्रेम तब सरित का, जब पाया मँझधार ||

 

कुल की करुणा कान में, बोली थी चुपचाप |

देख समय सूरज चढा, तू भी इसको भाप ||

 

अवसर का उपहास है, अनजाने ही हार |

भोग रहे पीड़ा कई, गए समय की मार ||

 

कागज़ पर लिखता रहा, विरह प्रेम के गीत |

जुडी कलम की छंद से, अनजाने ही प्रीत ||

 

तप…

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Added by Ashok Kumar Raktale on December 10, 2013 at 9:30pm — 13 Comments

हँसते रहे रोते रहे |

गूंजती थी जब खमोशी, हादसे होते रहे |

रात जागी थी जहां पर दिन वहीँ सोते रहे ||

 

अनमने से भाव थे वह अनमनी सी थी नजर

अनमने सिंगार पर ही मुग्ध हम होते रहे ||

 

कौंध कर बिजली गिरी वसुधा दिवाकर भी डरा,

कुंध तनमन क्रोध संकर बीज हम बोते रहे ||

 

भावना विचलित हुई जब चीर नैनो से हटा,

चार अश्रु गिर धरा पर माटी में खोते रहे ||

 

पीर बढती ही गई जब भावना के वेग से,

हम किनारे पर रहे हर शब्द को धोते रहे…

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Added by Ashok Kumar Raktale on November 20, 2013 at 7:00pm — 25 Comments

कुछ दोहे

जीवन में सद्काम का,........... हुआ सदा सम्मान |

आये दिन अब कर्म के,........ जाने सजग किसान ||

 

कारी रैना भोर में,..................... बीती देकर ज्ञान |

चार प्रहर में दोपहर,.............…

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Added by Ashok Kumar Raktale on May 22, 2013 at 10:00pm — 7 Comments

अरु नदिया पछताय ( कुछ दोहे )

नदिया का यह नीर भी, कुछ दिन का ही हाय |

उथला जल भी नहि बचा, जलप्राणी कित जाय ||

नदिया जल मल मूत्र सब, कैसा बढ़ा विकार |

मानव अवलम्बित धरा, सहती अत्याचार ||

क्षुधा तृप्त करता…

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Added by Ashok Kumar Raktale on April 30, 2013 at 8:07am — 22 Comments

दे शारदे वरदान.

चक्र घंटा शूल मूसल, धर धनुष अरु बान,

शंख साजे हाथ गौरी, शीत चन्द्र समान |

 

शुंभ दलना मात शारद, सृष्टि जननी जान,

है नमन माता चरण में, मात दें वरदान ||

 

कर कमल अरु अक्षमाला, विश्व ध्यावे मात,   …

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Added by Ashok Kumar Raktale on April 12, 2013 at 7:00am — 13 Comments

फाग का महीना. ( मनहरण घनाक्षरी पर एक प्रयास)

ढाक अमलतास पे, आ गयी बहार देखो,

सेमर भी कुसुमित, फाग का महीना है |

 

सारे रंग लाल-लाल, फूलों पर दिखाई दें,

कुहु-कुहू कोयल की, राग का महीना है |

 

सूरज का ताप तन, बदन झुलसायेगा,

तपन दहन…

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Added by Ashok Kumar Raktale on April 4, 2013 at 2:00pm — 16 Comments

शुभकामनाएं.

बीते इसके साथ में, माह दिवस अरु साल,

छंद ‘चित्र से काव्य तक’, लगता बहुत कमाल,

लगता बहुत कमाल, गजब के छंद सुनाता,

छ्न्दोत्सव आगाज, महोत्सव सबको भाता,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on April 1, 2013 at 8:08am — 13 Comments

मत्तगयन्द संग होरी.

लाल ललाम ललाट लिए,

ललि लागत है ललना अति गोरी,

 

      गाल गुलाल गुबार गुमा,

      गम गौण गिनावत है यह होरी,

 

            नाच नचावत नाम…

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Added by Ashok Kumar Raktale on March 22, 2013 at 10:44pm — 7 Comments

प्रेम से भ्रष्टाचार.

राग-रागिणी प्रेम की, उन्नत भ्रष्टाचार,

बहलाए फुसलाय के, देती माँ आहार,

देती माँ आहार, बाल शिशु जब भी रोये,

लोरी देत सुनाय, नहीं जो शिशु को सोये,

पति को रही लुभाय, मधुर व्यंजन से भगिणी,

उन्नत भ्रष्टाचार, प्रेम की राग-रागिणी//

Added by Ashok Kumar Raktale on March 6, 2013 at 12:30pm — 7 Comments

माँ दुर्गा स्तुति. (मदिरा सवैया)

निर्मित विश्व हुआ तुम से, तुम मात शिवे सगरे जग की,

स्थावर जंगम या लघु हो,तुम मात नियामक हो सब की,

सात्विक प्रकृति साधक पूजत भाव लिए मन  ब्रम्ह सदा,

पूजत साधक  धूमवती  बगला  तुमको  यह  देश  मृदा//  

 

 स्वरचित/अप्रकाशित

Added by Ashok Kumar Raktale on February 19, 2013 at 10:30pm — 5 Comments

शिशिर (नवगीत पर एक प्रयास)

शीत जैसे जम गयी,

नम धूप लगती है।

 

ठिठुरते रात भर

सार में सारे ही पशु

भोर कि शाला में

ठिठुरते सारे ही शिशु,

फिजां रंगीन दिखे

मन रूप लगती…

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Added by Ashok Kumar Raktale on January 30, 2013 at 2:00pm — 16 Comments

महाकुम्भ

मकर संक्रांति पर्व है,बीस तेरहा साल,

संगम घाट प्रयाग का,बजे शंख अरु थाल/

 

शाही सवारी चलती,होती जय जयकार,

चलते साधू संत है, करें अजब श्रृंगार/

 

प्रथम शाही स्नान करे, महाकुम्भ शुरुआत,

साधू संत नहा रहे,क्या दिन अरु क्या रात/

 

भीड़ भरे पंडाल हैं,गूंजे प्रवचन हाल,

श्रोता शिक्षा पा रहे,झुका रहे हैं भाल/

 

जुटे कोटिशः जन यहाँ,लेकर उर आनंद,

पाय   रहे  प्रसाद सभी, खाएं परमानंद/

Added by Ashok Kumar Raktale on January 14, 2013 at 9:00am — 16 Comments

संकल्प

हाईकू (१७ वर्ण, ५,७,५.)

भारतवर्ष

नारी देवी रुप है,

देवों में आस्था.

...........

तुम युवा हो,

माताएं व्यथित हैं,

सोना मना है,

..............

यौन शोषण,

सब संकल्प करें,

अब फांसी दो.

...........

पुलिस हा हा..

नारी असुरक्षित,

सब सुधरें.

..........

सभ्य समाज,

यह भी संभव है,

प्रण कर लें.

...............

बीता बरस,

युवा जाग गया है,

उम्मीद…

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Added by Ashok Kumar Raktale on January 6, 2013 at 7:00pm — 9 Comments

खुशी कैसी

पुराना जब भी जाता है नया इक साल आता है,

नया जब साल आता है उम्मीदे साथ लाता है/

 

कोई इक बार आकर के व्यथा उनसे भी तो पूछो,

जिन्हें आते हुए नव साल का इक पल न भाता है/

 

कभी तुम झाँक लो देखो जरा उस मन की तो बूझो,…

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Added by Ashok Kumar Raktale on December 30, 2012 at 7:36pm — 13 Comments

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