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Mahendra Kumar's Blog (46)

हो गया हूँ बुरा

करता रहा समझौता
सहता रहा चुपचाप सब
जब तक मैं
तब तक
अच्छा था सबकी
नज़रों में बहुत
हाँ, तुम्हारी भी तो
पर आज जब मैंने सच बोला
बोल दिया झूठ को झूठ
तो हो गया हूँ बुरा
सबसे बुरा
गिर गया हूँ गहरे
कहीं बहुत गहरे
सबकी नज़रों से
और हाँ, तुम्हारी भी तो!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Mahendra Kumar on December 1, 2016 at 1:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल - दिन ढलते ही रात को आते देख रहा हूँ

बह्र : मात्रिक



दिन ढलते ही रात को आते देख रहा हूँ

शहर से तुम को अपने जाते देख रहा हूँ



धीरे धीरे दिल ये मेरा डूब रहा है

दूर कहीं क़श्ती को जाते देख रहा हूँ



साहिल से मौजों का मिलना जाने कब हो

लहरों से लहरें टकराते देख रहा हूँ



शायद देखो मुड़ के मुझको जाते लेकिन

मायूसी आँखों में छाते देख रहा हूँ



देख रहा हूँ गुमसुम गुमसुम बैठे तुम को

तुम को ही आवाज़ लगाते देख रहा हूँ



चुपके चुपके बैठे बैठे अश्क़ बहाते

दिलवालों… Continue

Added by Mahendra Kumar on July 10, 2016 at 3:30pm — 10 Comments

पर्पल डार्कनेस (लघुकथा)

"थू... थू... थू..."



सूरज, जो अब तक लगातार गुस्से से चुकन्दर को ऐसे खाये जा रहा था जैसे कि उससे उसकी कोई पुरानी दुश्मनी हो, ने उसे ग़ौर से देखा और फिर थूकते हुए अपने हाथों से दूर फेंक दिया। इसके बाद उसने आलमारी से एक पुरानी शर्ट निकाली, उसे पहना और फिर आईने के सामने खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद उसने शर्ट को उतारा और गुस्से से उसे ज़मीन पे फेंक दिया। फिर मेज से बोतल उठायी और पूरी शराब शर्ट के ऊपर उड़ेल दी। माचिस लगते ही एक अजीब-सा अँधेरा पूरे कमरे में फैलने लगा...



आज से दो साल पहले… Continue

Added by Mahendra Kumar on July 6, 2016 at 11:00am — 10 Comments

ग़ज़ल - मुहब्बत करने वाला क्यूँ कभी तनहा नहीं मिलता

मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन/मफ़ाईलुन

किसी को भी यहाँ पे क्यूँ कोई अपना नहीं मिलता

तुम्हें तुम सा नहीं मिलता, हमें हम सा नहीं मिलता

ज़माना घूम के बैठे, दुआएँ कर के भी देखीं

हमें तो यार कोई भी कहीं तुम सा नहीं मिलता

ज़मीनें एक थीं फिर भी लकीरें खींच दीं हमने

सभी से इसलिए भी दिल यहाँ सबका नहीं मिलता

वहाँ पे बैठ के साहब लिखे तक़दीर वो सबकी

लिखावट एक जैसी है तो क्यूँ लिक्खा नहीं…

Continue

Added by Mahendra Kumar on July 2, 2016 at 7:30am — 7 Comments

ग़ज़ल - जब होता है तेरा चर्चा मेरे आगे

22 22 22 22 22 22



कहता है सूरज से चन्दा मेरे आगे

चलना मेरे आगे, चलना मेरे आगे



जो इश्क़ करो तो यूँ करना मेरे आगे

रह जाये जल के ये दुनिया मेरे आगे



तुम हो तो ले आयेंगे फिर से ये मौसम

गिर जाये, गिरने दो, लम्हा मेरे आगे



जाने क्या ढूंढने लगते हैं मुझ में सब

जब होता है तेरा चर्चा मेरे आगे



मेरे पीछे कड़वी कड़वी एक हकीकत

मीठा मीठा प्यारा सपना मेरे आगे



एक दिवाना पागल तेरे अन्दर बैठा

लैला लैला रटता रहता मेरे… Continue

Added by Mahendra Kumar on June 27, 2016 at 12:42pm — 6 Comments

ग़ज़ल - मुहब्बत मेरी बेनवा ही सही

122/122/122/12

मुहब्बत मेरी बेनवा ही सही

तुम्हारी नज़र में ख़ता ही सही

चलो इश्क़ में कुछ किया तो सही

दुआ जो नहीं, बद्दुआ ही सही

है जितनी भी, जैसी भी, जी जाइये

भले ज़िंदगी बेमज़ा ही सही

कहाँ है वो, कैसा है, किस हाल में

न मंज़िल मिले तो पता ही सही

चलो आओ थोड़ा सा रुक लें यहाँ

अभी के लिए मरहला ही सही

हमें रौशनी की ज़रूरत नहीं

अँधेरा घना तो घना ही सही

कई बार लोगों से ये…

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Added by Mahendra Kumar on June 20, 2016 at 7:00pm — 7 Comments

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